जम्बू द्वीप
जंबूद्वीप मैं कभी संपूर्ण यूरोप और एशिया सम्मिलित हुआ करते थे। पौराणिक भूगोल के वर्णन के अनुसार जम्बूद्वीप सप्तमहाद्वीपों में से एक है। विद्वानों की मान्यता के अनुसार यह पृथ्वी के केन्द्र में स्थित माना गया है। इसके नवखण्ड हैं, जिनके नाम ये हैं- इलावृत्त, भद्रास्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरू और हिरण्यमय । इसका नामकरण जम्बू (जामुन) नामक वृक्ष के आधार पर हुआ है।
आज इस जंबूद्वीप में अर्थात यूरोप और एशिया में जितने भर भी देश हैं वह सबके सब कभी आर्यावर्त,भारत वर्ष अर्थात हिंदुस्तान के ही भाग हुआ करते थे।
भारतवर्ष में आज भी यज्ञ के समय एक मंत्र में – जम्बूद्वीपे, भरतखण्डे, आर्यावर्ते….। पुराणों में जम्बूद्वीप के छह वर्ष पर्वत बताए गए हैं- हिमवान, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत और श्रृंगवान । कालान्तर में इस जम्बूद्वीप के आठ द्वीप बन गए- स्वर्णप्रस्थ, चन्द्रशुक्ल, आवर्तन, रमणक (रमन्त्रा) मन्दर, हरिण, पाञ्चजन्य तथा सिंहल।
मुसलमानों या अंग्रेजों या किसी भी विदेशी इतिहासकार ने भारत के साथ जंबूद्वीप के अनन्यतम संबंध के विषय में कुछ नहीं लिखा है। वैसे भी उनसे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती थी कि वह भारत के गौरवशाली इतिहास पर कुछ प्रकाश डालते। अब हमें जंबू दीप की प्राचीनता, ऐतिहासिकता, भौगोलिक सीमाओं और भारत के साथ उनके संबंधों पर गहनता से विचार करना चाहिए। यदि हम ऐसा करने में सफल होते हैं तो अपने आप स्पष्ट हो जाएगा कि संपूर्ण यूरोप और एशिया का इतिहास भारत का इतिहास है।
मेरी पुस्तक “25 मानचित्र में भारत के इतिहास का सच” से
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत