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माँ का ऋण चुकाना कठिन है

पूजनीया माताजी श्रीमति सत्यवती आर्या जी की 12वीं पुण्यतिथि 18 मार्च 2018 पर विशेष

मातृ-पितृ ऋण हमारे ऊपर सबसे अधिक माना गया है। संसार में आकर सबसे पहले मां हमको संसार और संसार वालों के बारे में सूचना देती है, बताती है कि कौन व्यक्ति तुम्हारा क्या लगता है? इस प्रकार पिता से भी सबसे पहले परिचय हमारी माता ही कराती है। माता की लोरियों में और माता के हृदय में हमारे स्वर्णिम भविष्य की अनेकों योजनाएं घूमती रहती हैं। जो संतान अपने माता-पिता के प्रति कृतज्ञ शील होती है- वह उनकी भावनाओं का सम्मान करती है और उनके अनुसार चलने का समाज में प्रयास करती है। प्रत्येक मां अपने बच्चों के प्रति जितनी सेवाभावी होती है- उतना संसार का कोई अन्य प्राणी नहीं होता। संसार के जितने भी संबंध हैं- उन सब में मां महत्वपूर्ण है, मां जैसा पवित्र शब्द हमें संसार के किसी भी शब्दकोश में मिलना असंभव है।
हमारी पूजनीया माताजी श्रीमती सत्यवती आर्या जी एक ऐसी ही आदर्श और महान महिला थीं। मैं उनके जीवन को लेकर और उनके आदर्शों को लेकर अत्यंत श्रद्धा भाव से प्रत्येक मां के प्रति यह कहना चाहता हूं कि हर एक मां हमारे लिए सम्मान और सेवा की हकदार होती है, क्योंकि मां ही होती है जो हमें पालती है, पोषती है, बड़ा करती है और उसकी ममता हमेशा हमारा एक साया बनकर संरक्षण करती रहती है। मां का साहस ही होता है- जो हमें संसार समर में खड़ा करने का काम करता है। मां की ममता ही होती है- जो हमारे जीवन को संवार देती है, हमें उत्थान की ओर, प्रगति की ओर और अच्छे कार्यों की ओर प्रेरित करती रहती है। यह मां का तप ही होता है- जो हमें कुंदन सा निखार देता है। मां के तप के सामने संसार के सारे तप छोटे पड़ जाते हैं। उसके तप को जो संतान समझ लेती है- वह उसके प्रति सदा सेवाभावी और कृतज्ञशील रहती है। मां की साधना का ऋण हमारे ऊपर सबसे अधिक माना गया है।
मां की साधना भी अपने आप में अनुपम और आदित्य होती है। मां की साधना से ही हमें जीवन का सही अर्थ मिलता है, जीवन की सही परिभाषा मिलती है। हमें यह पता चलता है कि विषम से विषम परिस्थितियों में मां किस प्रकार हमारे लिए संघर्ष करती है, साधना करती है और हमें आगे बढऩे के लिए अपने आप को मोमबत्ती की भांति जला देती है।
मां हमारे लिए धीरे-धीरे तपती है, खपती है और हमारे लिए रास्ते बनाती है। हमारे जीवन में रोशनी भरने के लिए वह दिन रात मेहनत करती है और दिन रात अपना पसीना बहाकर हमें आराम से सोने की सारी व्यवस्था बनाती है। ऐसी मां को नमन करना हमारा सबका दायित्व है। यह मां ही होती है- जिसके परिश्रम के कारण, जिसके त्याग के कारण, जिसकी ममता के कारण, जिसकी साधना के कारण और जिसके हर सांस के और हर क्षण के त्याग और बलिदान के कारण हम संसार में अपनी पहचान बनाते हैं। माता का ज्ञान ही होता है जो हमें जीवन को एक नए गीत की तरह जीने के लिए प्रेरित करता है। यह मां का आत्मबोध ही होता है जो मृत्यु को मात्र पडाव मानता है।
मां मृत्यु को भी बड़े सहज भाव से लेती है और एक वैज्ञानिक सत्य को स्वीकार कर हमें यह बता जाती है कि संसार एक सराय की तरह है और इसे इसी साधना के साथ, इसी भावना के साथ और इसी पवित्रता के साथ जीने का प्रयास करो। इसको सराय मानो और जितनी देर यहां पर हो- उतनी देर प्रभुभक्ति के माध्यम से अपने आत्मा का परिष्कार करते रहो।
माता की यह भक्ति ही होती है जो हमें मानवता का संचार कराती है यह मां की वेद भक्ति ही होती है जो प्रात: काल में अच्छे विचारों के गीत गा गा कर हमें प्रात: काल में ही अच्छे संस्कार दे डालती है। स्वयं काम में लगी रहती है लेकिन इसके बावजूद भी उसके हृदय से ईश्वर भक्ति के भजन संगीत की स्वर लहरियों के माध्यम से वातावरण को मनोरम और पवित्र बनाते हैं, जो संतान के कानों में पडते हैं तो संतान को ऊंचा और उन्नत बनाने का काम कर जाते हैं।
ऐसी हमारी मां जो इन सभी दिव्य गुणों से विभूषित थी, उस मां को प्रणाम करना हमारा नैतिक दायित्व है।
संपूर्ण उगता भारत परिवार माता के प्रति अपने पवित्र भावों को व्यक्त करता है और पूजनीया माताजी श्रीमती सत्यवती आर्या जी को अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है उस प्रात: स्मरणीया, नमनीया, वंदनीया देवी को हमारा सादर नमन, वंदन और अभिनंदन। भारत में मातृशक्ति के प्रति प्रारंभ से ही पूजा का भाव रहा है, श्रद्धा का भाव रहा है और उसके प्रति सेवा और समर्पण का भाव रहा है। विद्वानों ने हमेशा माता को पूजनीया स्थान दिया है। हम समस्त मातृशक्ति को इसी भाव से अपना सेवा सम्मान प्रदान करते हैं। माता जी जहां भी हों प्रसन्न हों, संपन्न हों और उनके लिए जीवन के सभी सुख-सुविधाएं उन्हें उपलब्ध हों-ऐसी परमपिता परमेश्वर से हमारी प्रार्थना है।

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