25 मानचित्रों में भारत के इतिहास का सच, भाग ……15

बप्पा रावल का साम्राज्य

मौहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के पश्चात अरबों की ओर से आक्रमण परंपरा को सिंध में राजा जयसिंह के स्थान पर बने मुस्लिम शासक जुनैद ने आगे बढ़ाया। जुनैद व उसके सेनापति मर्मद, मण्डल, बैलमान, दहनज, बरबस और मलीबा को आक्रांत करते हुए उज्जैन तक आगे बढ़ गये थे। यहां मर्मद मरूदेश के लिए, बरबस भड़ौंच के लिए मलिवा मालवा के लिए, बैलमान बल्लमंडल (गुर्जर राज्यों का संघ) के लिए कहा गया है। इतिहास हमें बताता है कि अरबों ने चाहे कितनी ही दूर तक धावा बोल दिया था, परंतु वे यहां अपने प्रभुत्व को अधिक देर तक स्थापित नही कर पाए। अवन्ति के गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट, लाट देश (दक्षिणी गुजरात) के चालुक्य राजा अवनिजनाश्रम, पुलकेशीराज ने उन्हें परास्त कर भगा दिया। लुटेरों को अपनाया नही गया, अपितु उनके साथ वही व्यवहार किया गया जिसके वह पात्र थे। स्वतंत्रता का तीसरा दैदीप्यमान स्मारक है इन स्तवनीय राजाओं का ये स्तवनीय कृत्य। इसी स्तवनीय कृत्य में नांदीपुरी के गुर्जर राजा जयभट्ट चतुर्थ ने भी संघर्ष में सम्मिलित होकर सहयोग दिया था। चित्तौड़ के राणा वंश के वीर प्रतापी शासक बप्पा रावल का गौरवपूर्ण शासन भी इसी समय फलफूल रहा था, उनका म्लेच्छों को मार भगाने में उल्लेखनीय रूप से सहयोग मिला था। 
बप्पा रावल अपनी सेना के साथ विदेशी आक्रांता से भूखे शेर की भांति जा भिड़ा। उसकी वीरता को  देखकर मौर्य राजा मानसिंह और उसके सभी सामंत भौंचक्के रह गये। बप्पा जीतने के पश्चात भी रूका नही। अभी उसे मां भारती के ऋण से उऋण होने के लिए और भी कुछ करना था। उसने विदेशी आक्रांता को तो परास्त कर दिया, परंतु अपनी सेना को लेकर अपने पूर्वजों की कभी की पुरानी राजधानी गजनी की ओर बढ़ा। गजनी पर उस समय सलीम का शासन था।
कर्नल टॉड हमें बताते हैं कि बप्पा ने गजनी शासक सलीम  को परास्त कर वहां अपनी विजय पताका फहरा दी। सलीम की लड़की से बप्पा ने अपना विवाह किया।
गजनवी को अपने अधीन कर उसने मां भारती की कोख को धन्य किया। यह घटना कासिम के सन 712 के आक्रमण के उपरांत लगभग 720 ईं. की है। इस प्रकार म्लेच्छों को मां भारती के आंगन से निकाल कर भारत की वीरता की धाक जमाने में बप्पा ने एक मील का पत्थर स्थापित किया, और वह बप्पा से बप्पा रावल बन गया। चित्तौड़ में आकर उसने वहां के मौर्य शासक को सत्ताच्युत कर स्वयं शासन संभाल लिया। उसे हिंदू सूर्य की उपाधि दी गयी। जिस समय गजनी विजय का कार्य बप्पा ने पूर्ण किया उस समय उसकी अवस्था मात्र 20-22 वर्ष की थी।
देलवाड़ा नरेश के प्राचीन ग्रंथ की साक्षी के आधार पर ही कर्नल टॉड हमें बताता है कि महाराज बप्पा ने इस्फन हान, कंधार काश्मीर, ईराक, ईरान, तूरान और काफरिस्तान आदि अनेक देशों को जीतकर उन पर शासन किया और उनकी कन्याओं से विवाह किये।

मेरी पुस्तक “25 मानचित्र में भारत के इतिहास का सच” से

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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