अरविंद कुमार सेन
आज से तकरीबन दो दशक पहले की बात होगी। पूरी दुनिया में इंटरनेट और इस पर आधारित सेवाएं रफ्ता-रफ्ता पैर फैला रहीं थी। डोमेन नाम वाली वेबसाइट (संक्षेप में डॉटकॉम) खड़ी करने का एक अभियान पूरी दुनिया में चल पड़ा था। रातों-रात नए-नए आंतरप्रेन्योर यानी नवउद्यमी पैदा हो गए थे, जिनकी एकमात्र उपलब्धि डॉटकॉम वाली वेबसाइट का मालिकाना हक था। जड़विहीन समृद्धि पैदा करने के इस अभियान को मीडिया ने भी खूब परवान चढ़ाया। भारत में ऐसे सितारे खोज लिए गए थे, जिन्हें इक्कीसवीं सदी के नए भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में सक्षम पहरुए घोषित किया जा रहा था।
पर, जैसा कि बुलबुले की प्रकृति होती है, वह एक सीमा के बाद फूट जाता है। सन 2000 के दशक में डॉटकॉम बुलबुला भी अपनी सीमा पार करने के बाद फूट गया और उसके दलदल से निकलने में इंटरनेट उद्योग को पूरा एक दशक लगा। इक्कीसवीं सदी में वैश्विक अर्थव्यवस्था का इंजन बनने का दावा करने वाले पैसा बना कर निकल लिए। मगर इस बुलबुले के झांसे में आकर डॉटकॉम कंपनियों में पैसा लगाने वाले छोटे और मझोले निवेशक बुरी तरह बर्बाद हो गए। सरकारों और बाजार नियामकों ने इस त्रासदी से कोई सबक सीखा हो, ऐसा लगता नहीं है। क्योंकि डॉटकॉम तर्ज पर ही बिटकॉइन जैसी आभासी मुद्राओं (क्रिप्टो करेंसी) के नाम पर एक बवंडर दुनिया भर में खड़ा किया जा रहा है। यह त्रासदी दिन-ब-दिन बनती-बढ़ती जा रही है और केवल घटित होने का इंतजार कर रही है।
कुकुरमुत्तों की तरह उग आई कई तरह की आभासी मुद्राओं में बिटकॉइन सबसे ज्यादा चर्चित आभासी मुद्रा है। बीते एक साल के दरम्यान बिटकॉइन की कीमत में एक हजार गुना से ज्यादा का इजाफा हो चुका है। गौर करने वाली बात यह है कि कीमतों में यह बढ़ोतरी एकतरफा नहीं रही है, बल्कि इसमें पांच सौ गुना तक कमी और इतना ही इजाफा एक ही दिन में देखा गया है। किसी जिंस, खासकर विनिमय का काम करने वाली मुद्रा, की कीमत में इतनी अधिक अस्थिरता उसकी आधारभूत इकाइयों में गंभीर गड़बड़ी का संकेत है।
कीमतों में इस हद तक आई अस्थिरता का दूसरा कारण सट्टेबाजी है। चूंकि इन मुद्राओं का कारोबार किसी तरह के विनियमन के दायरे से बाहर है और इसमें कारोबार करने वालों की पहचान छिपी रहती है, इसलिए बेहद कम समय में अत्यधिक मुनाफा कमाने के लालच में लोग टिड्डी दल की भांति आभासी मुद्राओं पर टूट पड़े हैं।
कीमतों में आए इस कृत्रिम उछाल का फायदा उठाने के लिए कई कथित नवउद्यमियों ने भी फर्जी बिटकॉइन की तर्ज पर दूसरी आभासी मुद्राएं खड़ी कर ली हैं। बिटकॉइन सबसे पुरानी आभासी मुद्रा होने के साथ ही इस प्रवृत्ति की संस्थापक-अगुवा मुद्रा भी है, इसलिए इसकी कीमत में सबसे ज्यादा उछाल आया है। आसमान छूती कीमतों के कारण बिटकॉइन को खरीदने में असमर्थ लोग दूसरी आभासी मुद्राओं का रुख कर रहे हैं और सटोरिए फर्जी आभासी मुद्राओं का निर्माण करके रातों-रात मुनाफा कमाने के लिए आभासी मुद्राओं के पीछे दौड़ रहे लोगों को चूना लगा रहे हैं। विडंबना देखिए, बीते हफ्ते खुद आभासी मुद्रा चलाने वाले कथित नवउद्यमियों ने एक बिजनेस अखबार के सामने स्वीकार किया कि भारत में नब्बे फीसद से ज्यादा आभासी मुद्राएं घोटाला हैं। निवेश और बाजार पर निगाह रखने वाले अर्थशास्त्री भी इस आंकड़े से सहमत हैं।
चिंताजनक बात यह है कि बिटकॉइन और दूसरी आभासी मुद्राओं में निवेश का आकार दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है, वहीं इनमें निवेश करने वाले नए निवेशकों को उस कूट तकनीक के बारे में नहीं के बराबर जानकारी है, जिसके आधार पर आभासी मुद्राएं संचालित होती हैं। किसी विशेष आभासी मुद्रा की वैधता जांचने का भी कोई तरीका निवेशकों के पास नहीं है। हमारे यहां आभासी मुद्राओं के विनियमन का न तो कोई ढांचा है और न ही इस दिशा में जागरूकता फैलाने का कोई प्रयास किया गया है। यह दिक्कत तब और गंभीर हो जाती है जब हम पाते हैं कि मीडिया इस जाल से लोगों को सावधान करने के बजाए सट्टेबाजों को नवउद्यमी का चोला पहना कर नए दौर के नायक के रूप में पेश कर रहा हो।
तकनीकी रूप से मुद्रा के दो काम होते हैं- एक विनिमय करना और दूसरा, कीमत के भंडारगृह के रूप में कार्य करना। आभासी मुद्राएं दोनों ही पैमाने पर खरी नहीं उतरती हैं। दुनिया के किसी भी केंद्रीय बैंक या सरकार ने इन्हें मान्यता प्रदान नहीं की है। ऐसे में सवाल उठता है कि मुद्रा के परंपरागत पैमानों पर खरा नहीं उतरने के बावजूद बिटकॉइन जैसी आभासी मुद्राओं के नाम पर वैश्विक स्तर पर सट्टेबाजी में लगे इन कथित नवउद्यमियों के खिलाफ सरकार या बाजार विनियामक कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं? वित्त जानकार इस बात की स्पष्ट चेतावनी दे चुके हैं कि यह बुलबुला किसी भी समय फट सकता है, इसके बावजूद इस संकट को समय रहते थामने की कोशिश नहीं की जा रही है।
अधिकतम मुनाफे के लिए वैश्विक स्तर पर निवेश करने वाले हैज फंड, निवेश बैंक, पेंशन फंड और निवेश कंपनियां इस बुलबुले को हवा दे रही हैं। बिटकॉइन जैसी आभासी मुद्राओं में निवेश करने के लिए न तो निवेशक को अपनी पहचान जाहिर करनी होती है और न ही सीमा-पार अंतरण करने के लिए कोई कर या शुल्क अदा करना होता है। दूसरे लफ्जों में कहें तो आभासी मुद्राओं में किसी भी तरह से अर्जित किए गए काले धन का निवेश किया जा सकता है और इस पर हुए मुनाफे का अंतरण वैश्विक स्तर पर कहीं भी बिना कोई कर चुकाए किया जा सकता है। मुफ्त मुनाफा कमाने के लिए इससे आदर्श स्थिति क्या हो सकती है, जहां बिना पहचान जाहिर किए और बिना कोई कर चुकाए बेशुमार पैसा बनाया जा सकता हो। इसी तबके की अगुवाई में वैश्विक स्तर पर कूटमुद्रा या आभासी मुद्राओं का संचालन कर रहे लोगों को नवउद्यमी का तमगा दिया जा रहा है।
नए उद्यमों को बढ़ावा देने की आड़ लेकर ही आभासी मुद्राओं पर किसी भी तरह के नियामकीय नियंत्रण का विरोध किया जा रहा है। कुछ लोगों का तर्क है कि बिटकॉइन जैसी आभासी मुद्राएं भविष्य में उपयोगी साबित हो सकती हैं और लेन-देन के आसान रूप के तौर पर उभर सकती हैं। ध्यान देने की बात है कि इन आभासी मुद्राओं का मूल आधार ही गोपनीयता और करविहीनता है। इनकी लोकप्रियता की भी यही वजहें हैं। लेकिन गोपनीयता और कर से बचने की प्रवृत्ति, यही दोनों ऐसे मूल कारण हैं, जो काले धन के सृजन को बढ़ावा देते हैं। व्यवहार में जैसा भी हो, मगर कागज पर तो हमारी सरकार काले धन को खत्म करने और भविष्य में इसका सृजन रोकने के लिए प्रतिबद्ध है।
ऐसे में, मूलत: पहले से मौजूद काले धन को ठिकाने लगाने और पूरी साफगोई के साथ नए काले धन का सृजन करने के लिए ईजाद की गई बिटकॉइन जैसी आभासी मुद्राओं को बढ़ावा देने की बात समझ से परे है। बेहतर होगा, सरकार आभासी मुद्राओं की आड़ लेकर की जा रही इस तकनीक आधारित सट्टेबाजी पर रोक लगाए, ताकि कम पूंजी वाले छोटे निवेशकों के साथ होने वाली संभावित लूट को समय रहते रोका जा सके।
साथ ही, अर्थव्यवस्था में कूट तकनीक आधारित वैश्विक अंतरण को बढ़ावा देने के लिए आधिकारिक विनियमन का मसौदा जारी करे, जिसकी छत्रछाया में तकनीक के जानकार और निवेशक, दोनों इस दिशा में आगे बढ़ सकें।