विक्रमादित्य का साम्राज्य
भारतीय कालगणना में सर्वाधिक महत्व विक्रम संवत पंचांग को दिया जाता है। विक्रम संवत् का आरंभ 57 ई.पू. में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ। उन्होंने इसी दिन अपना राज्याभिषेक कराया था । भारत में यह विक्रम संवत आज भी काम कर रहा है। अपने इस महान न्यायप्रिय और जनप्रिय शासक को लोग आज भी बड़े सम्मान से स्मरण करते हैं। इस महान शासक का साम्राज्य आज के एशिया और यूरोप के बहुत बड़े भाग पर हुआ करता था। यदि भारत वास्तव में अपने आप को जानना चाहता है और समझना चाहता है तो उसे विक्रमादित्य जैसे महान शासकों को समझना पड़ेगा।
अरबी कवि बिन्तोई द्वारा हमारे इस महान शासक का गुणगान इस प्रकार किया गया है :-
‘इत्रश्शफ़ाई सनतुल बिकरमातुन फ़हलमिन क़रीमुन यर्तफ़ीहा वयोवस्सुरू ।।1।।
बिहिल्लाहायसमीमिन इला मोतक़ब्बेनरन, बिहिल्लाहा यूही क़ैद मिन होवा यफ़ख़रू।।2।।
फज़्ज़ल-आसारि नहनो ओसारिम बेज़ेहलीन, युरीदुन बिआबिन क़ज़नबिनयख़तरू।।3।।
यह सबदुन्या कनातेफ़ नातेफ़ी बिज़ेहलीन, अतदरी बिलला मसीरतुन फ़क़ेफ़ तसबहू।।4।।
क़ऊन्नी एज़ा माज़करलहदा वलहदा, अशमीमान, बुरुक़न क़द् तोलुहो वतस्तरू।।5।।
बिहिल्लाहा यकज़ी बैनना वले कुल्ले अमरेना, फ़हेया ज़ाऊना बिल अमरे बिकरमातुन।।6।।’
अर्थात्, वे लोग धन्य हैं, जो राजा विक्रमादित्य के साम्राज्य में उत्पन्न हुए, जो दानवीर, धर्मात्मा और प्रजावत्सल था ।।1।।
उस समय हमारा देश (अरब) ईश्वर को भूलकर इन्द्रिय-सुख में लिप्त था। छल-कपट को ही हमलोगों ने सबसे बड़ा गुण मान रखा था। हमारे सम्पूर्ण देश पर अज्ञानता ने अन्धकार फैला रखा था।।2।। जिस प्रकार कोई बकरी का बच्चा किसी भेडि़ए के चंगुल में फँसकर छटपटाता है, छूट नहीं सकता, उसी प्रकार हमारी मूर्ख जाति मूर्खता के पंजे में फँसी हुई थी।।3।। अज्ञानता के कारण हम संसार के व्यवहार को भूल चुके थे, सारे देश में अमावस्या की रात्रि की तरह अन्धकार फैला हुआ था। परन्तु अब जो ज्ञान का प्रातःकालीन प्रकाश दिखाई देता है, यह कैसे हुआ?।।4।। यह उसी धर्मात्मा राजा की कृपा है, जिन्होंने हम विदेशियों को भी अपनी कृपा-दृष्टि से वंचित नहीं किया और पवित्र धर्म का सन्देश देकर अपने देश के विद्वानों को भेजा, जो हमारे देश में सूर्य की तरह चमकते थे।।5।। जिन महापुरुषों की कृपा से हमने भुलाए हुए ईश्वर और उसके पवित्र ज्ञान को समझा और सत्पथगामी हुए; वे महान् विद्वान्, राजा विक्रमादित्य की आज्ञा से हमारे देश में ज्ञान एवं नैतिकता के प्रचार के लिए आए थे।।6।।
पाठक वृंद! हमें अपने सौभाग्य पर निश्चय ही गर्व और गौरव की अनुभूति करने का पूर्ण अधिकार है।
मेरी पुस्तक “25 मानचित्र में भारत के इतिहास का सच” से
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत