‘सत्यार्थ प्रकाश’ महर्षि दयानंद की अमर क्रांति

संसार में जितने भी ऋषि, महात्मा हुये है-हालांकि उनकी आपस में तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि प्रत्येक अपने-अपने विषय में महान थे। परन्तु महर्षि दयानन्द को महर्षि की उपाधि इसलिये मिली क्योंकि अन्य ऋषियों ने जहां अपने-अपने धर्म या मान्यताओं का गुणगान किया वहीं महर्षि दयानन्द ने अपने धर्म व मान्यताओं का गुणगान तो किया, परन्तु सबसे पहले अपनी कमियां, धर्मांधता, पाखण्ड, कुरीतियों पर प्रहार किया और फिर उन्होंने अपने अमर ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की रचना करके दुनिया को रास्ता दिखाया, क्योंकि यह वह अमर ग्रन्थ है जिसमें उन्होंने न सिर्फ सनातन व वैदिक धर्म पर अपितु जितने भी मत मतान्तर चल रहे थे सभी पर सही व गलत टिप्पणी बेबाक की। जिसमें उन्होने सर्वप्रथम अपने धर्म में फैली बुराइयों पर ही प्रहार किया और कहा-यदि मैं अपने धर्म की कमियों को नही बताऊगा तो फिर पक्षपाती कहलाऊगां। यही नहीं उन्होंने हर धर्म की बुराइयों, पाखण्डों पर भी प्रहार किया। इसके लिए उन्होंने कुरान, बाइबिल, जैन, बौद्ध, चारवाक आदि हर मत, मजहब पर बेबाकी से अपने विचार रखे तथा इसमें लिखे 14 समुल्लासों में जीवन की हर कला का ध्यान रखा। भगवान कहां रहता है? कैसा है? संतान उत्पत्ति से पहले व बाद में हमारे क्या कत्र्तव्य है? बच्चों की शिक्षा-दीक्षा कैसी होनी चाहिए? शादी विवाह, जात-पात, सती-प्रथा, भूत-प्रेत, पिशाच, आदि पाखण्डों तथा पाखण्डियों पर गहरा प्रहार किया। पूजा कैसे करें ? और किसकी करें? पत्थर पूजा का विरोध तथा जीवित देवताओं की पूजा, जीवित माता-पिता की सेवा को परम धर्म तथा स्त्री शिक्षा पर बल दिया जिसका इस समाज पर बहुत बडा प्रभाव पडा तथा परिवर्तन हुआ। अत: हमें महर्षि के बताये मार्ग यानि वैदिक व्यवस्था को सर्वोपरि मानकर उसी पर चलना ही उत्तम बताया। यहां मैं जोर देकर यह कहना चाहता हूँ कि महर्षि दयानन्द ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ लिखने से पहले सभी धर्मो की पुस्तकों का गहन अध्ययन करके उसका निचोड़ निकाला जो अन्य किसी भी ऋषि के सन्दर्भ में नही कहा जा सकता। अत: यह धर्म ग्रन्थ सभी धर्मो का निष्कर्ष है और इसी कारण यह अनुपम ग्रन्थ कहा जायेगा जिसने लाखों करोडों लोगों का जीवन ही बदल दिया।
यही नहीं स्वाधीनता पर महर्षि दयानन्द ने जो लिखा इससे उनके दीवाने स्वतंत्रता संग्राम में कूद गये और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताभिपट्टारमैया यह कहने पर मजबूर हुये कि स्वतंत्रता संग्राम में लगभग 85 प्रतिशत लोग महर्षि दयानन्द से प्रभावित थे। दादा भाई नौरोजी एक महान स्वतंत्रता सेनानी व राजनेता ने कहा स्वराज्य शब्द मैंने सर्वप्रथम महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के ग्रन्थ से सीखा। महर्षि दयानन्द ने लिखा है कि विदेशी राजा अपनी प्रजा को चाहे पुत्रवत ही क्यों न प्यार करें परन्तु वह स्वदेशी राजा से अच्छा हो ही नहीं सकता, और उनके ग्रन्थों को पढक़र ही स्वामी श्रद्धानन्द जैसे महात्मा बनें जिन्होने इतिहास को ही बदल दिया। जिनके बारे में यह लिखा जाना उचित ही है-
वह निर्भीक वतन अनुरागी, बना हुआ एक शोला था।
अत्याचारी अरि के सन्मुख, जिसने सीना खोला था।।
बलिदानों की अमर कथा को, शब्दों में दोहराता हूँ।
आज महर्षि दयानन्द को, श्रद्धा सुमन चढा ||

राकेश आर्य (बागपत) 

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