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स्वामी विवेकानंद रूपया में से अठन्नी हैं तो महर्षि दयानंद 2000 का नोट हैं

संतोष सिन्हा
श्री रामनाथ लूथरा एक हिंदूवादी चिन्तक हैं जो कि भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास के लिए विशेष कार्य करते रहते हैं। इनका मानना है कि महर्षि दयानंद के पुरूषार्थ से यह देश कभी भी उऋण नहीं हो सकेगा। श्री लूथरा ने ‘उगता भारत’ के साथ एक विशेष बातचीत में कहा कि महर्षि दयानंद ने अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश का निर्माण कर हिंदू समाज पर बहुत भारी उपकार किया है। मेरा मानना है कि उनके उपकारों की गिनती यदि रूपयों में की जाए तो वह अरबों रूपया है। परंतु कुछ लोग और खासतौर से आरएसएस जैसे संगठन उन्हें मूर्ति पूजा का विरोधी होने के कारण अधिक भाव नहीं देता। जबकि एक बार को यदि यह मान भी लिया जाए कि महर्षि दयानंद मूर्ति पूजा के विरोधी थे और इसलिए वह हिंदू समाज के भी विरोधी थे तो उनके इस विरोध का मूल्य रूपया में से केवल चवन्नी भर होगा। उनके अरबों रूपये के उपकारों के सामने चवन्नी कुछ भी मायने नही रखती। लेकिन इसके बावजूद भी कुछ लोगों ने महर्षि दयानंद को उपेक्षित करना आरंभ किया और उनके सामने स्वामी विवेकानंद का गुणगान करना आरंभ किया।
श्री लूथरा कहते हैं कि वह स्वयं पौराणिक हैं और मूर्ति पूजा करते हैं। परंतु मैं मूर्ति पूजा के बिंदु पर चवन्नी भर महर्षि दयानंद से असहमत होकर भी उनके अरबों रूपयों के उपकारों को उपेक्षित नहीं कर सकता। मैं स्वामी विवेकानंद का व्यक्तिगत रूप से सम्मान करता हूं और यह भी मानता हूं कि इतिहास में जितना भी विवेकानंद के लिए स्थान मिलना अपेक्षित है उतना उन्हें मिलना चाहिए-परंतु मैं यह भी निसंकोच और डंके की चोट कहना चाहता हूं कि स्वामी विवेकानंद अपने कार्यों की वजह से यदि रूपया में से अठन्नी भर हैं तो महर्षि दयानंद तो 2000 रूपये का बंधा हुआ नोट हैं। जिन्होंने हमें सही समय पर आकर जगाने का कार्य किया। आज हमारा हिंदू समाज महर्षि दयानंद के उपकारों के कारण बचा हुआ है। जिन्होंने अपने समय में विभिन्न संप्रदायों के द्वारा चलाये जा रहे ‘हिंदू मिटाओ अभियान’ को ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के माध्यम से रोकने का सफल प्रयास किया था। यदि महर्षि दयानंद ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में विभिन्न सम्प्रदायों और खासतौर से इस्लाम और ईसाइयत का कच्चा चिट्ठा न खोलते तो यह देश हिंदू देश के रूप में न तो स्वतंत्र होता और न ही आज यहां पर हिंदू समाज का बोलबाला होता। महर्षि दयानंद ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में उन सभी देश विरोधी सम्प्रदायों को ललकारा जो चुपचाप हमारे देश के धर्म, संस्कृति और इतिहास को मिटाने का कुचक्र रच रहे थे और हिंदू अपने ही देश में ‘बेचारा’ बनकर असहाय प्राणी बन चुका था। महर्षि दयानंद ने इस ‘बेचारे’ हिंदू को नई ऊर्जा से ऊर्जान्वित किया। फलस्वरूप इस्लाम और ईसाइयत अपने ‘हिंदू मिटाओ अभियान’ में सफल नहीं हो सके।
महर्षि दयानंद ने सर्वप्रथम एक देश, एक मत, एक विधान, एक निशान (झण्डा) का आदर्श भारतवासियों के सामने रखा और देश को राष्ट्रीयता का बोध कराया।
श्री लूथरा का कहना है कि महर्षि दयानंद के विचारों के माध्यम से ही यह देश पुन: विश्वगुरू बन सकता है। उनकी राजनीति और राजनीतिक सोच को आज का नेतृत्व यदि अपना लेता है तो इस देश के भीतर जितने भर भी लड़ाई-झगड़े, आपसी वाद-विवाद और वैमनस्यता की बातें हैं-वे सभी समाप्त हो जाएंगी। हमें स्वामी विवेकानंद का सम्मान करना चाहिए परंतु यह सम्मान उन्हें महर्षि दयानंद की उपेक्षा करके नहीं मिलना चाहिए।

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