आर्थिक हालात को ठीक करने के लिए केवल बातों की नहीं, बल्कि मजबूती के साथ धरातल पर काम करने की जरूरत है। एक समृद्ध प्रदेश के निर्माण के लिए आज से ही सरकार को कुछ ठोस निर्णय लेने की जरूरत है, ताकि आने वाले कल की बेहतरी की संकल्पना साकार की जा सके।
हिमाचल प्रदेश की कमजोर आर्थिक स्थिति की चर्चा चुनावों के दौरान खूब सुनने को मिली। चुनाव परिणाम के बाद अब नई सरकार का गठन हो चुका है, परंतु खराब होती प्रदेश की वित्तीय हालत पर अभी तक विराम नहीं लग पाया है। प्रदेश के नए मुख्यमंत्री लगातार प्रदेश के खराब वित्तीय हालात की चर्चा कर रहे हैं। इससे सहज ही मामले की गंभीरता का एहसास होता है। मुख्यमंत्री राहत कोष के खाली होने पर मुख्यमंत्री बयान देते हैं, तो सत्ता पक्ष के विधायक धर्मशाला में विधानसभा सत्र को फिजूलखर्ची का नाम देते हैं। हालांकि दोनों बातें सही हैं और यह भी सही है कि मुख्यमंत्री राहत कोष को भरना और फिजूल खर्चों को कम करना दोनों काम सरकार के ही अधीन हैं। कहना न होगा कि प्रदेश के ऊपर 45,000 करोड़ रुपए से अधिक का ऋण प्रदेश के विकास में एक बड़ी अड़चन बन सकता है।
प्रदेश के कुल बजट का एक बड़ा भाग तो कर्मचारियों को वेतन अदायगी और पेंशन पर खर्च हो जाता है। उसी बजट में से लगभग 20 प्रतिशत पैसा ऋण की वापसी और ब्याज के भुगतान के रूप में खर्च हो जाता है। ऐसे में करीब 40 प्रतिशत पैसा ही विकास और अन्य कार्यों पर खर्च करने के लिए बचता है, जो की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले पहाड़ी प्रदेश के लिए बहुत कम है। आर्थिक हालात को ठीक करने के लिए केवल बातों की नहीं, बल्कि मजबूती के साथ धरातल पर काम करने की जरूरत है। एक समृद्ध प्रदेश के निर्माण के लिए आज से ही सरकार को कुछ ठोस निर्णय लेने की जरूरत है, ताकि आने वाले कल की बेहतरी की संकल्पना साकार की जा सके। नई सरकार द्वारा अपनी शुरुआती कैबिनेट बैठकों के निर्णयों से ऐसा कोई संदेश नहीं मिलता है। इसके विपरीत जो निर्णय सरकार द्वारा लिए गए हैं, उनसे ऐसा लगता है कि सरकार वित्तीय हालात से पूरी तरह अनजान है। वर्तमान सरकार द्वारा निवर्तमान सरकार के अंतिम छह महीनों में लिए गए निर्णयों को बदलने के नाम पर जो एक बड़ा निर्णय लिया गया, वह पूर्व सैनिकों को उनकी सेना की नौकरी का सेवाकाल जोडक़र राज्य सरकार की नौकरी में वित्तीय लाभ और वरिष्ठता देने से संबंधित है। साधारण शब्दों में यूं समझा जा सकता है कि यदि कोई सैनिक सेना में 16 वर्ष नौकरी करके आता है और उसे राज्य सरकार में नौकरी मिलती है, तो उसको सीधे 16 वेतन वृद्धियां दे दी जाएंगी। इससे उनका वेतन एक साधारण कर्मचारी के मुकाबले बहुत अधिक हो जाता है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय इस पर रोक लगा चुका था, फिर भी सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया। यह निर्णय कर्मचारियों के एक ऐसे वर्ग के लिए फायदेमंद है, जो अपनी पुरानी नौकरी की पेंशन प्राप्त कर रहे होते हैं और बीमारी की हालात में सभी सरकारी और बड़े प्राइवेट अस्पतालों में मुफ्त इलाज की सुविधा प्राप्त कर सकते हैं।
प्रदेश में एक ऐसा बड़ा कर्मचारी वर्ग भी है, जो अपने जीवन के 30 वर्ष पार करने के बाद नौकरी प्राप्त करता है और फिर तीन-चार वर्ष अनुबंध पर बिताता है और पूरी ग्रेड पे प्राप्त करने के लिए दो वर्ष और इंतजार करता है। उसको नई पेंशन स्कीम के तहत सेवानिवृत्ति पर जो पेंशन मिलती है, वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। अनुबंध कार्यकाल में कोई मेडिकल सुविधा सरकार नहीं देती। पिछली सरकार द्वारा ऐसे कर्मियों के लिए चुनावों से पहले ग्रैच्युटी देने का निर्णय लिया गया था। ऐसे में यदि नई सरकार इस निर्णय को भी पलट देती है, तो इन कर्मचारियों के भविष्य पर यह सबसे बड़ा कुठाराघात होगा। प्रदेश के कर्मचारी नई सरकार के गठन में हमेशा महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं और इस बार भी कर्मचारियों ने सरकार के गठन में अपना पूरा योगदान दिया है। ऐसे में सरकार से ये कर्मचारी 4-9-14 और पुरानी पेंशन बहाली की आस लगाए बैठे हैं। इसके अलावा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को सरकार कैसे और कब लागू करेगी, इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। इस बीच सरकार द्वारा उपरोक्त मुद्दों से हटकर अपनी शुरुआती कैबिनेट बैठकों में ऐसे निर्णय लेगी, यह पूरे कर्मचारी वर्ग के लिए चौंकाने वाली बात है। इसकी समीक्षा की जानी आवश्यक है।
शुरू से ही पर्यटन विकास की दुहाई देने वाली सरकार को अब तक यही मालूम नहीं कि आखिर इस मंजिल को ले कहां जाना है। ऐसे में पर्यटन विकास का भविष्य भी अब तक स्पष्ट नहीं दिख रहा, जबकि इसकी संभावनाओं और मायनों को समझते हुए अब तक इस पर कार्य शुरू हो जाना चाहिए था। इसके अलावा प्रदेश की खराब सडक़ें सरकार की नजर-ए-इनायत की बाट जोह रही हैं। गांव-देहात के रास्तों और पेयजल एवं सिंचाई परियोजनाओं को अपडेट करने तथा नई स्कीमों को स्थापित करने के लिए बड़े पैमाने पर धनराशि व्यय करने की आवश्यकता है। मौजूदा हालात में ये सारे काम मुश्किल नहीं हैं, क्योंकि केंद्र में भी भाजपा की सरकार सत्तासीन है और चुनावों में भाजपा द्वारा दिए गए केंद्र में भाजपा प्रदेश में भाजपा के नारे को जनता ने सच्चाई में बदल दिया है। अब प्रदेश को एक समृद्ध एवं मॉडल राज्य के रूप में विकसित करने के लिए सरकार को धरातल पर काम करके सही निर्णय लेने की आवश्यकता है।