मध्यप्रदेश विधानसभा में उठाया गया वास्तुदोष का मुद्दा
21वी सदी में राजनीतिज्ञों के अंधविश्वास
मध्यप्रदेश विधानसभा के शुरू हुए शीतकालीन सत्र का पहला दिन विधानसभा भवन में वास्तुदोष के भ्रमित मुद्दे पर उठाए गए प्रश्नों पर होम हो गया। सत्र की शुरूआत दिवगंत विद्यायकों और अन्य नेताओं को श्रद्धांजलि देते हुए शुरू हुआ। इसके तत्काल बाद कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक केपी सिंह ने चौदहवीं विधानसभा में 9 विधायकों की हुई मृत्यु को लेकर विधानसभा भवन में वास्तुदोष की शंका जाहिर कि और सरकार से इसे परंपरा, कर्मकाण्ड और पुराणों में मौजूद उपायों से दूर कराने की मांग की। उनकी इस मांग का समर्थन संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा, उच्च शिक्षा मंत्री जयभानसिंह पवैया, सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग और लघु एवं मध्ययम मंत्री संजय पाठक ने समर्थन किया। कांग्रेस विधायक मुकेश नायक ने दलील थी कि भवन में वास्तुदोष है तो विचार जरूर होना चाहिए। यह बड़ा दुखद प्रसंग है कि हमारे जन प्रतिनिधि एक ओर तो वैज्ञानिक सोच का दावा करते हैं, वहीं दूसरी तरफ अंधविश्वास से भयभीत दिखाई देते हैं। विडंबना यह है कि 1996 से अरेरा पहाड़ी पर स्थित नवनिर्मित इंदिरा गांधी भवन में विधानसभा स्थानांतरित हुई थी, तब से अब तक केवल 32 विधायकों का निधन हुआ है। इनमें से 2-3 विधायकों की दुर्घटना मे मौतें हुई हैं, किंतु अन्य सभी विधायक उम्रदराज होने और लाइलाज बीमारियों की चपेट में आ जाने के कारण काल के गाल में समाए हैं। इनमें से एक भी विधायक की मौत विधानसभा परिसर में नहीं हुई, इसलिए इन मौतों को एकाएक वास्तुदोष का कारण नहीं माना जा सकता है। जरूरत तो यह थी कि माननीय विधायक महाराष्ट्र की तर्ज पर अंधविश्वास के खिलाफ कानून बनाने की पहल करते और इस कानून के जरिए अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाते, लेकिन ऐसा न करके विधायक व मंत्री अंधविश्वास का समर्थन कर रहे हैं तो यह हैरानी में डालने वाली बात है।
अकसर हमारे देश में ग्रामीण, अशिक्षित और गरीब को टोना-टोटकों का उपाय करने पर अंधविश्वासी ठहरा दिया जाता है। अंधविश्वास के पाखंड से उबारने की दृष्टि से चलाए जाने वाले अभियान भी इन्हीं लोगों तक सीमित रहते हैं। आर्थिक रुप से कमजोर और निरक्षर व्यक्ति के टोनों-टोटकों को इस लिहाज से नजरअंदाज किया जा सकता है कि लाचार के कष्ट से छुटकारे का आसान उपाय दैवीय शक्ति से प्रार्थना ही हो सकता है। यह विडंबना उस समय भी देखने में आई थी जब महाराष्ट्र विधानसभा में अंधविश्वास के खिलाफ कानून लाने में भागीदारी करने वाले मंत्री ही अंधविश्वास की मिसाल सार्वजनिक रुप से पेश करने लग गए थे। कानून का उल्लंघन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के तात्कालीन श्रममंत्री हसन मुशरिफ ने किया था। तब इसी पार्टी के एक नाराज कार्यकर्ता ने उनके चेहरे पर काली स्याही फेंक दी थी। इस कालिख से पोत दिए जाने के कारण मंत्री महोदय कथित रुप से ‘अशुद्ध’ हो गए। इस अशुद्धि से शुद्धि का उपाय उनके प्रशंसकों और जानियों ने दूध से स्नान कराकर किया था।
यह वही महाराष्ट्र था, जहां अंधविश्वास के परिप्रेक्ष्य में मजबूत कानून लाने के लिए, लंबी लड़ाई लडऩे वाले अंध-श्रद्धा निर्मूलन समिति’ के संस्थापक नरेंद्र दाभोलकर की हत्या अगस्त 2013 में चंद अंधविश्वासियों ने कर दी थी। हालांकि इसी शहादत के परिणामस्वरुप महाराष्ट्र सरकार अंधविश्वास के खिलाफ कानून बनाने के लिए मजबूर हुई थी और महाराष्ट्र अंधविश्वास के खिलाफ कानून लाने वाला देश का पहला राज्य बन गया था। मध्य प्रदेश के विधायक और मंत्रियों को जरूरत तो यह थी कि वे महाराष्ट्र विधानसभा की इस पहल का अनुकरण करते और अंधविश्वास के विरुद्ध कड़ा कानून बनाते। लेकिन जब विधायक और मंत्री ही टोनों टोटकों के भ्रम से न उबरने पाएं तो कानून अपना असर कैसे दिखा पाएगा ? जाहिर है, जब विधायिका ही अंधविश्वास की गिरफ्त में रहेगी तो सख्त कानून बन भी जाएं तो अंधविश्वास की समाज में पसरी जड़ताएं टूटने वाली नहीं हैं ? क्योंकि देश की राज्य सरकारें अवैज्ञानिक सोच और रुढि़वादी ताकतों से लडऩे का साहस ही नहीं जुटा पा रहीं हैं।
हालांकि अंध-श्रद्धा निर्मूलन कानून इतना मजबूत है कि यदि महाराष्ट्र सरकार अपने श्रममंत्री के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई कर सकती थी। लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव में ऐसा नहीं हो पाया था। इस कानून के दायरे में टोनों-टोटकों के जानिया-तांत्रिक जादुई चमत्कार, दैवीय शक्ति की सवारी, व्यक्ति में आत्मा का अवतरण और संतों के इश्वारीय अवतार का दावा करने वाले सभी पाखंडी आते हैं। साथ ही मानसिक रोगियों पर भूत-प्रेत चढऩे और प्रेतात्मा से मुक्ति दिलाने के जानिया भी इसके दायरे में हैं। हसन मशरुफ इसलिए इस कानून के दायरे में आ सकते थे, क्योंकि उन्हें कालिख पोते जाने के अभिशाप से मुक्ति के लिए दूध से नहलाने का जो टोटका किया गया था।
उसके दृश्य समाचार चैनलों पर दिखाए गए थे। अखबारों में सचित्र समाचार छपे थे। इन सब दृश्यावलियों में हसन मशरुफ पूरी तल्लीनता से मनोकामना पूर्ति के लिए मंत्र-सिद्ध करते नजर आ रहे थे। गोया, राज्य व्यवस्था यदि कानूनी अमल के प्रति दृढ़ संकल्पित होती तो श्रममंत्री बच नहीं पाते ? हालांकि उन्होंने बाद में अपने इस पाखण्ड के लिए माफी भी मांगी थी।
राजनीतिकों के अंधविश्वास का यह कोई इकलौता उदाहरण नहीं है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रहे वीएस येदियुरप्पा अकसर इस भय से भयभीत रहते थे कि उनके विरोधी काला जादू करके उन्हें सत्ता से बेदखल न कर दें ? लेकिन वे सत्ता से बेदखल हुए और खनिज घोटालों में भागीदारी के चलते जेल भी गए। इस दौरान उन्होंने दुष्टात्माओं से मुक्ति के लिए कई मर्तबा ऐसे कर्मकांडों को आजमाया, जो उनकी जगहंसाई का कारण बने। वास्तुदोष के भ्रम के चलते येदियुरप्पा ने विधानसभा भवन के कक्ष में तोडफ़ोड़ कराई। वसुंधरा राजे सिंधिया, रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान ने अपने मुख्यमंत्रित्व के पहले कार्यकालों में बारिश के लिए सोमयज्ञ कराए थे, लेकिन पानी कहीं नहीं बरसा। मध्यप्रदेश के पूर्व समाजवादी पार्टी विधायक किषोर समरीते ने मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कामाख्या देवी के मंदिर पर 101 भैसों की बलि दी, लेकिन मुलायम प्रधानमंत्री नहीं बन पाए ? संत आशाराम बापू, उनका पुत्र सत्य साईं और राम रहीम तो अपने को साक्षात इश्वारीय अवतार मानते थे, आज वे दुर्गति के किस हाल में जी रहे हैं, किसी से छिपा नहीं है। यह चिंतनीय है कि देश को दिशा देने वाले राजनेता, वैज्ञानिक चेतना को समाज में स्थापित करने की बजाय, अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए तंत्र-मंत्र और टोनों-टोटकों का सहारा लेते हैं। जाहिर है, ऐसे भयभीत नेताओं से समाज को दिशा नहीं मिल सकती ?