भारतीय सभ्यता – संस्कृति में वर्ष की सभी पूर्णिमाओं का अपना अलग विशिष्ट महत्व है परन्तु सभी पूर्णिमाओं में माघ मास की पूर्णिमा की तिथि अत्यंत पवित्र मानी गई है और इस दिन किए गए स्नान- ध्यान, यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्त्व माना जाता है। पौराणिक ग्रन्थों में माघ स्नान एवं माघी पूर्णिमा व्रत की विशेष महिमा गाई गई है । पौराणिक मान्यतानुसार यूँ तो माघ की प्रत्येक तिथि पुण्यपर्व है और उनमें भी माघी पूर्णिमा का विशेष महत्व है। पुराणों में माघ मास की पूर्णिमा तीर्थस्थलों में स्नान दानादि के लिए परम फलदायिनी बताई गई है। तीर्थराज प्रयाग में इस दिन स्नान, दान, गोदान एवं यज्ञ का विशेष महत्व बताया गया है। पुरातन भारतीय संस्कृति में माघ महीने में आयोजित होने वाली कुम्भ मेले व कुम्भ स्नान का महत्वपूर्ण स्थान है, परन्तु यह मेला प्रत्येक वर्ष नहीं आता है और बारह वर्ष में एक बार प्रयाग में आयोजित होता है । फिर भी इस स्थल पर प्रयाग में प्रतिवर्ष माघ मास में स्नान- ध्यान व दान करने वाले श्रद्धालु भक्तों की भीड़ लगती है, जो कुम्भ की भीड़ से कम नहीं होती । माघ महीने में आयोजित होने के कारण यह माघ मेला के नाम से प्रसिद्ध है। वैसे यह भीड़ पूरी माह उमड़ती रहती है , लेकिन पूर्णिमा के दिन इस स्थल पर स्नान-ध्यान व दान करने वालों की भीड़ की छटा देखते ही बनती है। पूर्णिमा की तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण यौवन पर होती है। पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणें पूरी लौकिकता के साथ पृथ्वी पर पड़ती हैं। स्नान के बाद मानव शरीर पर उन किरणों के पडऩे से शांति की अनुभूति होती है और इसीलिए पूर्णिमा का स्नान महत्वपूर्ण माना जाता है। माघ स्नान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। माघ में ठंड खत्म होने की ओर रहती है तथा इसके साथ ही शिशिर की शुरुआत होती है। ऋतु के बदलाव का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े, इसलिए प्रतिदिन सुबह स्नान करने से शरीर को मजबूती मिलती है। यही कारण है कि माघ मास व माघ पूर्णिमा का स्नान अति महत्वपूर्ण माना जाता है। परम वैष्णव संत रविदास जी की जयंती भी माघी पूर्णिमा ही है।
उल्लेखनीय है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम तट पर पौष पूर्णिमा के पावन पर्व से लेकर माघ पूर्णिमा तक चलने वाले विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागम को माघ मेला कहते हैं , जिसमें हिन्दू समाज के पूज्य शंकराचार्य, श्रीरामानुजाचार्य, श्रीरामानन्दाचार्य, कबीरपंथी, सिख धर्मगुरु, जैन मतावलम्बी सहित विभिन्न मतों से जुड़े धर्माचार्यों, आचार्यों, साधु-संतों के साथ-साथ उनके श्रद्धालुओं का विशाल संगम होता है और देश-विदेश से करोड़ों लोग स्नान, दान, जप, तप, भजन, प्रवचन के लिए भाग लेते हैं। संगम तट पर आयोजित होने वाले इस धार्मिक आयोजन का इतिहास सिन्धु घाटी की सभ्यता से भी प्राचीन है। पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि समुद्र मंथन में निकले अमृत कलश को छिपाने के लिए गरुड़ को मृत्युलोक में आना पड़ा था। गरुड़ ने जहां-जहां अमृत कलश रखा था और अमृत की बूंदे छलकीं वहां-वहां पावन तीर्थ बन गये। ये पावन तीर्थ प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन हैं। इन्हीं चारो तीर्थों में हिन्दुओं के सबसे पावन धार्मिक आयोजन कुंभ की परम्परा है।संगम तट पर आयोजित होने वाले इस मेले के लिए तीन प्रमुख तिथियां स्नान, दान व अन्य शुभ कार्यों के लिए प्रचलित हैं। इनमें पौष पूर्णिमा, माघ अमावस्या और माघ पूर्णिमा है। इन मुख्य तिथियों का अपना अलग-अलग इतिहास है। संगम तट पर प्रत्येक बारहवें वर्ष लगने वाले कुंभ मेले का इतिहास पहली बार 3464 ईसा पूर्व का मिलता है। इस समय नागा संन्यासी माघ मास की अमावस्या पर संगम स्नान को आते थे, ईसा पूर्व 2382 में महर्षि विश्वामित्र ने माघ मास की पूर्णिमा पर संगम स्नान का महत्व स्थापित किया। जबकि वेदांग के महर्षि ज्योतिष ने ईसा पूर्व 1302 में पौष पूर्णिमा पर संगम स्नान, दान के महत्व का उल्लेख किया है। आज प्रचलित इन पर्वों में माघ मास की अमावस्या सबसे बड़ा स्नान पर्व बन गया है।
पौराणिक मान्यता अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन संगम की रेत पर स्नान-ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण तो होती ही हैं, साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है । माघ माह विशेष के बारे में लौकिक मान्यता है कि इन दिनों देवता पृथ्वी पर आते हैं। सूर्य मकर राशि में आ जाता है। प्रयाग में स्नान-दान आदि करते हैं। देवता मनुष्य रूप धारण करके भजन-सत्संग आदि करते हैं।
माघ पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवता अंतिम बार स्नान करके अपने लोकों को प्रस्थान करते हैं। परिणामस्वरूप इसी दिन से संगम तट पर गंगा, यमुना एवं सरस्वती की जलराशियों का स्तर कम होने लगता है। मान्यता है कि इस दिन अनेकों तीर्थ, नदी-समुद्र आदि में प्रात: स्नान, सूर्य अघ्र्य, जप-तप, दान आदि करने से सभी दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति मिल जाती है। शास्त्र कहते हैं कि यदि माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस दिन का पुण्य अक्षुण हो जाता है।
संगम तट पर पूरे माघ मास तक चलने वाले धार्मिक आयोजनों के विषय में कहा जाता है कि माघ मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो वह पृथ्वी के समीप होता है, साथ ही चन्द्रमा भी पृथ्वी के समीप होता है, इसी समय चन्द्रमा की पृथ्वी से निकटता का प्रभाव संगम के जल पर पड़ता है, जो मानव जीवन के लिए शुभ और लाभकारी होता है। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष करोड़ों लोग संगम तट पर पुण्य और मोक्ष की कामना लेकर यहां आते हैं। । पौराणिक मान्यता के अनुसार पावन संगम तट पर बसे प्रयाग का विस्तार चार योजन तक है। इस सीमा तक किये गये सारे पाप और पुण्य प्रयाग के खाते में आते हैं। इसलिए यहाँ किया गया धार्मिक कृत्य अत्यंत फलदायी होता है।
पौराणिक ग्रंथों में माघ मास में प्रयाग का संगम स्नान व गंगा स्नान का महत्व का वर्णन विस्तार से किया गया है । स्नान के महत्व के विषय में एक पौराणिक उक्ति सर्वप्रचलित है-
अश्वमेघादि कृत्वेको माघकृत तीर्थ नायके।
माघ स्नात्य नामोर्यध्ये पावनत्वेन लक्षयते।।
अर्थात – माघ मास में तीर्थ राज प्रयाग में स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ करने जैसा फल प्राप्त होता है और मनुष्य सर्वथा पवित्र हो जाता है।
पदम् पुराण के अनुसार माघ मास में व्रत, दान व तपस्या से भगवान को उतनी प्रसन्नता नहीं होती है जितनी माघ मास में स्नान से होती है।
पुराणों में प्रयाग का मान बढ़ाते हुए कहा गया है कि-
माघ मासे गमिष्यन्ति गंगा यमुनासंगमें
बह्मविष्णु महादेव रुद्रादित्य मरुदगणा: ।।
अर्थात -ब्रह्मा, विष्णु, महेश, रुद्र, आदित्य तथा मरुद गण माघ मास में प्रयाग राज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं।
प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानरूप यद्धवेत।
दशाश्वेघसहस्त्रेण तत्फलम् लभते भुवि।।
प्रयाग में माघ मास के अन्दर तीन बार स्नान करने से जो फल मिलता है, वह पृथ्वी में दस हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता है।
प्रयाग का धार्मिक, पौराणिक, अलौकिक और आध्यात्मिक महत्व है जो आज के भौतिकवादी युग में भी कम नहीं हुआ है। मानव मन में बैठा पाप का भय व पुण्य की प्राप्ति, मोक्ष, संकटों से मुक्ति की कामना लिए भक्त श्रद्धालुओं की भारी भीड़ स्वमेव संगम की ओर आकर्षित खींची चली आती है। इनमें लाखों श्रद्धालु ऐसे हैं, जो पूरे माघ मास संगम तट पर रहकर स्नान, दान, पूजा, पाठ के साथ धार्मिक आयोजनों में शामिल होते हैं। ऐसे श्रद्धालुओं को कल्पवासी कहा जाता है।
कल्पवास के अपने नियम हैं, जिसमें हमारे जीवन के नियम बनते हैं।
लोक मान्यतानुसार माघ पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज रहता है, जो पाप का शमन करता है। निर्णयसिन्धु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए।
जो लोग लंबे समय तक स्वर्गलोक का आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर अवश्य तीर्थ स्नान करना चाहिए।ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेख है कि माघी पूर्णिमा पर भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं, अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है। महाभारत में उल्लेख है कि इन दिनों में अनेक तीर्थों का समागम होता है। पद्मपुराण के अनुसार माघ-स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं। अन्य मास में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते, जितने कि वे माघ मास में स्नान करने से होते हैं। मत्स्य पुराणका कथन है कि माघ मास की पूर्णिमा में जो व्यक्ति ब्राह्मण को दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। पुराणों में मान्यता है कि भगवान विष्णु व्रत, उपवास, दान से भी उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना अधिक प्रसन्न माघ स्नान करने से होते हैं। यही कारण है कि पुराणपंथी नारायण को पाने का आसान रास्ता माघ पूर्णिमा के पुण्य स्नान को बताया गया है। एक पौराणिक आख्यानानुसार भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इन्द्र भी माघ स्नान के सत्व द्वारा ही श्राप से मुक्त हुए थे। भारतीय परम्परा में पूर्णिमा स्नान की महता का पता इस इस पौराणिक आख्यान से भी स्पष्ट होता है कि जिसमे श्रीराम वन गमन के पश्चात भरत ने कौशल्या से कहा कि यदि राम को वन भेजे जाने में उनकी किंचितमात्र भी सम्मति रही हो तो वैशाख, कार्तिक और माघ पूर्णिमा के स्नान सुख से वो वंचित रहें। उन्हें निम्न गति प्राप्त हो। यह सुनते ही कौशल्या ने भरत को गले से लगा लिया।
इस पौराणिक तथ्य से ही इन अक्षुण पुण्यदायक पर्व का लाभ उठाने का महत्त्व पता चलता है। माघ मास में काले तिलों से हवन और पितरों का तर्पण करना चाहिए। तिल के दान का इस माह में विशेष महत्त्व माना गया है।माघ पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु स्नान, दान, पूजा-पाठ, यज्ञ आदि करते हैं। माघ पूर्णिमा के दिन स्नान करने वाले पर भगवान विष्णु कि असीम कृपा रहती है। सुख-सौभाग्य, धन-संतान कि प्राप्ति होती है। माघ स्नान पुण्यशाली होता है।माघ माह की पूर्णिमा को बत्तीस पूर्णिमा भी कहते हैं। पुत्र और सौभाग्य को प्राप्त करने के लिए मध्याह्न में शिवोपासना की जाती है। पूर्णिमा व्रत की महता के सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है।