1765 सांसदो, विधायकों के विरुद्ध वाद लंबित

कहावत है कि जैसा राजा होता है वैसी प्रजा होती है। यह बात बहुत पहले चाणक्य ने कही थी। यदि यह बात अक्षरश: आज देश में लागू हो जाए तो सचमुच प्रलय आ जाएगी और उस प्रलय में हम सब बह जाएंगे। बात यह है कि भारत की केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र देकर यह चौंकाने वाली जानकारी दी है कि इस समय देश के कुल 1765 सांसदों, विधायकों के खिलाफ 3045 मुकदमे देश के विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं। कहने का अभिप्राय है कि कुल 795 सांसदों और 4120 विधायकों में से लगभग एक तिहाई सांसद-विधायक ऐसे हैं जो न्यायालय में विभिन्न वादों में आरोपी हैं। अपने माननीयों की यह स्थिति देखकर बड़ा दुख होता है। देश के लोकपाल का यदि यह हाल है तो देश का क्या होगा? अब यदि देश की कुल आबादी का एक तिहाई भाग भी न्यायालय में मुकदमा बाजी करने लगे या अपने माननीयों का अनुकरण करते हुए गलत रास्ता बना ले तो क्या होगा? उन विवादों को सुलझाने के लिए आप कितने न्यायालय देंगे, कितने जज देंगे, और कितने कर्मचारी होंगे?
यह तो भला हो देश के नागरिकों का जिन्होंने चाणक्य की बात को सच मान कर भी उसका अनुकरण नहीं किया और वह अपने धर्म पर टिके रहकर अर्थात नैतिक और पवित्र व्यवस्था को अपनाकर अन्याय और शोषण के रास्ते को चुनना पाप समझती है। साथ ही यह भी सत्य है कि आज के समय में देश के लोग मजबूरी में चाहे किसी को भी अपना सांसद या विधायक मान ले यह अलग बात है, पर वास्तव में वह इन्हें राजा नहीं मानती। देश की जनता राजा में ईश्वर के न्यायप्रिय, पक्षपात शून्य और पूर्णत: प्रजापालक स्वरूप का अक्ष देखती है जो उसे इन विधायकों या सांसदों में नहीं दिखता। इसलिए वह इन्हें प्रजा उत्पीड़क़, शोषक और भूखा नंगा कहकर अपना पेट भरने वाला ही मानती है। पर गोरखपुर और फूलपुर में जनता ने अपना मत प्रतिशत गिराकर यह दिखा दिया है कि वह नेताओं से खुश नहीं है।
वास्तव में देश के लोगों में अपने देश की राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति गहन असंतोष है। मजबूरी में वह कभी ‘सांपनाथ’ को, तो कभी ‘नागनाथ’ को सत्ता देती आ रही है। अन्यथा सत्य तो यही है कि जनता से जो चुनावी वायदे किए जाते हैं उन पर ना तो ‘सांपनाथ’ ही खरा उतरता है और ना ही नागनाथ। हमारे राजनीतिक दलों को जनता की मजबूरी को समझना होगा। इस देश के लिए यह सत्य है कि यदि यहां हर 5 वर्ष पश्चात लोगों के मध्य से एक ऐसा नया राजनीतिक विकल्प उभर कर आता रहे जो किसी वर्तमान राजनीतिक दल से अलग हो और जिसमें राजनीति के वर्तमान चेहरे में से एक भी सम्मिलित ना हो तो देश की जनता हर बार इस नए राजनीतिक विकल्प को ही सत्ता देगी, तब सारे राजनीतिक दलों के पार्टी कार्यालयों पर ताले पड़ जाएंगे। देश की जनता को ऐसा विकल्प न देकर राजनीतिक दलों ने अपनी मुठमर्दी चला रखी है। और देश की जनता को इस बात के लिए मजबूर कर दिया है कि वह गले सड़े टमाटरों में से ही टमाटर ले और उनकी चटनी बनाएं।
यह व्यवस्था लोकतांत्रिक नहीं है। लोक की आवाज का इसमें कहीं भी दर्शन नहीं होता। उपाय क्या है? उपाय यही है कि देश में राजनीतिक दलों का अस्तित्व समाप्त किया जाए। देश के ईमानदार, परिश्रम, जनहितकारी कार्य करने वाले सुयोग्य लोगों को देश की जनता अपना प्रतिनिधि बनाए और यह लोग देश के विधान मंडलों में जाकर देश का शासन चलाएं। इससे देश में राष्ट्रवादी सोच और राष्ट्रवादी सरकारों का प्रचलन आरंभ होगा। हम जितनी देर इस सर्वथा त्याज्य व्यवस्था को ढोते रहेंगे उतनी ही देर देश पीड़ा अनुभव करता रहेगा। शपथ पत्र में केंद्र सरकार ने बताया हैं कि इस मामले में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है। अर्थात सबसे अधिक माननीय उत्तर प्रदेश में केसों में फंसे हुए हैं। कहने का अभिप्राय है कि जनसंख्या में तो उत्तर प्रदेश प्रथम स्थान पर है ही, माननीयों के अपराधी होने के मामले में भी प्रथम स्थान पर ही है। अखिलेश यादव के उत्तम प्रदेश और योगी के राम राज्य को बधाई। शपथ पत्र कहता है कि तमिलनाडु दूसरे, बिहार तीसरे, पश्चिम बंगाल, चौथे और आंध्र प्रदेश पांचवें स्थान पर है। यह आंकड़े केंद्र सरकार ने देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों से एकत्र करके सर्वोच्च न्यायालय में दिए हैं। इन आंकड़ों को देखकर यह पता चलता है कि हमारे देश की चुनावी प्रक्रिया में अभी भी भारी कमियां है। इन कमियों के छिद्रो को अपने निकलने का रास्ता बना कर ही राजनीतिज्ञ देश के विधानमंडलों में पहुंच जाते हैं। अच्छा होगा कि देश के इन माननीयों के वादों का निस्तारण न्यायालय हर स्थिति में 1 वर्ष के भीतर करके दे।
यह लोग न्यायालयों में तारीख पर तारीख बढ़ाते रहते हैं और न्यायालयों को न्याय करने से बाधित करते रहते हैं। इनके वादों में प्रतिदिन सुनवाई हो और अपराधियों को शीघ्र अतिशीघ्र जेल की सलाखों के पीछे भेजा जाए।
इससे देश की जनता में राजनीतिज्ञों के प्रति विश्वास बहाल करने में सहायता मिलेगी। हम यह जानते हैं कि कई बार राजनीतिज्ञों को उनके विरोधी लोग झूठे मुकदमों में भी फंसा देते हैं तो ऐसे झूठे मुकदमे डालने वालों के प्रति भी कठोर कार्यवाही का प्रावधान होना चाहिए। इससे राजनीतिक कार्यशैली को न्यायप्रिय और पक्षपात शून्य बनाने में सहायता मिलेगी।
सचमुच इस देश को राजनीतिक और चुनावी सुधारों की आवश्यकता है। वर्तमान व्यवस्था इस समय पंचर हुई खडी है। देश इसलिए चल रहा है कि यहां के लोग धर्म के शासन से रहने के अभ्यासी हैं। वह पाप करने से डरते हैं। अन्यथा देश की संवैधानिक शासन व्यवस्था तो जवाब दे चुकी है। सोचने और समझने की आवश्यकता है।

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