विश्व के कई देशों में मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वहां के केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि की जा रही है। विशेष रूप से अमेरिका में ब्याज दरों में की जा रही वृद्धि का असर अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ रहा है क्योंकि अमेरिकी डॉलर वैश्विक स्तर पर किए जाने वाले आर्थिक व्यवहारों के निपटान का एक सशक्त माध्यम है। इस कारण के चलते सामान्यतः कई देशों में विदेशी निवेश भी अमेरिकी डॉलर में ही किए जाते हैं। अभी हाल ही में अमेरिकी केंद्रीय बैंक (यूएस फेड) ने अमेरिका में ब्याज दरों में लगातार तेज वृद्धि की है क्योंकि अमेरिका में मुद्रा स्फीति की दर पिछले 40 वर्षों के एतिहासिक स्तर पर पहुंच गई है। ब्याज दरों में की गई तेज वृद्धि के कारण अन्य देशों में विशेष रूप से वहां के पूंजी बाजार (शेयर मार्केट) में अमेरिकी डॉलर में किए गए निवेश को निवेशक वापिस खींच रहे हैं एवं यह राशि अमेरिकी बांड्ज में निवेश कर रहे हैं क्योंकि इस निवेश पर बिना किसी जोखिम के तुलनात्मक रूप से अच्छी आय प्राप्त हो रही है। इस सबके चलते पूरे विश्व में अमेरिकी डॉलर की मांग बढ़ गई है एवं स्वाभाविक रूप से अमेरिकी डॉलर की कीमत भी अन्य देशों की मुद्राओं की तुलना में बहुत महंगी हो गई। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि अमेरिकी डॉलर की कीमत बढ़ रही है और अन्य देशों की मुद्राओं का अवमूल्यन हो रहा है। भारत में भी अब यह कहा जाने लगा है कि रुपए का तेजी से अवमूल्यन हो रहा है अर्थात अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत तेजी से गिर रही है, परंतु भारत के संदर्भ में ऐसा कहा जाना तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है।
अमेरिका के केंद्रीय बैंक अर्थात यूएस फेड ने हाल ही में ब्याज दरों में बहुत बढ़ौतरी की है इससे अमेरिका में निवेश करने के लिए अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता एवं मांग पूरे विश्व में बढ़ रही है। इसकी वजह से अन्य समस्त देशों की मुद्राओं यथा यूरो, पाउंड, येन, रूबल, यूआन, रुपए आदि का, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले, अवमूल्यन हो रहा है। जिस प्रकार की महंगाई की दर कई देशों में चल रही है, जो कई यूरोपीयन देशों में तो यह पिछले 50 साल के एतिहासिक स्तर पर है, इसे नियंत्रित करने के लिए अमेरिका सहित ये सभी देश ब्याज दरों को बढ़ाते चले जा रहे हैं जिससे अन्य देशों की मुद्राओं पर तो दबाव आ रहा है परंतु अमेरिकी डॉलर मजबूत होता जा रहा है।
विश्व की 6 बड़ी सबसे बड़ी मुद्राओं की कीमत की तुलना में अमेरिकी डॉलर की कीमत लगभग 18 प्रतिशत बढ़ गई है। अमेरिकी डॉलर का विश्व में एक रिजर्व मुद्रा के रूप में उपयोग हो रहा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विदेशी व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है अतः इन व्यवहारों का भुगतान करने के लिए सभी देशों को अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होती है। साथ ही, अमेरिकी संस्थानों का अन्य देशों के पूंजी बाजार में जो निवेश था वह निवेश भी अमेरिकी संस्थानों द्वारा निकाला जा रहा है और निवेश की इस राशि को अमेरिकी बांड्ज में लगाया जा रहा है। लगभग दो साल पहिले तक अमेरिकी बांड्ज पर ब्याज दर केवल 25 बेसिस पाइंटस थी जो आज बढ़कर 325 बेसिस पाइंटस से अधिक हो गई है।
भारतीय रुपए के अवमूल्यन की यदि चर्चा की जाय तो रुपए का यह अवमूल्यन वर्ष 1947 के बाद से लगातार हो रहा है। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय वर्ष 1947 में अमेरकि डॉलर की तुलना में रुपए की कीमत एक रुपया तय की गई थी। अर्थात 1 अमेरिकी डॉलर 1 भारतीय रुपए के बराबर था। परंतु, एक अमेरिकी डॉलर की कीमत वर्ष 1967-1971 के बीच 7.50 रुपए पर आ गई, वर्ष 1988-89 में 14.40 रुपए हो गई, वर्ष 1991-92 में 24.40 रुपए हो गई, वर्ष 2001-02 में 47.69 रुपए हो गई, वर्ष 2013-14 में 60 रुपए एवं वर्ष 2021-22 में 74 रुपए हो गई और आज लगभग 83 रुपए हो गई है। इस प्रकार अमेरिकी डॉलर की कीमत लगातार बढ़ती गई है और भारतीय रुपए का अवमूल्यन होता रहा है।
यहां भारतीय रुपए की तुलना यदि अमेरिकी डॉलर को छोड़कर अन्य देशों की मुद्राओं से की जाय तो यह आभास होता है कि हाल ही के समय में अन्य मुद्राओं का भारतीय रुपए की तुलना में अधिक तेज गति से अवमूल्यन हुआ है और इन मुद्राओं की तुलना में भारतीय रूपया मजबूत हुआ है। इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए का अवमूल्यन हुआ है। इस तथ्य को इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि अमेरिकी डॉलर की तुलना में अन्य देशों की मुद्राओं का कितना अवमूल्यन हुआ है और भारतीय रुपए का कितना अवमूल्यन हुआ है। जापान येन का अमेरिकी डॉलर की तुलना में 22 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ है, ब्रिटिश पाउंड का 20 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ है, यूरो का 15 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ है, दक्षिण कोरिया की मुद्रा का 15 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ है, आस्ट्रेलिया की मुद्रा का 12 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ है वहीं चीनी यूआन एवं भारतीय रुपए का 10 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ है। चूंकि अन्य देशों की मुद्राओं का भारतीय रुपए की तुलना में अधिक अवमूल्यन हुआ है अतः भारतीय रूपए की कीमत इन देशों की मुद्राओं की तुलना में बढ़ गई है।
लगभग उक्त प्रकार का ट्रेंड एशिया स्थित विभिन्न देशों की मुद्राओं के संदर्भ में भी दिखाई दिया है। वर्ष 2022 में अमेरिकी डॉलर की तुलना में फिलिपींस की मुद्रा का 16 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ है, सिंगापुर की मुद्रा का 6 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ है, मलेशिया की मुद्रा का 11 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ है, चीन की मुद्रा का 10.4 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ है एवं भारतीय रुपए का 10.25 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ है।
कई विकसित देशों एवं एशिया के कई देशों की मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपए का अमेरिकी डॉलर की तुलना में कम अवमूल्यन होने के कारणों में मुख्य रूप से शामिल हैं भारतीय अर्थव्यवस्था का लगातार मजबूत रहना और देश में आर्थिक विकास की गति का तेज होना। हाल ही के समय में भारत से निर्यात भी तेज गति से बढ़ रहे हैं जिसके चलते अमेरिकी डॉलर की भारत में आवक बढ़ी है। दूसरे, भारत में विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ता जा रहा है जो कि सामान्यतः अमेरिकी डॉलर में ही होता है। इसके चलते भारत के पास पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा का भंडार मौजूद है। हालांकि भारत में आर्थिक प्रगति के चलते वस्तुओं, विशेष रूप से कच्चे तेल, का आयात बहुत अधिक मात्रा में हो रहा है, इससे व्यापार घाटा बहुत अधिक मात्रा में हो गया है। भारत के कुल आयात में 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा कच्चे तेल के आयात का रहता है और देश में कच्चे तेल की कुल मांग का लगभग 80 प्रतिशत भाग आयात किया जाता है जिसका भुगतान अमेरिकी डॉलर में करना होता है। अभी पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें भी बहुत बढ़ गईं थी जिससे भारत के लिए अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता बहुत बढ़ गई थी। अमेरिकी डॉलर की मांग अधिक होने के चलते डॉलर मजबूत होता गया और रुपए का अवमूल्यन होता रहा। भारत में महंगाई बढ़ने के पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ने के साथ साथ अमेरिकी डॉलर के मजबूत होते जाना भी बहुत बड़ी वजह मानी जाती है। इन सभी कारणों के चलते भी भारत में महंगाई की दर विकसित देशों की तुलना में कम ही है। अमेरिका में महंगाई की दर 8 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है जो कि लगभग 3 वर्ष पूर्व तक 2 प्रतिशत के अंदर रहती थी, यूरोपीयन देशों में 9 प्रतिशत के आसपास है तो भारत में महंगाई की दर लगभग 7 प्रतिशत है जो कि कुछ वर्ष पूर्व तक 10 प्रतिशत से भी अधिक रहती थी।
अब भारत कई देशों से समझौते करता जा रहा है, जिसके अंतर्गत इन देशों के साथ होने वाले विदेशी व्यापार के व्यवहारों के भुगतान भारतीय रुपए अथवा उन देशों की मुद्राओं में एक दूसरे को किये जाएंगे। भारत के इस कदम से भारत की अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम होगी। विशेष रूप से रूस एवं ईरान से किए जा रहे इन समझौतों से विशेष प्रभाव पड़ेगा क्योंकि वर्तमान में इन देशों से भारत कच्चे तेल का आयात बहुत बड़ी मात्रा में कर रहा है। अतः अब आगे आने वाले समय में भारतीय रुपया और अधिक मजबूत होगा, ऐसी आशा की जा रही है।
प्रहलाद सबनानी
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।