धूमधाम से मनाया गया महर्षि का बंगाल आगमन दिवस : समग्र क्रांति के अग्रदूत थे महर्षि दयानंद : आचार्य योगेश शास्त्री
कोलिकाता।( संवाददाता ) महर्षि दयानन्द सरस्वती के बंगाल आगमन दिवस के उपलक्ष्य में प्रान्तीय आर्य वीर दल बङ्गाल ने 16 दिसम्बर 1872 ई० के उपलक्ष में 150 वर्ष पूर्ति पर “महर्षि पदार्पण समारोह” का आयोजन समस्त बंगाल के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में धूमधाम के साथ आयोजित किया , जिसमें महर्षि दयानन्द सरस्वती के प्रथम आगमन के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर स्थापित वैदिक गुरुकुलम् बीड़ा बारासात के ब्रह्मचारियों द्वारा पवित्र वेद की ऋचाओं के माध्यम से सभी आर्य जनों ने यज्ञ में आहुति दी, इस यज्ञ के ब्रह्मा डा० ब्रह्मदत्त आर्य संचालक महर्षि दयानन्दार्ष गुरुकुल कोलाघाट के द्वारा सम्पन्न किया गया ।
समारोह का शुभारम्भ आर्य प्रतिनिधि सभा बंगाल के प्रधान श्री दीनदयाल गुप्ता की अध्यक्षता में प्रारम्भ हुआ । जिसमें सर्वप्रथम पूर्व मेदिनीपुर निवासी पण्डित अपूर्व देव शर्मा ने भजन द्वारा महर्षि महिमा का गुणगान किया तथा उपस्थित जन समुदाय ने महर्षि के संकल्पित कार्य – वेद विद्या की प्रतिष्ठा, सोलह संस्कारों का चलन , आश्रम व्यवस्था को समाजिक परिवेश में स्थापत्य करना , सामाजिक समरसता का विस्तार, अस्पृस्यता , अभक्ष्य पदार्थों के सेवन , नशादि दोषों में लिप्त युवाओं का परिमार्जन ।
इस अवसर पर “शताब्दोत्तर स्वर्ण जयन्ती समारोह ” के व्यापक कार्यक्रमों की घोषणा की गई , जो अनवरत क्रमश: कई महीनों तक चलेंगे । इस अवसर पर आचार्य राहुलदेव धर्माचार्य आर्य समाज बडाबाजार, पं० बिभाष सिद्धान्तशास्त्री प्रचारक ,श्री रमेश अग्रवाल आदि विशिष्ट जनों ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
इस सम्पूर्ण कार्यक्रम का सञ्योजन एवं सञ्चालन आचार्य योगेश शास्त्री ने किया । उपस्थित जनों को संबोधित करते हुए श्री योगेश शास्त्री ने कहा कि स्वामी दयानंद की प्रेरणा से 1857 की क्रांति का शुभारंभ हुआ था और जब आर्य जनों ने राष्ट्रीय स्वाधीनता को अपना संकल्प बना लिया तो एक दिन अंग्रेजों को यहां से भागना पड़ा। उन्होंने कहा कि स्वामी जी महाराज ने सामाजिक ,राजनीतिक, धार्मिक सभी क्षेत्रों में क्रांति के बीज बोए। महर्षि दयानंद समग्र क्रांति के अग्रदूत थे। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम स्वामी दयानंद जी के अधूरे कार्यों को पूर्ण करें। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज 1947 के पश्चात जिस शिथिलता का शिकार हुआ उसे राष्ट्र के लिए किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता। आज हमें फिर नई ऊर्जा, नए संदेश और नई प्रेरणा शक्ति के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की भूमि विद्वानों, सन्यासियों, योगियों और देशभक्तों की भूमि है । आज यहां पर जिस प्रकार के राजनीतिक हालात बने हुए हैं यह सब हमारी संस्कृति का विनाश करने के लिए सोच समझ कर बनाए जा रहे हैं । जिनका सामना हमें ऋषि की शैली में करना होगा