*वर्ष 2023 का चिंतन**
काल का पहिया न कभी थमा है और न कभी थमेगा। 31 दिसंबर 2022 चला जाएगा और मध्यरात्रि से 1 जनवरी 2023 शुरू हो जाएगा। पुराने वर्ष का जाना और नया वर्ष का आना कोई अनोखी बात नहीं है। अनोखी बात है मनुष्य जहां है उसका वहां का वहीं
रहना। सैकड़ों वर्षो से समाज सुधारक द्वारा कोशिश की जा रही है कि एक आदर्श समाज बने। समरसता मंच द्वारा धार्मिक समानता लाने का प्रयत्न चल रहा है। भेदभाव रहित समाज बने। हर व्यक्ति साधन संपन्न हो। शिक्षा सब तक पहुंचे। सभी के पास रहने के लिए घर हो। कोई भूखा न सोए। ऐसी मनोगत भावना हम सबकी रहती हैं। प्रतिवर्ष नववर्ष के आगमन पर हम कोई अच्छा काम करने की प्रतिज्ञा लेते हैं। लेकिन देखा गया है कि अधिकांश व्यक्ति अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं करते हैं। यह भी देखने में आया है कि कुछ लोग प्रतिज्ञा पूरी नहीं होने का दोष दूसरे के माथे मढ़ते देखे गए हैं। इस प्रकार ऊहापोह भरी जिंदगी मैं देखते ही देखते नया साल चला जाता है और इस प्रकार व्यक्ति जवान से बूढ़े हो जाते हैं। 1 जनवरी के दिन जो वर्ष नया था, वह 31 दिसंबर को पुराना हो जाता है और फिर हमारा चिंतन उसी ढर्रे पर चल पड़ता हैं।
हम सब देखते हैं कि हमारी ही प्रतिज्ञा हमारे ही अंदर 12 महीने छटपटाती रहती है! यहीं से 2023 चिंतन का प्रस्फुटन होता है और चिंतन मनन का विषय आता है । और फिर से हमारे सामने अक्ष प्रश्न बन कर पहाड़ की तरह खड़ा हो जाता है। और हमसे पूछता है कि यदि हम प्रतिज्ञा केवल उसे छटपटाने के लिए ही करते हैं तो फिर नए वर्ष के अवसर पर ही क्यों? उसे तो हम कभी भी छटपटाने के लिए ले सकते
हैं ? हम मानव मर्जी के मालिक जो ठहरे ! हमारे अपने मन के सामने किसकी चलती है? और फिर चले भी क्यो? हम तो हम हैं ! हमारे पास धन है । शोहरत है । और अच्छा स्वास्थ्य भी हैं? दुनिया की देखा देखी ली गई प्रतिज्ञा भंग भी हो जाए तो क्या फर्क पड़ता है ? बस मन की यही नादानी मानव को परम सुख और सच्चिदानंद से वंचित कर देती है।
शायद यही नादानी मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी ईश्वर का दया पात्र बनाती है। मनुष्य यत्न, प्रयत्न और उद्यम न करके ईश्वर से दया याचना करता है। याचना करना भी चाहिए । क्योंकि याचना का मार्ग सरल है और उद्यम का मार्ग कठिन।ईश्वर मुझे शक्ति प्रदान कर दे। मुझे धन-दौलत से मालामाल कर दे। मेरे परिवार पर कभी भी दुख की छाया न पड़ने दे। जबकि हम सब जानते हैं कि ईश्वर ने हमें प्रयत्न और उद्यम करने के लिए ही भेजा है इस दुनिया में ! प्रकृति की इस नायाब दुनिया का आनंद लेना है तो आपको तय समय पर सही काम करते रहना होगा। अन्यथा वही दिनभर चले ढाई कोस। हम देखते हैं कि उद्यम करने की बजाय मनुष्य ऐसी वैसी अनर्गल सांसारिक मायाजाल में उलझ गया है , जहां से उसका निकलना कठिन है। वही अंधा मुर्गा घट्टी के आस पास। चींटी जैसा छोटा प्राणी संकट काल के लिए अपना भोजन इकट्ठा करता है। पर हम इंसान जेब में पैसा आते ही हवा में बातें करने लगते हैं। बचत की आदत आजकल हमारे नवयुवकों की सोच से छूमंतर हो गई हैं।
एक और बात 2023 में सोचने लायक़ है ।वह यह की आखिर इतनी घृणा, असहिष्णुता, दोगलापन, धोखा देना, दूसरे को नीचे दिखाना जैसी अमानवीय सोच आखिर आती कहां से ? प्रतिशोध की भावना ने तो इंसान को इंसानियत से ही दूर कर दिया है। हालांकि प्रतिशोध मनुष्य अकेले की प्रवृत्ति नहीं है। प्राणी मात्र में प्रतिशोध की भावना प्रबल पाईं जाती है । लेकिन प्रकृति के रहस्य का उद्घाटन यह है कि जीव जन्तु की प्रतिशोध प्रवृत्ति प्रकृति के संतुलन नियम का पालन करती है। लेकिन मनुष्य में ऐसा नहीं है ! मनुष्य दूसरों को पीड़ा देने में संकोच नहीं करता। यहां तक की अपनों को भी! न ही वह प्रतिशोध लेने के बाद पश्चाताप करता है। मानव मन में उपजी घृणा से वह कृत्य करता है। जघन्य अपराध करता है अपने हाथों से और उसकी आंखें अपराध होते हुए देखती है।फिर भी आदमी कोर्ट कचहरी में अपने आप को निर्दोष साबित करने की फिराक में अपनी ही आंख में धूल झोंकता है।
अब हम कल्पना करें कि जिस मानव समूह में प्रतिशोध की भावना दावानल की तरह दिखती हो और फिर भी वह बार-बार हर मंच पर आत्मशांति और विश्व शांति की बात करता है ? हम सोचे ! यह हमारे अपने मानव समाज के साथ कितना बड़ा मजाक
है !!
हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता में परिवर्तन और अपरिवर्तन दोनों ही गुड विषयों पर चिंतन होता रहा है। कुछ बातें अथवा कृत्य देश, काल और परिस्थिति के अनुरूप परिवर्तनशील होते हैं और कुछ अपरिवर्तनीय। परिवर्तनीय और अपरिवर्तनीय दोनों के लिए इंसान कभी धर्म, कभी संविधान अथवा रीति रिवाज का तै कभी परिपाटी का सहारा लेता हैं। कहता हैं कि यह तो हमारी परंपरा में है। हमारे धर्म में है। हमारी संस्कृति में हैं । इसे हम नहीं बदलेंगे ? पुरुषार्थ वाद , भोगवाद और मिथ्यावाद तीनों सत्यांश है । इन पर सांपेक्ष, निरपेक्ष और परिपेक्ष्य दृष्टि से 2023 में चिंतन मनन करने की जरूरत है। अन्यथा वही ढाक के तीन पात।
डॉ बालाराम परमार’हंसमुख’