भारतीय सांस्कृतिक जीवन में मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम को जो महत्व प्राप्त है, वही स्थान उनकी अद्र्धांगिनी सीता माता को भी प्राप्त है तथा जिस प्रकार समाज में रामनवमी का महात्म्य है, उसी प्रकार जानकी नवमी या सीता नवमी का भी महात्म्य माना जाता है । लोक मान्यतानुसार सीता नवमी के पावन पर्व पर व्रत रख भगवान श्रीराम सहित भगवती सीता का अपनी शक्ति के अनुसार भक्तिभाव पूर्वक विधि-विधान से सोत्साह पूजन वन्दन करने से पृथ्वी दान का फल, महाषोडश दान का फल, अखिलतीर्थ भ्रमण का फल और सर्वभूत दया का फल स्वत: ही प्राप्त हो जाता है। लोक मान्यतानुसार सीता जयंती का व्रत करने से सौभाग्य सुख व संतान की प्राप्त होती है। माता सीता लक्ष्मी का अवतार अथवा अंश हैं इस कारण इनके निमित्त किया गया व्रत परिवर में सुख-समृ्द्धि और धन की वृद्धि करने वाला होता है। मान्यता यह भी है कि माता का जन्म चूँकि भूमि से हुआ था, इसलिए वे अन्नपूर्णा कहलाती है। माता सीता अर्थात जानकी का व्रत करने से उपासक में त्याग, शील, ममता और समर्पण जैसे गुण आते है । इस दिन सौभाग्यवती महिलाओं को सौभाग्य सूचक वस्तुओं का दान का अत्यंत महत्व है । इसीलिए इस दिन व्रतियों के द्वारा आठ सौभाग्यशाली स्त्रियों को सौभाग्य की वस्तुएं भेंट करने की परिपाटी है । जानकी जयंती को लाल वस्त्र का दान अतिशुभ माना जाता है। इसीलिए सौभाग्यवती स्त्रियों को सौभाग्य सूचक अन्य वस्तुओं के साथ ही लाल वस्त्र का दान भी किया जाता है। प्रतिमा निर्माण कर पूजन करने की स्थिति में दूसरे दिन चढ़ाए गए पुष्प आदि के साथ ही पवित्र जल में प्रतिमा का विसर्जन कर देना चाहिए। इससे मां सीता जीवन के पाप-संताप और दुखों का निवारण कर सौभाग्य का वरदान देती हैं।
सीता नवमी व्रत एवं पूजन हेतु अष्टमी तिथि को ही स्वच्छ होकर शुद्ध भूमि पर चार अथवा आठ या फिर सोलह स्तम्भों का सुन्दर मण्डप बनाना चाहिए । मण्डप के मध्य में सुन्दर आसन रखकर भगवती सीता एवं भगवान श्रीराम की मिट्टी , काष्ट अथवा धातु की प्रतिमा स्थापित कर अथवा चित्र की स्थापना कर नवमी तिथि को स्नान आदि के पश्चात् सीता -राम का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए।श्री रामाय नम: तथा श्री सीतायै नम: मूल मंत्र से प्राणायाम करना चाहिए और श्री जानकी रामाभ्यां नम: मंत्र द्वारा आसन, पाद्य, अघ्र्य, आचमन, पंचामृत स्नान, वस्त्र, आभूषण, गन्ध, सिन्दूर तथा धूप-दीप एवं नैवेद्य आदि उपचारों द्वारा श्रीराम-जानकी का पूजन व आरती कर दशमी के दिन फिर विधिपूर्वक भगवती सीता-राम की पूजा-अर्चना के बाद मण्डप का विसर्जन कर देना चाहिए। मान्यता है कि इस प्रकार श्रीराम सहित सीता का विधि-विधान पूर्वक श्रद्धा व भक्ति से पूजन करने वाले पर भगवती सीता व भगवान राम की कृपा प्राप्ति होती है। तथा पृथ्वी दान का फल, सोलह महान दानों का फल तथा सभी तीर्थों के दर्शन का फल अपने आप मिल जाता है।
सीता नवमी अर्थात जानकी जयंती के महात्म्य के सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है। सीता नवमी की इस पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र में एक वेदवादी श्रेष्ठ धर्मपारीण देवदत नामक ब्राह्मण निवास करते थे। ब्राह्मण की बड़ी सुंदर रूपगर्विता पत्नी थी, जिसका नाम शोभना था। ब्राह्मण देवता जीविका के लिए अपने ग्राम से अन्य किसी ग्राम में भिक्षाटन के लिए गए हुए थे। इधर ब्राह्मणी शोभना कुसंगत में फंसकर व्यभिचार में प्रवृत्त हो गई।जिसके कारण पूरे गांव में उसके इस निंदित कर्म की चर्चाएं होने लगीं। परंतु उस दुष्टा ब्राह्मणी ने पूरा गांव ही जलवा दिया। दुष्कर्मों में रत रहने वाली वह दुर्बुद्धि व्यभिचारिणी ब्राह्मणी मरी तो उसका अगला जन्म चांडाल के घर में हुआ। पति का त्याग करने से वह चांडालिनी बनी, ग्राम जलाने से उसे भीषण कुष्ठ हो गया तथा व्यभिचार कर्म में रत रहने के कारण वह अंधी भी हो गई। इस प्रकार वह अपने कर्म के योग से दिनों दिन दारुण दु:ख प्राप्त करती हुई देश-देशांतर में भटकने लगी। एक बार दैवयोग से वह भटकती हुई कौशलपुरी पहुंच गई। संयोगवश उस दिन वैशाख मास, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी, जो समस्त पापों का नाश करने में समर्थ है।
सीता (जानकी) नवमी के उस पावन उत्सव पर भूख-प्यास से व्याकुल वह दुखियारी वहां उपस्थित सज्जनों से कुछ भोजन सामग्री प्रदान करने की मांग करने लगी । भूख से तड़पते वह स्त्री श्री कनक भवन के सामने बने एक हजार पुष्प मंडित स्तंभों से गुजरती हुई उसमें प्रविष्ट हो गई । उसने पुन: मदद व भोजन की मदद के लिए पुकार लगाई। उसकी पुकार सुन
एक भक्त ने उससे कहा- देवी! आज तो सीता नवमी है, भोजन में अन्न देने वाले को पाप लगता है, इसीलिए आज तो अन्न नहीं मिलेगा। कल पारणा करने के समय आना, ठाकुर जी का प्रसाद भरपेट मिलेगा, किंतु वह फिर भी नहीं नहीं मानी और पुकार लगती रही । अधिक कहने पर भक्त ने उसे तुलसी दल अर्थात तुलसी पत्ती एवं जल प्रदान किया। वह पापिनी भूख से मर गई। किंतु इसी बहाने अनजाने में उससे सीता नवमी का व्रत पूरा हो गया।
और व्रत के प्रभाव से परम कृपालिनी ने उसे समस्त पापों से मुक्त कर दिया। इस व्रत के प्रभाव से वह पापिनी निर्मल होकर स्वर्ग में आनंदपूर्वक अनंत वर्षों तक रही। तत्पश्चात् वह कामरूप देश के महाराज जयसिंह की महारानी काम कला के नाम से विख्यात हुई। उसने अपने राज्य में अनेक देवालय बनवाए, जिनमें जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई। अत: सीता नवमी पर जो श्रद्धालु माता जानकी का पूजन-अर्चन करते है, उन्हें सभी प्रकार के सुख-सौभाग्य प्राप्त होते हैं।
श्रीजानकी नवमी पर श्रीजानकी की पूजा, व्रत, उत्सव, कीर्तन करने से उन परम दयामयी श्रीमती सीता जी की कृपा हमें अवश्य प्राप्त होती है तथा इस दिन जानकी स्तोत्र, रामचंद्रष्टाकम्, रामचरित मानस आदि का पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।