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आज का चिंतन

आर्ष किसे कहते हैं ?

आर्य शब्द ऋ (गतौ) धातु से तथा अर्य शब्द से तद्धित में बनता है। गति से क्रियाशील अर्थ आर्य का सिद्ध होता है। यह क्रियाशीलता और कर्म शीलता का प्रतीक है। इसमें नैरंतर्य है, सतत साधना है, प्रगति और उन्नति की ऊंचाई की ओर बढ़ने का शिव संकल्प है। इसीलिए कहा जाता है कि गतेस्त्रयोऽर्थाः ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्च अर्थात जो तत्सम्बद्ध ज्ञान के अनुरूप कर्म करके फल प्राप्त करता है। अतः क्रियाशील रहना कर्मशील बने रहना और जीवन को सार्थकता की ऊंचाई में ढालकर निरंतर प्रगति की ओर बढ़ते रहना आर्य की पहली पहचान है।
पाणिनि अष्टाध्यायी के आधार पर इसका अर्थ ईश्वरपुत्र (आर्य ईश्वरपुत्रः, निरुक्त), स्वामिपन=अर्थात् किसी अनुशासन से युक्त आर्य कहलाता है, मर्यादा, धर्म पालन, संतुलित जीवन शैली आर्यत्त्व की पहचान है।
संस्कृत-हिन्दी भाषा के सभी कोशों में आर्य शब्द का श्रेष्ठ, पूज्य अर्थ दर्शाया गया है। अतएव अपने पूज्यों, बड़ों को आर्य शब्द से पुकारा जाता है। वशिष्ठ स्मृति के अनुसर जो कर्त्तव्यकर्म को करता है, प्रकृति के नियमों को पालता है, व्रती है वह आर्य है। न वैरमुद्दीपयति- इत्यादि शब्दों द्वारा महाभारत में आर्य का विस्तृत वर्णन आता है। आर्य शब्द का यह विवेचन विशेष प्रेरणाप्रद है। इसके साथ आर्य शब्द उच्चारण में सरल, श्रवण में सरल, मधुर, आकर्षक और स्पष्ट है। आर्य वैर विरोध से भी दूर रहता है। वैर को दूध पिला पिलाकर बड़ा नहीं करता अपितु उसे मारता रहता है।
इस प्रकार आर्य आर्यत्व एक जीवन शैली है। जिसे ऋषियों ने संपूर्ण मानव जाति के लिए विकसित किया।
चिंतन के अधिष्ठाता को ऋषि कहा गया है। ऋषियों का चिंतन सृष्टि नियमों के अनुकूल होता है और सृष्टि की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कार्य करता रहता है। सृष्टि नियमों के अनुकूल सृष्टि की व्यवस्था को बनाए रखने का चिंतन की ऋषियों का अर्थात अर्थात आर्ष चिंतन है। प्राणी मात्र के हितचिंतन की उत्कृष्ट और पवित्र भावना से निकले इस पवित्र चिन्तन से ही और आर्ष ग्रंथो और आर्ष साहितय का निर्माण होता है। हर कोई ग्रंथ आर्ष ग्रंथ नहीं कहलाता।
अतः मेरी दृष्टि में आर्ष का अर्थ ऋषियों का प्राणियों के कल्याण हेतु निकला चिंतन है। वह पवित्र भाव है जो निष्पक्ष रहकर सबके लिए जीवन जीने की स्वभाविक ऊर्जा उत्सर्जित करता है। ऐसे ही आर्य विचारों के लोगों को श्रेष्ठ कहा जाता है ।उनकी श्रेष्ठता ही आर्ष है। परमपिता परमेश्वर ने भी यह भूमि आर्यों को दी है। इसका अभिप्राय है कि आर्ष अर्थात ऋषियों की संस्कृति का प्रचार प्रसार करना हम सब का नैतिक दायित्व है।

डॉ राकेश कुमार कार्य
संपादक उगता भारत

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