विश्व की उभरती हुई गंभीर समस्याओं में प्रमुख है मोबाइल कैमरे के जरिए सेल्फी लेना। इन दिनों मोबाइल कैमरे के जरिए सेल्फी यानी अपनी तस्वीर खुद उतारने के शौक के जानलेवा साबित होने की खबरें आए दिन सुनने को मिल रही हैं। नई पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह कैद हो गयी है। आज हर कोई रोमांचक, हैरानी में डालने वाली एवं विस्मयकारी सेल्फी लेने के चक्कर में अपनी जान की भी परवाह नहीं कर रहे हैं। कोई जल में छलांग लगाते हुए तो कोई सांप के साथ, कोई शेर, बाघ, चीता के साथ तो कोई हवा में झुलते हुए, कोई आग से खेलते हुए तो कोई मोटरसाईकिल पर करतब दिखाते हुए सेल्फी लेने के लिये अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन इसी मंगलवार को ओडि़शा के रायगढ़ जिले में सेल्फी लेने के क्रम में एक महिला और उसके बेटे की दर्दनाक मौत हो गई। लेकिन हैरानी की बात यह है कि लोग ऐसी घटनाओं से कोई सबक नहीं लेते और सरकारें भी मूकदर्शक बन इन हादसों को देख रही है।
ओडि़शा की ताजा घटना में महिला अपने परिवार के साथ नागावली नदी के पुल पर घूमने गई थी। वहीं अपनी बेटी और बेटे के साथ कुछ तस्वीरें लेने के क्रम में तीनों फिसल कर नदी में गिर गए। स्थानीय लोगों ने किसी तरह बेटी को तो बचा लिया, लेकिन महिला और उसका बेटा डूब गए। किसी हादसे में हुई मौतों में हालात के कई पहलू होते हैं। लेकिन सेल्फी की वजह से हुई मौतें इसलिए ज्यादा दुखद हैं कि ये महज शौक के चलते बरती गई लापरवाही का नतीजा होती हैं। सेल्की के बढ़ते प्रचलन, उससे हो रही दर्दनाक मौतें किसी एक राष्ट्र की समस्या नहीं है, यह एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बनती जा रही है। इस दीवानगी को ओढऩे के लिये प्रचार माध्यमों ने तो गुमराह किया ही है, लेकिन सोशल साइट्स भी भटका रही है। इस जानलेवा महामारी को समय रहते नहीं रोका गया तो आने वाले समय में हर व्यक्ति को यह त्रासद एवं डरावनी मौत का शौक प्रभावित कर सकता है। इस पर जनजागृति अभियान चलाये जाने एवं सरकार द्वारा प्रतिबंध की व्यवस्था किये जाने की जरूरत है।
सेल्फी का चलन किशोरों व युवाओं के सिर चढ़ कर बोल रहा है। खतरनाक एवं रोमांचक सेल्फी लेने की होड़ मची है। हर कोई क्रेजी हो रहा है। रोमांचक सेल्फी के लिए जब जान का जोखिम उठाया जाता है तो यह जुनून अक्सर जानलेवा साबित होता है। आज के दौर में सेल्फी युवाओं व किशोरों के लिए फैशन व जुनून बन गई है। वे अपनी मनचाही तस्वीरें खींचते हैं और सोशल नैटवर्किंग साइट्स के अलावा व्हाट्सऐप पर अपने दोस्तों से शेयर करते हैं। इसमें उन की खुशियां, फैशन और आधुनिक होने के भाव झलकते हैं, इस में कोई दो राय नहीं कि अपनी तस्वीरें लेने का सबसे बेहतरीन और आसान तरीका सेल्फी ही है। यह सुनहरा पहलू है, लेकिन दूसरा चिंताजनक पहलू यह है कि भारत में सेल्फी से होने वाली मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। स्थिति उनके लिए और भी खतरनाक है जो सेल्फी के लिए सारी हदों को लांघ जाते हैं। वे भूल जाते हैं कि जिंदगी की अहमियत एक सेल्फी से कहीं ज्यादा होती है। कई घटनाओं में पाया गया कि जिन लोगों में सेल्फी का भूत सवार हैं, वे मानसिक रूप से अस्वस्थ थे। खतरनाक सेल्फी लेने की होड़ में कब किस की सेल्फी आखिरी साबित हो जाए इस को कोई नहीं जानता। इसके खतरनाक रूप सामने आने के बाद युवाओं को खतरों से बचाने के लिए अब कानून का सहारा लेना पड़ रहा है। समुद्र के आसपास, नदी के किनारे, ऊंचे पुलों, पहाड़ों एवं रेलवे के पटरियों के आसपास ऐसी चेतावनियां दी जाती है कि यहां सेल्फी लेना मना है। रेलवे ने पटरियों को ‘नो सेल्फी जोन’ घोषित कर दिया है। ऐसा करने वालों को जेल की हवा खाने के साथ जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। यात्रियों को खतरों से आगाह भी किया जाएगा। क्योंकि ट्रेन में सफर करते समय खतरनाक तरीके से व पटरी पर सेल्फी लेना युवाओं की मौत का सबब बना और अनेक दर्दनाक दुर्घटनाओं में युवाओं की जान गयी है। एक साल पहले सेल्फी के चक्कर में मथुरा में 3 युवकों याकूब, इकबाल व अफजल को अपनी जान गंवानी पड़ी। तीनों जानलेवा जोखिम उठा कर चलती ट्रेन के सामने सेल्फी लेने लगे। चालक के होर्न देने पर भी वे नहीं हटे और ट्रेन की चपेट में आ गए। इनके अलावा और भी कई अफसोसजनक, दर्दनाक हादसे हुए हैं। इसलिये ऐसी सावधानियां एवं प्रतिबंध सेल्फी दुर्घटना संभावित क्षेत्रों में लागू कर दी नितान्त अपेक्षित है।
प्रश्न है कि सेल्फी का नशा क्यों इतना सर चढ़ कर बोल रहा है? रोजाना की एकरस जिंदगी में मनोरंजन या नयेपन को मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी माना जाता है। लेकिन अगर इस तरह की गतिविधियां जानलेवा शौक में तब्दील हो जाएं तो उस शौक से तौबा कर लेना ही ठीक है। हाल में हुए कई अध्ययनों में सेल्फी लेने की आदत को एक मानसिक बीमारी बताया गया है, जिसका शिकार व्यक्ति इस बात का खयाल भी नहीं रख पाता कि खतरनाक जगहों पर अलग-अलग मुद्राओं में अपनी तस्वीरें उतारने के क्रम में उसकी जान भी जा सकती है। मनोचिकित्सकों के मुताबिक ‘सेल्फीसाइटिस’ एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं करता है तो उसे बेचैनी होने लगती है। इसका अगला सिरा इससे जुड़ता है कि इस आदत के शिकार लोग सार्वजनिक रूप से तो सामाजिक दिखते हैं, खूब तस्वीरें साझा करते हैं, लेकिन उनके भीतर आत्मविश्वास का कोना धीरे-धीरे खाली होता जाता है।
करीब सवा साल पहले सेल्फी से हो रही मौतें पर किये गये एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में सेल्फी लेने के क्रम में हुई मौतों में से साठ फीसद अकेले भारत में हुई थीं। विडंबना यह है कि जो आदत इस कदर एक समस्या बन चुकी है उसका कोई हल तो सामने नहीं आ रहा है, लेकिन बाजार इसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। आज स्मार्टफोन में तब्दील हो चुके ज्यादातर मोबाइलों की बिक्री बढ़ाने के लिए कंपनियां विज्ञापन में ‘सेल्फी के लिहाज से बेहतरीन कैमरा’ होने को अपने उत्पाद की सबसे बड़ी खासियत बताती हैं। जाने-माने सितारे ऐसे मोबाइलों का प्रचार करते हुए उनके सेल्फी वाले पहलू को ज्यादा उभारते हैं।
मुश्किल यह है कि सेल्फी मोबाइलों के विज्ञापन के समांतर किसी ऐसी सूचना का प्रसार नहीं दिखता, जो लोगों को इस शौक के जानलेवा जोखिम के बारे में सचेत करे। ओक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने सेल्फी को वल्र्ड ऑफ द ईयर तक चुना। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक विदेश यात्रा की सेल्फी भी बहुचर्चित हुई। यह युवाओं के दिमाग पर छा गयी। हर हाथ में मोबाइल और सेल्फी का फैशन पंख लगा कर चल रहा है। इसके लिए दीवानगी है। नेताओं और फिल्मों ने भी इस को बढ़ावा दिया। ऐसे जनूनी किशोरों व युवाओं की कमी नहीं जो सेल्फी लेने का कोई मौका नहीं चूकते। एडवैंचर्स सेल्फी उन्हें वाहवाही लूटने का माध्यम भी लगती है। ऐसी सेल्फी सोशल साइट्स के जरिए वे दोस्तों को पहुंचा कर ज्यादा से ज्यादा लोकप्रियता चाहते हैं। अलग अंदाज की सेल्फी की होड़ है।
फिल्मों ने भी इसे खूब बढ़ावा दिया। बजरंगी भाईजान फिल्म का गाना ‘चल बेटा सेल्फी लेले रे’ सिर चढ़ कर बोला। सेल्फी की वजह से होने वाली मौतें झकझोर कर देने वाली हैं। हादसों से युवाओं को सबक लेना चाहिए। देखादेखी वे क्रेजी न बनें। ऐसी रोमांचक एवं विस्मयकारी सेल्फी से दूर ही रहें जिससे जान का खतरा हो। अभिभावकों को भी अपने बच्चों को जागरूक करना चाहिए। जब जिंदगी ही नहीं होगी तो सेल्फी कहां से आएगी? पक्षी भी एक विशेष मौसम में अपने घोसलें बदल लेते हैं। पर मनुष्य अपनी वृत्तियां, आदतें नहीं बदलता।
वह अपनी वृत्तियां, शौक एवं आदतों को तब बदलने को मजबूर होता है, जब दुर्घटनाओं, दुर्दिनों, दुर्भाग्य एवं मौत से उसका सामना होता है। जानलेवा होते सेल्फी के प्रचलन पर नियंत्रण के लिये पक्षियों के इस सन्देश को समझने एवं समय रहते जागने की जरूरत है।