बिखरे मोती : आत्मस्वरूप के संदर्भ में
प्रेरक तेरा ओ३म् है ,
रक्षक सर्वाधार ।
नित चरणौं में बैठके,
निज प्रतिबिम्ब निहार॥2091॥
भाव की उत्कृष्टतम्ब निकृष्टतम्ब
अव्यवस्था के संदर्भ में –
भाव की ऊंची है गति,
भक्ति में हो लीन ।
क्रोध और अहंकार में,
उठते भाव मलीन॥2092॥
जीव ईश्वर का अंश है
पुराण – पुरुष का अंशु तू ,
मत भूले हरि नाम ।
हरि धाम में वास हो,
कर चल ऐसे काम॥2093॥
स्वर्णिम किरणों से रवि,
जैसे सज्जित होय।
सुयोग्य मंत्री पाय के,
राजा शोभित होय ॥2094॥
भाव यह है कि जिस प्रकार सूर्य की तेजोमयि स्वर्णिम रश्मियों के बीच में सुशोभित होता है, ठीक उसी प्रकार राजा भी अच्छे मंत्री को पाकर सुशोभित होता है।
नर – तन के मां-बाप हैं,
आत्मा का नहीं कोय।
हंस उड़ेगा एक दिन,
सरवर सोना होय॥2095॥
आत्मानुसंधान के संदर्भ में –
आत्म – निरीक्षण रोज कर,
चल – प्रभु की ओर ।
ओ३म् नाम का जाप कर,
होकै आत्म विभोर॥ 2096॥
विज्ञान वरदान भी है और अभिशाप
विज्ञान में हो संवेदना ,
तो होता वरदान ।
अभिशाप भी होत है,
हृदयहीन विज्ञान॥ 2097॥
परमपिता परमात्मा को वेद में हिरण्यगर्भ : क्यों कहा
हिरण्यगर्भ: ईश है ,
परेष्टि छिपी अनन्त ।
तेरी सृष्टि का प्रभु,
मिला ना आदि अन्त॥ 2098 ॥
विशेष -प्रसंग वस पाठकों की जानकारी के लिए यहां यह बताना आवश्यक होगा कि सूर्य के इर्द-गिर्द घूमने वाले ग्रहों से एक सौर्यमंडल बनता है ऐसा लाखों सौरमंडल से एक ‘राट ‘ होता है,लाखों राटों का एक विराट होता है,लाखों विराटों का एक ब्रह्मांड होता है, लाखों ब्रह्मांड की परेष्टि होती है।