Categories
इतिहास के पन्नों से

25 मानचित्रों में भारत के इतिहास का सच : भूमिका

भूमिका

आर्यावर्त कालीन आर्य राजाओं की यह विशेषता रही कि वे भारतवर्ष की केंद्रीय सत्ता के प्रति सदैव निष्ठावान रहे । सुदूर प्रांतों में अलग स्वतंत्र राज्य होने के उपरांत भी केंद्र की सत्ता के प्रति वे अपनी आस्था को वैसे ही बनाए रहे जैसे एक पुत्र अपने पिता के प्रति निष्ठावान बना रहता है । यही कारण रहा कि रामायण काल से महाभारत काल तक निरंतर अनेकों आर्य राजाओं ने विशाल विशाल साम्राज्यों पर शासन किया। परंतु भारत की एकता और अखंडता को किसी प्रकार का खतरा पैदा नहीं होने दिया । किसी भी आर्य हिंदू राजा ने अलग राष्ट्र नहीं बनाया , बल्कि विश्व राष्ट्र को ही अपना परिवार मानकर शासन करते रहे । अलग देश उन्हें लोगों ने बनाया , जिन्होंने धर्मांतरण कर लिया यह विदेशी धर्म को अपना लिया। यह वह काल था जब सभी हिंदू राजा धर्म से प्रेरित होकर न्यायपरक राज्य की स्थापना के लिए काम करते थे ।
महाभारत के युद्ध के उपरांत भी हमारे यहां पर आर्य हिंदू राजाओं में विशाल साम्राज्य खड़े करने की एक सात्विक प्रतिस्पर्धा बनी रही । साम्राज्य स्थापित करने का उनका उद्देश्य न्यायपरक शासन की स्थापना कर संपूर्ण वसुधा पर मानवतावादी शासन को स्थापित करना था । यह दुर्भाग्य रहा कि वह इस कार्य के लिए परस्पर लड़ने लगे। बाद में इसका विदेशी सत्ताधारियों ने लाभ उठाना आरंभ किया ।हमारी इस सात्विक प्रतिस्पर्धा को इतिहास में ऐसे दिखाया गया कि जैसे हम अरब की कबीलाई संस्कृति वाले लोगों की तरह परस्पर हिंसक होकर लड़ते थे। हमारा वह पवित्र उद्देश्य हमसे छुपा दिया गया जिससे प्रेरित होकर हम आर्यावर्त कालीन विश्व साम्राज्य स्थापित करने के लिए संघर्ष करते थे। हमारा उद्देश्य आर्य संस्कृति का प्रचार प्रसार करना होता था । जिन लोगों ने आर्य संस्कृति का विनाश करने का बीड़ा उठाया और संसार को एक परिवार न मानकर रक्तपात करने का क्षेत्र मान लिया उनका इतिहास वन्दन करने लगा। जो वंदनीय थे वह उपेक्षित हो गए और जो उपेक्षित थे वह इतिहास की वंदना के पात्र बन गए। सचमुच यह घड़ी मानवता के प्रिय दुर्भाग्यपूर्ण था।

इसके उपरांत भी हमारे यहां पर विशाल विशाल साम्राज्य स्थापित किए गए इनमें मौर्य साम्राज्य का क्षेत्रफल 52 लाख वर्ग किलोमीटर का था । जो मुगलों के शासन से 12 लाख वर्ग किलोमीटर अधिक था । 1690 ई0 में मुगल सल्तनत 40 से 44 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर शासन कर रही थी। उससे पहले मुगल शासन के साम्राज्य की सीमाएं 10 – 20 लाख वर्ग किलोमीटर या उससे कुछ अधिक तक भी रहीं। कुल मिलाकर बाबर के काल से लेकर औरंगजेब के काल तक हमेशा मुगल साम्राज्य की सीमाएं 40 या 44 लाख वर्ग किलोमीटर की नहीं रही । इसके उपरांत भी हमारे इतिहास की प्रचलित पुस्तकों में मौर्य वंश पर इतना ध्यान न देकर मुगल वंश पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

1030 ईसवी में चोल राजवंश के साम्राज्य की सीमाएं 36 लाख वर्ग किलोमीटर थीं। परंतु उसका इतिहास में कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं है। बहुत कम लोग हैं जो चोल राजवंश के बारे में जानते हैं।
सन 400 के लगभग भारत पर गुप्त वंश शासन कर रहा था , जिसके साम्राज्य की सीमाएं 35 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई थीं । मुगलों से अधिक देर तक वंश के शासकों ने इतने विशाल साम्राज्य पर शासन किया । परंतु दुर्भाग्य है कि इस शासन के शासकों पर भी आज तक कोई महत्वपूर्ण शोध नहीं हुआ । यद्यपि उनके शासन में पूर्णत :शांति रही और कहीं पर भी कोई रक्तपात , लूट , हिंसा मंदिरों के विनाश आदि के ऐसे पाप नहीं हुए जो आगे चलकर तुर्क और मुगलों के काल में निरंतर चलते रहे ।

दिल्ली सल्तनत 32 लाख वर्ग किलोमीटर पर 1312 ईसवी में फैली हुई थी। यह अलाउद्दीन खिलजी के शासन का काल था । जिसमें इसका सबसे अधिक विस्तार हो पाया था । इस काल में लूटपाट , हत्या , डकैती , बलात्कार से धरती कांप रही थी । इन पापियों के इतिहास को बहुत महिमामंडित कर पढ़ाया जाना आज के इतिहास की विशेषता है ।
जबकि मराठा सम्राज्य 28 लाख वर्ग किलोमीटर पर 1760 ईसवी में शासन कर रहा था। शिवाजी महाराज ने मिट्टी से उठकर इस विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी । जिसे उन्होंने हिंदू स्वराज्य का नाम दिया था । उनके इस महान कार्य को इतिहास उपेक्षा की दृष्टि से देखता है।
इतना ही नहीं 20 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर 200 ई0 के लगभग कुषाण वंश शासन कर रहा था परंतु उसे भी उपेक्षा की भट्टी में डाल दिया गया है ।
इसी प्रकार 647 ईसवी में 8 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर शासन करने वाले हर्षवर्धन को भी इतिहास में नगण्य नहीं समझा जाता है ।जबकि शेरशाह सूरी या हुमायूं और उनसे पहले बाबर हमारे इतिहास के हीरो हैं , जिनके साम्राज्य का विस्तार हर्षवर्धन से भी छोटा था ।
समय सचमुच जागने का है। लेखनी उठानी होगी। वैचारिक क्रांति के माध्यम से हमें हिंदू साम्राज्य और हिंदू शासकों के शौर्य पूर्ण कार्यों का उल्लेख करने वाला इतिहास लिखना ही होगा। समय की आवश्यकता को यदि नहीं पहचाना गया तो समझ लेना – – – हिंदुस्तान वालों ! तुम्हारी दास्तां भी न होगी दास्तानों में ।
यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि गांधी जी की अहिंसा को तो बढ़ा चढ़ाकर बताया व दिखाया जाता है , परंतु इतिहास में पुरस्कार उनको दिया जाता है जो आजीवन अत्याचार , लूट खसूट , बलात्कार और मानव अधिकारों का उल्लंघन करते रहे । इसके विपरीत जिन लोगों ने वास्तव में हिंसक होकर शासन किया मानवतावाद का प्रचार और प्रसार किया , उन शासकों के साथ अन्याय किया जाता है। कैसे कहें कि यह गांधी का देश है ?
प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से हमने उन साथियों को दूर करने का प्रयास किया है जिनके चलते भारत के आर्य / हिंदू राजाओं के गौरव पूर्ण इतिहास और अतीत को आज की पीढ़ी को यथार्थ रूप में समझाने की आवश्यकता है। समय की आवश्यकता है कि अपने इतिहास के सच को समझकर भारत की स्वाधीनता क
के अमर सेनानी रहे अपने वीर योद्धाओं के पराक्रम और शौर्य को वर्तमान संदर्भ में ग्रहण कर देश की एकता और अखंडता को मजबूत बनाने के लिए काम किया जाए। ‘भारत को समझो’ अभियान का यही उद्देश्य है।

  • डॉ राकेश कुमार आर्य

Comment:Cancel reply

Exit mobile version