अपनी कलम सम्हालो
हे सत्ता के गलियारों में, दुम हिलाने वालों।
हे दरबारी सुविधाओं की, जूठन खाने वालों।।
तेरे ही पूर्वज दुश्मन को, कलम बेचकर खाए।
तेरे ही पूर्वज सदियों से, वतन बेचते आए।।
कलम बिकी तब गोरी के साथी, जयचंद कहाए।
कलम बिकी तब राणा साँगा, बाबर को बुलवाए।।
बिकती कलमों ने पद्मिनियों को, कामातुर देखा।
बिकती कलमों ने समाज को, दिया विभाजक रेखा।।
ऐसी कलमों ने नारी को नाजुक- अबला माना।
ऐसी कलमों ने भूषण-दिनकर को ना पहचाना।।
कलम बेचने वालों ने, अकबर को सादर पूजा।
कलम बेचने वालों को, राणा जी लगे अजूबा।।
खुसरो, दारा या रहीम इनको न दिखाई देते।
अशफ़ाकों के इंकलाब भी, नहीं सुनाई देते।।
दिखती नूरजहाँ, रजिया पर, नागनिका है गायब?
लक्ष्मी, दुर्गा, झलकारी का भी संग्राम अजायब?
ऐसी ही कलमों ने मिल, लिख दिया सिकंदर जेता।
ऐसी ही कलमों ने मिलकर, कहा नीच को नेता।।
बिकती है जब कलम शिवा- गोबिंद छुपाए जाते।
बिकती है जब कलम नपुंसक, वीर बताए जाते।।
बिकी हुईं कलमें लिख पाएँगी, कुर्बानी कैसे!
बिकी हुईं कलमें लिख पाएँगी, बलिदानी कैसे!!
क्रांति को ऐसी कलमों ने,उग्रवाद लिख डाला।
शोषण के पोषण को ही समाजवाद लिख डाला।।
बप्पारावल, चन्द्रगुप्त, कौटिल्य, हर्ष पर चुप्पी?
ईसा संवत पर उत्सव, निज नये वर्ष पर चुप्पी?
ऐसी सोच कहाँ से लाते हो,ठहरो, समझाओ।
डूब मरो हे कलम फरोशों, किंतु न देश डुबाओ।।
जब विदेशियों के हाथों से,अपनी कलम चलेगी।
सच्चे इतिहासों को तज, मिथ्या इतिहास गढ़ेगी।।
बाल्मीकि, शुकदेव, व्यास, तुलसी ने कलम चलाए।
दुनिया के सम्मुख जीवन की, उत्तम राह दिखाए।।
कलम बेचने वालों का जब लिखा पढ़ाया जाता।
सच मानो,भारत माँ का उपहास उड़ाया जाता।।
अब तो उठो,जाग भी जाओ, अपनी कलम सम्हालो।
सही- सही इतिहास लिखो,लेखक की गरिमा पालो।।
वर्तमान सच्चा हो तो, बुनियादें सच्ची होंगी।
हम अच्छे होंगे, आगामी पीढ़ी अच्छी होगी।
एक कलम सौ-सौ हथियारों से लड़कर जीतेगी।
अवध गुरु होगा भारत, जब कलम सृजन लिक्खेगी।।
डॉ अवधेश कुमार अवध
मेघालय/चन्दौली 8787573644