Categories
विविधा

अंग्रेजी कैलेंडर एक पादरी पोप की सनक है*


लेखक आर्य सागर खारी 🖋️

घटना रोमन सभ्यता से जुड़ी हुई है ।वही सभ्यता जो ईसा पूर्व 500 से ईसा पश्चात 1400 शताब्दी तक अस्तित्व में रही। 15 वी शताब्दी आते अंत हो गई…. रोमन सभ्यता का ईसाई करण हो गया रोमन सभ्यता का पतन उसी समय शुरु हो गया था जब जुलियस सीजर ने रोमन गणराज्य को खत्म कर रोमन साम्राज्य की बुनियाद डाली।
यह साम्राज्य 50 लाख वर्ग किलोमीटर में दक्षिणी यूरोप पश्चिमी एशिया उत्तरी अफ्रीका तक फैला हुआ था। 6 करोड़ आबादी रोमन साम्राज्य से शासित होती थी । ईसाई मत संप्रदाय का उस समय अता पता नहीं था… ईसाइयों में परमेश्वर के पुत्र माने जाने वाली ईसा मसीह का उस समय कोई अता पता नहीं था। रोमन, यूनानीयों की तरह बहूदेव वादी थे तमाम देवी देवता पूजे जाते थे मूर्तिपूजक थे। अब आप कहेंगे यह तो पश्चिमी जगत का हाल है उस समय भारतवर्ष में किसका शासन था? भारतवर्ष में उस समय मौर्य वंश का पतन हो गया था महान आचार्य कौटिल्य (चाणक्य )की मृत्यु हो गई थी… चंद्रगुप्त मौर्य का पोते सम्राट अशोक ने बौद्ध संप्रदाय को स्वीकार लिया था। नास्तिक बौद्ध मत पूरे भारत में फैल रहा था लेकिन आशा की किरण गुप्त वंश के रूप में निकली.. गुप्तों का शासन आया विक्रमादित्य के नेतृत्व में गुप्त वंश के योद्धा विदेशी यूनानीयों कुषाण शक हूण हमलावरों से लोहा ले रहे थे |

अब वापिस रोम पर लौटते हैं… रोम इटली का शहर था जो आज भी है रोमन सभ्यता का केंद्र था… बाद में रोमन कैथोलिक ईसाई मत का केंद्र बना.. रोमन सम्राट जूलियस सीजर मिश्र पर 46 ईसा पूर्व में भयंकर हमला करता है…. उसकी खगोल शास्त्र में थोड़ी दिलचस्पी थी रोमन साम्राज्य में कोई व्यवस्थित कैलेंडर नहीं था… मिस्र के खगोल विद सोसीजेनस के सहयोग से वह रोमन कैलेंडर तैयार करता है जिसे जूलियन कैलेंडर कहा जाता है.. इससे पहले रोम में रोमन कैलेंडर था। इस कैलेंडर में 1 वर्ष में 355 दिन , केवल 10 महीने थे… जूलियस सीजर 25 दिसंबर से अपने रोमन कैलेंडर को शुरू करना चाहता था मगर रोम की जनता के दबाव में अमावस के दिन रोमन सभ्यता में अमावस को पवित्र माना जाता है अर्थात आगामी 1 जनवरी से इसे शुरू किया गया… रोमन द्वारा शासित इजराइल की एक जनजाति में मरियम नाम की कुंवारी लड़की एक बच्चे को जन्म देती है…. उस बच्चे के जन्म को लेकर अलौकिक घटनाओं की चर्चा चमत्कार की घटनाएं रोमन प्रजा में फैलने लगती हैं बाद में वह बच्चा ईश्वर का पुत्र यीशु मसीह कहलाया…. (यह सब यूरेशिया के कबीलों की गप्प थी) रोमन सम्राट 30 वर्ष की आयु में प्रभु का पुत्र कहलाने वाले यीशु मसीह को सूली पर चढ़ा देते हैं…. अभी पश्चिमी जगत में जूलियन कैलेंडर ही लागू है, इसाई कैलेंडर नाम की कोई चीज नहीं है… कालांतर में जब चौथी शताब्दी में ईसाई मत तेजी से फैलता है…. पश्चिमी रोमन सभ्यता का अंत हो जाता है 325 में ईसाइयों की काउंसिल जूलियन कैलेंडर को इसाई देशो का कैलेंडर घोषित कर देती है….। 525 ईसवी में बिशप डायनोसिस बाइबिल में वर्णित घटनाओं के आधार पर निश्चित करता है कि ईसा का जन्म 25 दिसंबर एक ईस्वी को… हुआ जब ईसा मसीह दोबारा जीवित हुए वह 25 मार्च का दिन था ,वह ईसाइयों के कर्मकांड के दिन निश्चित करता है.. यह बड़ा ही हास्यास्पद विषय है ईसा मसीह के जन्म के 400 साल तक पश्चात तक ईसाई तथा ईसाई जगत यीशु मसीह के जन्मदिन की तिथि से अनभिज्ञ थे |

900 सालों तक जूलियन कैलेंडर ही ईसाई कैलेंडर के तौर पर चलता रहा लेकिन 1582 ईसवी में पोप ग्रेगरी नाम का ईसाइयों का 13 वाँ पोप…. यह नोटिस करता है कुछ गणना करता है कि जूलियन कैलेंडर में वर्ष 365.25 दिनों का माना गया है… जबकि असल में ऐसा नहीं है जूलियन कैलेंडर में वर्ष की अवधि 11 मिनट 13 सेकंड अधिक है… इस कारण हम इसाई लोग प्रभु यीशु मसीह से जुड़े हुए हर त्यौहार को 10 दिन के अंतर से मना रहे हैं.. पोप ग्रेगरी इस भूल को सुधारते हुए 4 अक्टूबर 1582 के अगले दिन को 15 अक्टूबर घोषित कर देता है… इतना अजीबोगरीब है यह इसाई कैलेंडर विश्व के इतिहास में 10 दिन लोगों के जीवन से एक ही रात में गायब कर दिए गए… अर्थात 4 अक्टूबर की रात जब इसाई लोग अगले दिन सो कर उठे तो 5 अक्टूबर नहीं सीधा 15 अक्टूबर उनके जीवन में आया.. रोम के ईसाई पोपो ने जो बहुत ही चालाक शातिर थे जैसे तैसे ईसाई मत को फैलाना चाहते थे यूरोप व मध्य पश्चिम एशिया की जनजातियों का उल्लू बनाया…|

सोलवीं शताब्दी के बाद जब अंग्रेज पुर्तगाली स्पेनी लोग दुनिया के अन्य महाद्वीपों में गए वहां उन्होंने ईसाई कैलेंडर को बढ़ा चढ़ाकर प्रचारित किया पूरी दुनिया ने इसे कभी एक साथ नहीं स्वीकारा… जापान ने इसे 1873 में चीन ने 1911 में भारत में प्लासी के युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 1757 में इसे अपने प्रशासित क्षेत्र मैं लागू किया गया.. आपको आश्चर्य होगा फ्रांस जर्मनी रूस ने तो इसे बहुत बाद में स्वीकारा.. ईसाइयों के इस कैलेंडर को अब ग्रेगोरी कैलेंडर कहा जाने लगा |

इससे बेहतर तो दक्षिण अमेरिकी माया सभ्यता के कैलेंडर ,चीनी कैलेंडर ,यहूदी कैलेंडर ,मिश्रीओ के कैलेंडर थे… आज यह ग्रेगोरी कैलेंडर भले ही लगभग सार्वभौमिक बन गया हो मगर इसमें अनेक खामियां हैं… दुनिया के वैज्ञानिक अर्थशास्त्री इससे परेशान है… इससे बेहतर तो जूलियन कैलेंडर था जिसमें जिसमें से यह कैलेंडर निकला है… आज जनवरी फरवरी-मार्च जो हम सुनते हैं यह रोमन देवी देवताओं के नाम है इसमें कुछ रोमन सम्राटों के भी नाम पर नामकरण इन 12 महीनों का हुआ है… ईसाईयों ने इस मामले में इसके साथ छेड़छाड़ नहीं की… उदाहरण के तौर पर जुलाई महीने का नामकरण रोमन कैलेंडर चलाने वाली जुलियस सीजर के नाम पर तथा अगस्त महीने का नाम उसके पुत्र Agustus के नाम पर किया गया है |

ईसाई अर्थात ग्रेगरी कैलेंडर का जो सबसे बड़ा दोष है वह यह है कि यह इसमें महीने के दिन 28 से 31 तक बदलते रहते हैं महीने के दिनों की कोई निश्चित संख्या नहीं है..| वर्ष की प्रत्येक तिमाही में 90 से 92 दिन होते हैं वर्ष के 2 हिस्सों में 181 में 184 दिन होते हैं महीनों में सप्ताह के दिन भी स्थिर नहीं रहते महीना और वर्ष का आरंभ सप्ताह के किसी भी दिन से हो सकता है | इसके कारण नागरिक व आर्थिक जीवन में बहुत कठिनाइयां पैदा होती है… महीने में काम के दिनों की संख्या 24 से 27 तक बदलती रहती है इससे वित्त जमा खर्च तैयार करने में बड़ी दिक्कत आती है सरकारों को…|

दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिकों ने खगोलविद ने जिनमें हमारे भारत के डॉ मेघनाद सहा भी शामिल थे एक विश्व कैलेंडर की आवश्यकता का समर्थन किया था उन्होंने विश्व कैलेंडर का प्रारूप भी तैयार किया था… इसमें हर वर्ष एक सा रहेगा प्रत्येक तिमाही में दिनों की संख्या समान रहेगी अर्थात 91 दिन.. प्रत्येक महीना रविवार के दिन से शुरू होगा… यह पूर्णत वैज्ञानिक है हमारे लिए गर्व का विषय है यह हमारी कलयुग संवत से शत-प्रतिशत मेल खाता है… लेकिन इसमें सप्ताह सिस्टम को स्वीकार किया गया लेकिन हमारी प्राचीन भारतवर्ष में प्रचलित देशी कैलेंडर में तिथियों के साथ केवल महीने के दो पक्ष होते थे…|

विश्व कैलेंडर को जो दुनिया में ईसाई कैलेंडर का स्थान लेता सन 1956 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने पेश किया गया था लेकिन प्रभावशाली पश्चिमी ईसाई देशों के विरोध के कारण उसे स्वीकृति नहीं मिल पाई… उन इसाई देशो ईसाइयों के कारण जिन्होंने ईसा के जन्म से लेकर 1400 सालों तक ईसा के जन्म को 10 दिन देरी से बनाया है उसकी मृत्यु के शौक को भी 10 दिन देरी से किया बल्कि 25 मार्च का दिवस जब मरियम को गर्भवती होने की आकाशवाणी सुनाई दी उसे भी 10 दिन पहले बनाया गया… जिसे लेडी डे कहा जाता है कुछ ईसाई देश आज भी भ्रमित त्रुटि युक्त इस कैलेंडर की वकालत करते हैं कुल मिलाकर ईसाइयों के बारे 12 तोहार है जिनमें चार ईस्टर भी शामिल है 1 जनवरी यीशु मसीह का कोरोनेशन डे है… अर्थात यहूदी,मुसलमानों की तरह उनका भी खतना किया गया था |

पोप ग्रेगरी जैसे धूर्त मनुष्य ने बाइबल की कपोल कल्पना मनगढ़ंत कथाओं को सत्य सिद्ध करने के लिए उस समय तो रोमन जनता को ही उल्लू बनाया था लेकिन आज विज्ञान तकनीक के इस युग में.. जहां ब्रह्मांड के नित नए रहस्य को इंसान ने सुलझाने की दिशा में प्रयत्नशील है चांद मंगल को छू लिया है सूर्य की तैयारी है वह आज भी इस त्रुटि युक्त कैलेंडर को ईसाई मठों चर्चों देशों ने दुनिया पर थोप दिया है…|

लेकिन दुनिया अब इसे ज्यादा सहने वाली नहीं है एक ना एक दिन पूरी दुनिया में वर्ल्ड कैलेंडर जारी होगा जिसका आधार भारतीय ज्योतिष पर आधारित कालगणना पंचाग पद्धति होगी जैसा महान वैज्ञानिक डॉ मेघनाद साहा ने सुझाया था |

आर्य सागर खारी ✍✍✍

Comment:Cancel reply

Exit mobile version