जब अगस्त 1947 में रावलपिंडी में 8 दिन तक मचती रही थी मारकाट

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1947 में किस प्रकार मुसलमानों के सिर पर मजहबी जुनूनियत का भूत सवार हो गया था और किस प्रकार हिंदुओं पर वहां अत्याचार हुए थे ? उसकी साक्षी के रूप में हमारे बीच में अब बहुत कम लोग रहे हैं।
पिछले दिनों अशोक विहार आर्य समाज में एक विशेष कार्यक्रम में जब हम उपस्थित हुए तो वहां पर हमें एक ऐसे ही व्यक्तित्व से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जो 1947 में देश के बंटवारे के समय 18 वर्ष की अवस्था में थे। आज लगभग 95 वर्ष की अवस्था में भी अपनी ऊर्जा शक्ति को बनाए हुए श्री सतपाल गांधी का जन्म 1 मई 1928 को रावलपिंडी में हुआ था। वह बताते हैं कि वे तीन भाई और एक बहन थी।
उन्होंने बीए तक की शिक्षा प्राप्त की थी। 1947 में देश के बंटवारे के समय उन्होंने पाकिस्तान को छोड़कर भारत में आकर रहना उचित माना था। श्री गांधी कहते हैं कि उनके पिता का नाम श्री चुन्नीलाल गांधी और माता का नाम श्रीमती माया देवी था। बंटवारे के दिनों की याद करते हुए वह कहते हैं कि उस समय का मंजर जब आंखों के सामने से गुजरता है तो शरीर में सिहरन पैदा हो जाती है। वे उस समय 18 वर्ष की अवस्था के थे। मुझे अच्छी तरह याद है कि रावलपिंडी में उन दिनों 8 दिन तक मारकाट मची रही थी। उनका परिवार बड़ा सौभाग्यशाली था जो सुरक्षित वहां से निकल कर भारत में आने में सफल हो गया था ।
लोगों की चीख पुकार की आवाज आती थी तो लोग सहम जाते थे। बहुत भयानक दौर था और जिन लोगों ने उस दौर को बड़ी निकटता से देखा था वे कई सालों तक उस सदमे से उबर नहीं पाए थे। वे कहते हैं कि वे स्वयं भी आज तक पाकिस्तान जाकर अपने मकान आदि को देखने का साहस नहीं जुटा पाए हैं। वे नहीं जानते कि उनका मकान किसके कब्जे में गया और आज उसमें कौन रह रहा है ,? श्री गांधी कहते हैं कि कभी वहां से लोगों का कोई खत भी उनके पास नहीं आया, क्योंकि अधिकांश लोग बाद में धर्म बदलकर मुसलमान हो गए। कभी पाकिस्तान जाने का मन भी करता है तो सोचता हूं कि वहां जाकर किसके पास रहूंगा?
देश का बंटवारा करवाना बहुत बड़ी गलती थी। संप्रदाय के आधार पर किसी भी संप्रदाय के लोगों को अपने देश का बहुत बड़ा भाग दे देना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता। उन्हें अपने गांधी टाइटल से तो प्रेम है पर उस गांधी से कोई प्रेम नई है जिसने देश को को मजहब के आधार पर बांटने का काम किया। उन्होंने कहा कि जिन्ना और गांधी दोनों की ही नीतियां देश के लिए अच्छी नहीं रही।
श्री गांधी कहते हैं कि देश के संदर्भ में किसी भी राशिफल द्रोही व्यक्ति के साथ वार्ता करना कभी भी उस समय उचित नहीं माना जा सकता जब वह केवल और केवल देश को बांटने की जिद पर अड़ा हो। महात्मा गांधी के बारे में उनका मानना है कि वह जिन्नाह का बेवजह मोल बढ़ाते रहें और अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली बने जिन्ना के सामने नाक रगड़ते रहे। उसका परिणाम यह हुआ कि देश में हिंदू समाज को बड़ी संख्या में उस समय बलिदान देने पड़े। उन्हें इस बात पर भी गहरा अफसोस है कि पाकिस्तान में रह गए हिंदू आज बड़ी संख्या में धर्मांतरित होकर मुसलमान बन गए हैं । उन करोड़ों हिंदुओं पर जो अत्याचार पाकिस्तान में रहते हुए उन सबके लिए भी कॉन्ग्रेस के गांधीवादी नेताओं की गलत नीतियां ही जिम्मेदार हैं।

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