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कविता

खुदा से बंदा पूछे, तेरी रजा क्या है**

ए खुदा एक बात तो तू आज जरूर बता।
इंसान की क्या खता, नहीं तेरा सही पता।।
सुना है तू हर दिलो-दिमाग में धड़कता है।
सुना है तू हर फन में फनकार फड़कता है।।
जब तेरा ही जलजला है यहां वहां हर कहीं।
तेरी रहमत सब पर आकर समझा तो सही।।
फिर क्यों सताता है भेज करके ये आफत।
फिर क्यों छीन ली तूने इंसान से शराफत।।
लगता है फिर से कोई इरादा है तेरा नेक अनेक।
हजरत ए आलम एक बार निगाहें करम से देख।।
पता नहीं तेरी जन्नत का दीदार होगा कि नहीं।
अगर मिले तो सुकून से एतबार करूंगा तो सही।।
तुने इंसान बनाया, जात पात भाषा प्रान्त तो नहीं।
फिर क्यों छीना झपटी,भुल चुक तो कहीं जरुर हुईं।।
सबको मालूम, एक दिन सुपूर्द खाख होंगे ही होंगे।
फिर भी तेरे बंदों को क्या सुझ रही, इधर देंगे ही दंगे।।
कहुं एक बार जनत छोड़,धरा पर उतर आ फरिस्ते। हैरान-परेशान कर देंगे, इंसान के अजब-गजब रिस्ते।।
ए खुदा खुदाई के वास्ते दहशत गर्दी का खात्मा कर।
तु इस्पाक ,नापाक हंसमुख को दुनिया में अमर कर।।
डा बालाराम परमार’हंसमुख’

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