भूपसिंह भजनावली (उत्तमोत्तम दुर्लभ भजनों का संग्रह) का हुआ विमोचन:
पिछले दिनों आर्य समाज के एक सच्चे सेवक और महर्षि दयानंद के दिखाए मार्ग पर चलने वाले तपस्वी और गृहस्थ के रूप में साधु का जीवन जीने वाले भूप सिंह आर्य की पुस्तक ‘भूपसिंह भजनावली’ का विमोचन कार्य उनके अपने पैतृक गांव हैबतपुर में संपन्न हुआ। इस अवसर पर ‘उगता भारत’ समाचार पत्र के चेयरमैन और वरिष्ठ अधिवक्ता श्री देवेंद्र सिंह आर्य एवं अमर स्वामी प्रकाशन के प्रतिष्ठाता श्री लाजपत राय अग्रवाल की विशेष उपस्थिति रही।
श्री आर्य ने ‘उगता भारत’ समाचार पत्र के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि 1982 से लेकर अब तक वह जंगल जंगल से तिनके चुन-चुन कर लाते रहे, उसी का परिणाम है कि इस पुस्तक का घोंसला तैयार हो सका । श्री आर्य ने कहा कि उन्होंने अनेक संन्यासियों, आर्य विद्वानों, समाजसेवियों और ऋषि दयानंद के प्रति समर्पित व्यक्तित्वों के साथ रहकर या उनका सानिध्य पाकर या उनसे किसी भी प्रकार से जीवन में वार्तालाप आदि करके बहुत कुछ सीखा है। उन अनुभवों के आधार पर ही यह पुस्तक तैयार हो सकी है। जिसे उन्होंने यह सोच कर तैयार किया कि मेरे बाद मेरी एक ऐसी अमिट निशानी संसार में रहे जिससे मेरे विचार को लोग मेरे बाद भी जान सकें और उन विचारों का लाभ उठा सकें।
श्री आर्य ने कहा कि वह जिस समाज में पैदा हुए उसमें अनेक प्रकार की कुरीतियां काम करती रही हैं। जिनसे वह स्वयं और उनका परिवार भी अछूता नहीं रहा, पर जब आर्य समाज जैसी पवित्र संस्था के संपर्क में आए तो वे सारी दुर्बलतायें दूर होती चली गई । अतः आर्य समाज के प्रति वे हृदय से आभारी हैं।
उन्होंने कहा कि मेरी धर्मपत्नी श्रीमती प्यारी देवी ने भी मुझे किसी न किसी प्रकार अपने इस मिशन में लगे रहने की प्रेरणा दी। मेरी हर समस्या में मेरे साथ खड़े रहकर उन्होंने मेरा मनोबल हमेशा बनाए रखा। इसके अतिरिक्त उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन श्री देवेंद्र सिंह आर्य का उन्हें पिछले लगभग 45 वर्ष से सान्निध्य मिलता रहा है। जिनसे उन्हें बहुत कुछ सहायता मिली है। मेरी हर आफत में उन्होंने मेरा साथ दिया है और मेरा मनोबल कभी टूटने नहीं दिया। यही स्थिति श्री लाजपतराय अग्रवाल जी की है जिन्होंने उन्हें अमर स्वामी प्रकाशन के माध्यम से उत्कृष्ट कोटि का साहित्य पढ़ने के लिए दिया और जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
72 वर्षीय भूप सिंह आर्य का कहना है कि मैं आर्य जगत के प्रसिद्ध शास्त्रार्थ महारथी श्री महात्मा अमर स्वामी जी महाराज व उनके शिष्य लाजपत राय अग्रवाल जी के संपर्क में आया तो मेरे जीवन में भारी परिवर्तन अपने आप ही दिखाई देने लगा। जितने भी दुर्गुण दुर्व्यसन मेरे भीतर थे वह सब दूर होते चले गए और आर्य विचारधारा ने मेरे भीतर प्रकाश करना आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे मेरी आर्थिक स्थिति भी सुधरी और मैंने अपने बच्चों परिवार के लिए वे सब साधन सहजता से प्राप्त कर लिए जिनके लिए व्यक्ति को बहुत कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। उनका कहना है कि आज मैं जो कुछ भी हूं वह सब परमपिता परमेश्वर की कृपा और अपने इष्ट मित्र बंधु बंधुओं के कारण हूं।
श्री आर्य के दो पुत्र मनोज आर्य एवं ओमपाल आर्य हैं। जबकि दो ही पौत्र हैं, जिनके नाम अवधेश आर्य और अंश आर्य हैं। इस भजनावली में लगभग 150 भजनों का संग्रह किया गया है। जिनमें श्री भूप सिंह आर्य द्वारा स्वलिखित भजन भी प्रस्तुत किए गए हैं। आर्य सिद्धांतों के लिए समर्पित यह पुस्तक अमर स्वामी प्रकाशन विभाग गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित की गई है। इसके संपादक आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान लाजपत राय अग्रवाल ( वैदिक मिशनरी ) हैं। पुस्तक का मूल्य ₹100 रखा गया है। पुस्तक प्राप्ति के लिए 9910 336715 मोबाइल नंबर पर संपर्क किया जा सकता है।