गुप्त साम्राज्य
गुप्त राजवंश के शासकों के द्वारा भी भारत की राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने और राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया गया। इस राजवंश में एक से बढ़कर एक कई प्रतापी शासक हुए। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी। इसके पहले शासक श्री गुप्त थे। जिसने 240 ई0 से 280 ई0 तक शासन किया। श्री गुप्त के बाद उसके पुत्र घटोत्कच ने 280 से 319 ई0 तक शासन किया।गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था।साम्राज्य के पहले प्रमुख शासक चंद्र गुप्त प्रथम थे। उनके पुत्र समुद्र गुप्त ने विजय के माध्यम से साम्राज्य का विस्तार किया। जिससे राष्ट्रीय एकता को मजबूती मिली। इस वंश के शासक चंद्र गुप्त द्वितीय (या विक्रमादित्य, “शौर्य का सूर्य”) उज्जैन तक साम्राज्य का विस्तार करने के लिए मनाया गया।
इस वंश के चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा विक्रमादित्य एक ही व्यक्ति थे। उसके शासनकाल में चीनी बौद्ध यात्री फाहियान ने 399 ईस्वी से 414 ईस्वी तक भारत की यात्रा की। उसने अपने संस्मरण में भारत को एक सुख संपदा संपन्न देश के रूप में स्थापित किया है। चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल को स्वर्ण युग भी कहा गया है।चन्द्रगुप्त एक महान प्रतापी सम्राट था उसके शासनकाल में गुप्त साम्राज्य ने विशेष विस्तार प्राप्त किया था। इसे शकों पर विजय प्राप्त करने के कारण शकारि भी कहा जाता है। चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में उसकी प्रथम राजधानी पाटलिपुत्र और द्वितीय राजधानी उज्जयिनी थी।
उसके दरबार में नौ रत्न थे- कालिदास, धन्वन्तरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, बेताल भट्ट, घटकर्पर, वाराहमिहिर, वररुचि, आर्यभट्ट, विशाखदत्त, शूद्रक, ब्रम्हगुप्त, विष्णुशर्मा और भास्कराचार्य उल्लेखनीय थे। ब्रह्मगुप्त ने ब्राह्मसिद्धान्त प्रतिपादित किया। इसी सिद्धांत की चोरी करते हुए न्यूटन ने इसे अपने नाम से ग्रुप तो आकर्षण के नाम से प्रतिपादित कर दिया।
इसी काल में वराह मिहिर नाम के खगोलविद ने दिल्ली की महरौली में स्थित कुतुबमीनार को वेधशाला के रूप में निर्मित कराया था। जिसे गलत ढंग से कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम से दिखाया गया है। राजवंश के शासनकाल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी।
किसी भी विदेशी आक्रमणकारी शासक के शासनकाल में ज्ञान विज्ञान कला और साहित्य की ऐसी उन्नति नहीं हुई जैसी उन्नति गुप्त काल में हुई थी। इस वंश का साम्राज्य विस्तार 35 लाख वर्ग किलो मीटर था , जो कि आज के भारत से भी अधिक बड़ा था। हमें विदेशी तुर्को ,मुगलों और अंग्रेजों के जमाने में हुई तथाकथित उन्नति के बारे में तो बताया जाता है पर अपने आर्य हिंदू राजाओं के शासनकाल में हुई वास्तविक उन्नति की जानकारी नहीं दी जाती। अपना इतिहास हमें आंख खोलकर पढ़ना चाहिए और तथ्यों, परिस्थितियों के प्रति गंभीर समीक्षात्मक भाव रखकर सच्चाई की स्थापना करनी चाहिए।
मेरी पुस्तक “25 मानचित्र में भारत के इतिहास का सच” से
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत