यह कितना विचित्र है कि हम पाकिस्तान को टेररिस्तान बताकर या कहकर ही पाकिस्तानी विरोध को अंतरराष्ट्रीय पटल पर संबोधित करके अपने कार्य को पूर्ण मान लेते हैं ? 26/11/2008 में मुम्बई के कुछ प्रमुख स्थानों पर गोलीबारी व विस्फोटको से 60 घंटे के लिए बंधक बना कर पूरे महानगर और देश में एक खौफनाक वातावरण बना कर सैकड़ों निर्दोषो को लहूलुहान करवाने वाले लशकर-ए- तोइबा के मुखिया हाफिज सईद को आज 9 वर्ष बाद भी पाकिस्तान ने उसे अपराधी नही माना। जबकि हमारी सरकार ने हाफिज सईद के विरोध में साक्ष्यो के बंडल के बंडल ( डोसियर ) पाकिस्तान को दिए है। फिर भी कुछ दिन पूर्व हाफिज सईद को पाकिस्तान में पंजाब के ज्यूडिशियल रिव्यु बोर्ड ने निर्दोष घोषित करके उसको नजऱबंदी से रिहा करा दिया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान सरकार आतंकवादियों व उनके संगठनो के विरुद्ध गंभीर नही है। ऐसा माना जा रहा है कि वहां के अधिकारियों ने भारत द्वारा दिये गये साक्ष्यों का सदुपयोग नही किया जिससे हाफिज के विरुद्ध कोई ठोस प्रमाण न्यायालय के समक्ष नही आया , जिसका लाभ मिलने से इस आतंकी सरगना की रिहाई संभव हुई। यह अत्यंत दु:खद है कि अमरीका व संयुक्त राष्ट्र द्वारा इन पर प्रतिबंध होने पर भी पाकिस्तान में ऐसा होना यह बताता है कि वहां की सरकार अंतरराष्ट्रीय दबाव नही मानती बल्कि आतंकवाद के दोषी आतंकियों व उनके संगठनों पर कोई ठोस कार्यवाही करने से बचती हैं। यह भी ध्यान रहें कि अमरीका ने हाफिज सईद पर एक करोड़ डॉलर का ईनाम भी रखा हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं न कहीं हमारा नेतृत्व पाकिस्तान के विरुद्ध आवश्यक अमरीकी व अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाने में असफल रहा हैं ? संभवत: हमारी भी कुछ ढुलमुल नीतियों के कारण पाकिस्तान अपने भारत विरोधी चरित्र को यथावत बनाये हुए हैं।
लेकिन ऐसे में हमको भी तो मज़हबी आतंकवाद के विरुद्ध अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से पूर्णत: परिचित होना ही चाहिए ? क्या हमको यह सोच कर कभी कोई शर्म आयी हैं कि बम्बई विस्फोटकों (1993) का षडयंत्रकारी दाऊद इब्राहिम अपने कुछ अन्य साथियों के साथ 34 वर्ष बाद भी पाकिस्तान में ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जी रहा हैं ? हम क्यों भूल जाते है कि जैशे-ए-मोहम्मद का दुर्दान्त मौलाना मसूद अजहर व उसके दो अन्य खूंखार साथियों को (24 दिसम्बर 1999) एयर इंडिया के आईसी 814 प्लेन हाईजेक कांड में कंधार (अफगानिस्तान) में जाकर ( 01 जनवरी 2000 को ) एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री द्वारा स्वयं वहां छोड़ कर आने की क्या विवशता थीं ? आज 17 वर्ष बाद भी तत्कालीन सरकार की वह नीति हमें शर्मसार करती हैं। पाकिस्तान सरकार ने मौलाना मसूद को आज तक हमें नही सौंपा बल्कि आज भी वह पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आई. एस. आई. के अप्रत्यक्ष शरण व सहयोग से पठानकोट व उरी जैसे हमारे महत्पूर्ण सैनिक ठिकानों पर आतंकी आक्रमण करवा कर हमको चुनौती देता आ रहा हैं।
निसंदेह केवल आक्रोशित होकर उत्साहवर्धक बयान तक सीमित रह जाने वाला नेतृत्व आज हमारे देश की नियति बन चुका है ? उन्हें उन सैनिको के कटे हुए सिर व बिछी हुई लाशों पर क्षणिक उबाल अवश्य आता है पर सत्ता के मद व कूटनीति के विमर्श में राष्ट्रहित की प्रमुखता संभवत: विलुप्त हो जाती है । जिहादी पाक के नापाक इरादों को जान कर भी अन्जान बनें रहना हमारी खोखली व आत्मघाती रणनीति का परिचय दे रही है। ऐसी क्या विवशता है कि विश्व मंच पर तो हम पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने व आर्थिक पाबंदी लगाने की वर्षो से कूटनीति अपना रहें है । परंतु स्वयं उसे मोस्ट फेवरिट नेशन की सूची में स्थान देकर अनेक प्रकार से उससे व्यापारिक व सांस्कृतिक संबंधो को बनाये हुए है ? जबकि उसने आज तक हमको अपना फेवरिट राष्ट्र भी नहीं माना है। यह जान कर भी कि वह हमारे यहां आतंकवाद का निर्यात करता है, फिर भी हम उसे आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने के स्थान पर रेल व सडक़ मार्गो की सुविधाओं से परस्पर आवागमन व व्यापारिक आदान प्रदान बनायें हुए है ? वर्षो से वह हमें बार-बार ललकारता है और हम उसे बार-बार पुचकारते हुए वार्ता के लिए पटल पर लाते रहें और लज्जित भी होते रहें। क्या हम उसे कभी वार्ताओं से समझा सकें या समझा सकते है ? हम क्यों इतने उदार बने हुए है ? हम यह क्यों भूल जाते है कि जिस पाकिस्तान के निर्माण का आधार ही धर्मान्धता है जो कि एक ऐसा कड़वा विष है जिसके साथ चाहे कितनी भी मिठास क्यों न घोली जाये वह अपनी कड़वाहट नहीं छोड़ेगा ? अनेक अवसरों पर वर्षो से पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था व आतंकी संगठनों से संबंधित स्थानीय आतंकियों व अपराधियों को पकड़ा जाता आ रहा है । इन्ही देशद्रोहियों के भीतरघातों के कारण हम बार बार पाकिस्तान के जिहादी आक्रमणों को झेल रहे है। जिसके परिणामस्वरूप पिछले 40 वर्षो में सुरक्षाकर्मियों सहित लगभग 85 हज़ार देशवासियों को भी हम खो चुके है। यह विष जिहाद के रुप में शतकों से यथावत विद्यमान है। क्या हम कभी ऐसे पाकिस्तान को उसकी जिहादी मानसिकता से बाहर कर सकें या कर सकते है ? क्या हमको ऐसी विपरीत परिस्थितियों में जब देश का भटका हुआ युवा देश की बर्बादी तक जंग रहेगी जारी और पाकिस्तान जिंदाबाद जैसे देशद्रोही नारे लगाने का दु:साहस करता हो तो पाकिस्तान से संबंध बनाये रखना कहां तक उचित होगा ? अत: क्यों नहीं अविलंब उस नापाक शत्रु पाकिस्तान से सारे संबंध समाप्त कर देने चाहिये ? साथ ही रेल एवं रोड मार्ग सील करके उसको मोस्ट फेवरिट नेशन की सूची से निलंबित कर देना चाहिये । भारत में आये हुए विभिन्न पाकिस्तानी फि़ल्मी व सांस्कृतिक कलाकारों को भी यहां से वापस भेजना एक सार्थक पहल होगी। क्या ऐसा करने से नेताओं को सत्ता की भूख मिटाने वाले मुस्लिम वोट बैंक के टूटने का कोई भय सताता है ? अगर ऐसा है तो देश की संप्रभुता व अखंडता पर बड़े बड़े भाषण व चर्चायें क्या देशवासियों को ठगने के लिए और सैनिको को सीमाओँ पर न्यौछावर करने के लिए होती है ? क्यों नहीं हम आक्रामक नीतियों का सहारा लेते ? पाकिस्तान, पीओके, कश्मीर व देश के अंदर व सीमाओं पर जितने भी आतंकियों के प्रशिक्षण केंद आदि हैं , सबको कूटनीतिज्ञता से पिछले वर्ष ( सितंबर 2016 ) की भांति की गई पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक के समान एक विशिष्ट अभियान चला कर विंध्वस करना होगा। इन सबके अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण कार्य भारत सरकार को सिंधु जल साझेदारी संधि को राष्ट्रीय आवश्यकता के अंतर्गत निरस्त करके उसके सारे जल पर पुन: अपना एकाधिकार करना होगा। जिससे शत्रु की कई नदियां स्वाभाविक रुप से सुख जायेगी जो एक संभावित युद्ध से पहले एक बडा कूटनीतिक कदम होगा। यह एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय दायित्व है । अत: केंद्र सरकार को अन्य सभी राजनीतिक दलो को विश्चास में लेकर राष्ट्र की सुरक्षा के लिए ठोस निर्णय लेने होंगे । ऐसे में सेनाओं को खुली छूट देकर देशद्रोहियों और मज़हबी आतंकियों पर फैसला ओन स्पॉट का आदेश देना भी एक अच्छा निर्णय होगा ? ध्यान रहें जब अंतरराष्ट्रीय संगठन हमारी पीड़ा से कोई सरोकार नहीं रखता तो फिर हम कब तक संयुक्त राष्ट्र संघ व अमरीका आदि की ओर टकटकी लगाते रहेंगे ? अपनी राष्ट्रीय समस्याओं और सुरक्षा के लिए किसी अन्य पर निर्भर न हो कर स्वावलंबी बनना भी एक राष्ट्रवादी विचार के साथ साथ राष्ट्रीय विकास का मुख्य आधार होता हैं।