क्रिया से भी श्रेष्ठ है,
हृदय के सद्भाव ।
स्थितप्रज्ञ की ओर चाहिए,
निरखै मन के भाव ॥2011॥
प्रेम के संदर्भ में
प्रेम के धागे से बंधे ,
जितने जग के जीव ।
प्रेम से ही प्राप्त हो,
मेरा प्रिय जीव॥2100 ॥
आत्मा और परमात्मा के संदर्भ में
एक डाल पर दो खग बैठे,
जोने कोई सुजान ।
एक कर्म में लीन है,
दूजा ले सज्ञान॥2101॥
दिव्य जीवन के संदर्भ में
भद्रो का संचय करो,
दुरितों का करो त्याग ।
दिव्य जीवन के लिए,
ऐसा हो अनुराग ॥2102 ॥
भद्र अर्थात् सद्गुण, अच्छाई
दुरित अर्थात् दुर्गुण, बुराई
वेदों के मंत्रों में अनन्त शक्ति निहित है बशर्ते कोई इन्हें आत्मसात करे –
वेदों के जो मंत्र है,
ऊर्जा के भंडार ।
युगो – युगो से करते आये,
मानव का उद्धार॥2103॥
मल विक्षेप और आवरण के संदर्भ में
मल विक्षेप और आवरण,
से चित्त दूषित होय।
प्राणायाम जप स्वाध्याय से,
चित्त निर्मल होय॥2104॥
मल से अभिप्राय है अज्ञान की चित्त पर धूल जमना जैसे शीशे पर धूल जम जाती है ।
विक्षेप से अभिप्राय है चित्त का हिलना – डुलना अर्थात् चित्त का अहस्थिर होना । आवरण से अभिप्राय है पटाक्षेप होना जैसे शीशे पर काला कागज चिपका देना यानि कि चित्त पर अहंकार के पर्दे के कारण सत्य को स्वीकार न करना ।
चित्त को निर्मल करने के उपाय –
1- जप – अजपा -जप करना ।
2- प्राणायाम करना ।
3- स्वाध्याय करना अर्थात् स्वयं का अध्ययन करना, आत्मनिरीक्षण करना ।
परिवारिक प्रेम का क्षरण कैसे होता है
अपनों की चुगली करें ,
गैरों से करें मेल ।
ऐसी बुरी आदतें ,
बिगाड़े घर का खेल॥2105॥
आत्मा पवित्र कैसे होती है
आत्मा होय पवित्र तब,
करे ओ३म् का जाप ।
कामनाएं पूर्ण हो ,
मिटे शोक सन्ताप॥2106॥
क्रमशः