उपराष्ट्रपति जी, वो भारत के भगवान बन गए हैं
उपराष्ट्रपति जी, वो भारत के भगवान बन गए हैं, वो सरकार चला रहे हैं बिना किसी जिम्मेदारी के, केवल NJAC Act पूरा खारिज किया, बाकी सभी संविधान संशोधन आंशिक रूप से ख़ारिज हुए।
कल उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ जी ने दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट को NJAC Act, 2014 को ख़ारिज करने के लिए फटकार मारी है। उन्होंने सांसदों से सही कहा कि संसद और सदन के संवैधानिक अधिकारों और गरिमा को अक्षुण्ण रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। उनका कहना सुप्रीम कोर्ट को आइना दिखाना है कि NJAC Act सर्वसम्मति से पारित होने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट का उसे यह कहते हुए रद्द करना कि यह न्यायपालिका और संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के विरुद्ध है, संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता है।
यह संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता नहीं है बल्कि संसदीय संप्रभुता के लिए न्यायपालिका से गंभीर खतरा और चुनौती है। न्यायपालिका ने अपने आप को “Supreme” साबित किया जिसकी नज़र में 125 करोड़ जनता के “जनादेश” की कोई कीमत नहीं है जबकि जनमत ही देश में सर्वोच्च होना चाहिए। आज भी यही हो रहा है।
धनकड़ जी ने 4 दिन पहले कहा था कि विधायिका और कार्यपालिका का काम नहीं कर सकती अदालतें मगर वो सब कुछ कर रही हैं जैसे उन्हीं से देश चल रहा है। अदालतों में न्यायाधीश तो भगवान बन चुके हैं। 750 सांसदों द्वारा पारित संविधान संशोधन भला 2, 3 जज कैसे ख़ारिज कर सकते हैं।
न्यायपालिका प्रशासन का कोई ऐसा कार्य नहीं है जिसमे दखल न दे रही हो। संसद द्वारा पारित कानूनों में न्यायाधीश अपने निजी मत के अनुसार कानूनों को तोड़ मरोड़ रहे हैं। उदहारण के लिए, शादी की आयु संसद के कानून ने 21 वर्ष तय की है चाहे लड़की हो या लड़का मगर अदालतें उसमे शरिया कानून घुसा रही हैं और 12, 15 वर्ष की मुस्लिम लड़कियों की भी शादी की अनुमति दे रही हैं। MTP, Act 2021 के नियमों में जो नहीं भी थे वो भी नियम जस्टिस चंद्रचूड़ ने घुसा दिए। 6 साल से नोटबंदी का केस नहीं सुना और आज रोज सरकार को झाड़ मार रहे हैं। इनकी हिम्मत इतनी है कि सेना प्रमुख और पूरी सेना को अवमानना के नोटिस की धमकी देते हैं। कॉलेजियम से जजों की नियुक्ति करने वाले राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी हड़का देते हैं।
अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने 8 संवैधानिक संशोधन खारिज किये हैं जिनमें 7 संशोधनों को आंशिक रूप से ख़ारिज किया है परन्तु NJAC का 99वें संशोधन पूरी तरह से ख़ारिज किया गया यानी 125 करोड़ जनता द्वारा पास किया गया कानून 4 जजों ने ख़तम कर दिया जबकि न्यायपालिका खुद पक्षकार होने के नाते उस पर फैसला लेने का अधिकार नहीं रखती थी।
संविधान के 97वें संशोधन को (Multi State Cooperative Societies से संबंधित) को ख़ारिज करते हुए जस्टिस RF Nariman, K.M. Joseph and B.R. Gavai ने कहा “We have struck down part IX B of the Constitution related to cooperative societies but we have saved the amendment.” कितना बड़ा अहसान किया।
संशोधन को ख़ारिज करने का एक आधार यह भी दिया कोर्ट ने कि इसे आर्टिकल 368 (2) में आधे राज्यों की विधान सभाओं से पास कराना जरूरी था जो नहीं हुआ। फैसला 2:1 से हुआ।
इसके विपरीत NJAC 99वां संशोधन 29 में से 16 विधान सभाओं से पास हुआ था (Ratify) था और राष्ट्रपति ने अनुमोदित कर दिया था मगर फिर भी ख़ारिज किया गया।
केशवानंद भारती केस में 1973 में कहा गया कि संविधान का मूलस्वरूप (Basic Structure) नहीं बदला जा सकता और यह भी माना गया कि Preamble संविधान का हिस्सा है मगर संविधान का 42वां संशोधन सम्पूर्ण विपक्ष को जेल में डाल कर पास कराया गया और Preamble में Socialist & Secular शब्द घुसा दिए गए मगर सुप्रीम कोर्ट उसे ख़ारिज नहीं किया।
संसद में एक प्रस्ताव पास कराया जाए जिसमे न्यायपालिका को उसकी हदें बताई जाए, सरकार के हर किसी मामले में न्यायपालिका के हस्तक्षेप को रोकना होगा।