आर्यों ने चासी महर्षि तपस्थली पर सम्पन्न की शोभायात्रा : किया यज्ञ और लिया संकल्प

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जहांगीराबाद। ( विशेष संवाददाता ) महेश्वरानंद वेद भारती धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा संचालित महर्षि दयानंद आर्ष गुरुकुल राजघाट नरोरा की ओर से महर्षि दयानंद की तप:स्थली चासी के लिए आज भव्य शोभायात्रा का आयोजन किया। जिसमें गुरुकुल के ब्रह्मचारी और जिले की आर्य समाजों के विभिन्न प्रतिनिधियों ने भारी संख्या में भाग लिया। यह शोभायात्रा राजघाट से चलकर चांसी पर पूर्ण की गई। चासी पहुंचने की पश्चात महर्षि तप:स्थली पर सभी आर्य जनों ने मिलकर भव्य यज्ञ का आयोजन किया।
इस यज्ञ में डॉ राकेश कुमार आर्य, आचार्य प्राण देव ,डॉ अर्जुन पांडे, महेश क्रांतिकारी सहित स्थानीय खंड विकास अधिकारी ऊंचा गांव, जिला सभा के प्रधान श्री गंगा प्रसाद निराला, गुरुकुल राजघाट के प्रधान स्वामी अमृतानंद जी ,भूतपूर्व प्रधानाचार्य श्री क्षेत्रपाल सिंह आर्य , गुरुकुल के प्रबंधक श्री रामावतार आर्य, स्थानीय ग्राम प्रधान धर्मेंद्र कुमार उर्फ पिंटू उपस्थित रहे।
इस अवसर पर कोलकाता से पधारे कार्यक्रम के संयोजक वैदिक प्रवक्ता – आचार्य योगेश शास्त्री ने स्थानीय जनता के समक्ष इतिहास के लुप्त पड़े तथ्यों को उजागर करते हुए बताया कि 1867 ईस्वी में महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती का आगमन इस पावन पुण्य स्थल पर हुआ ।
इस पावन स्थली पर तपस्या करने के पश्चात महर्षि जी के जीवन में नई ऊर्जा का संचार हुआ और उन्होंने आसपास के क्षेत्र में अज्ञान के अंधकार में डूबी जनता को वेदों के प्रकाश के माध्यम से वेद के संदेश से परिचित कराया। वेद की कर्तव्य परायणता के माध्यम से क्षेत्र की जनता में धार्मिक अन्धविश्वासों को समाप्त कराया । उन्होंने जातिवाद जैसी कुरीतियां समाप्त कर लोगों को संकल्प दिलाकर समरसता का वातावरण तैयार किया।
उन्होंने कहा कि आज फिर महर्षि दयानंद के छूटे हुए मिशन को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के माध्यम से संस्कार आधारित शिक्षा प्रदान कर बच्चों को राष्ट्र समाज और प्राणी मात्र के लिए उपयोगी बनाना इस मिशन का प्रमुख उद्देश्य है जिसके लिए भविष्य में बड़ी योजनाओं को क्रियान्वित कर चासी में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद जी महाराज ने वेदों की ओर लौटने का आवाहन कर समस्त मानव जाति पर उपकार किया था। उनके उस उपकार को समझते हुए आज आर्य जनों का यह परम कर्तव्य हो जाता है कि वेदों की शिक्षा को अपने बच्चों में संस्कार के रूप में आरोपित करें।

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