सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय — 28 (क) ईश्वर भक्ति, अवतारवाद और जीव
ईश्वर भक्ति, अवतारवाद और जीव
आर्य समाज महर्षि दयानंद द्वारा रोपा गया एक क्रांतिकारी पौधा सिद्ध हुआ। इसके वीर योद्धाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कीर्तिमान स्थापित किए । धार्मिक क्षेत्र में सफाई अभियान के साथ-साथ राजनीति के क्षेत्र में भी अनेक ऐसे आंदोलन आर्य समाज ने लड़े, जिन्होंने इतिहास की धारा बदल दी। यदि बात हैदराबाद मुक्तिसंग्राम की करें तो इसके बारे में “हैदराबाद का स्वाधीनता संग्राम और आर्य समाज” के लेखक पंडित नरेंद्र ने लिखा है कि “आर्य समाज ने ही अपने प्रसिद्ध सत्याग्रह द्वारा निजाम की तानाशाही का रुख बदलने और शासन को लोकतंत्र आधारित सुधार लागू कराने के लिए बाध्य किया था।”
वास्तव में बड़ी से बड़ी शक्ति से भिड़ने की शक्ति ईश्वर भक्ति से प्राप्त होती है। आर्य समाज ईश्वर भक्ति पर विशेष बल देता है। एक प्रकार से मनुष्य की हताशा – निराशा दूर होकर ईश्वर भक्ति के माध्यम से उसकी बैटरी चार्ज होती है। उस चार्ज बैटरी से वह अपने विरोधियों व शत्रुओं के विरुद्ध और भी अधिक शक्ति से लड़ने के लिए मैदान में उतर जाता है। हैदराबाद आंदोलन के विषय में ऐसे ही ईश्वर भक्त आर्य समाज के बारे में सुन्नी मुस्लिम नेता नजमुल हसन अंसारी ( सहारनपुर) ने कहा था कि “आर्य समाज धार्मिक मांगों को आगे रखकर निजाम शासन से आजादी की लड़ाई लड़ रहा है। उसके आंदोलन में राजनीतिक स्वतंत्रता की अघोषित भावना छिपी हुई है।”
जब यह लड़ाई सफलतापूर्वक संपन्न हो गई थी तो भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी एक वक्तव्य के माध्यम से कहा था कि “यदि आर्य समाज ने पृष्ठभूमि नहीं बनाई होती तो हैदराबाद को स्वतंत्र भारत में सम्मिलित करना कठिन होता।”
कुल मिलाकर कहने का अभिप्राय यह है कि ईश्वर भक्ति मनुष्य को बहुत अधिक शक्ति संपन्न बनाती है।
तपस्वी जीवन और देशभक्ति
मनुष्य को एक तपस्वी की भांति जीवन जीना चाहिए। जीवन में अनेक प्रकार के द्वंद आते हैं। उन सबके बीच अपने आप को सम रखना अर्थात द्वंद्वों को सहन करना ही तपस्वी जीवन जीना है। “सदग्रंथों का अध्ययन करते हुए इस प्रकार के तपस्वी जीवन को प्राप्त किया जा सकता है। सत्पुरुषों का संग करे और ‘ओ३म्’ इस एक परमात्मा के नाम का अर्थ विचार करे, नित्यप्रति जप किया करे।” इस प्रकार के उपदेश और प्रवचन को हमारे समक्ष प्रस्तुत कर स्वामी जी महाराज अष्टांग योग को जीवन में अपनाकर उन्नति की पराकाष्ठा को प्राप्त करने का सत्परामर्श सातवें समुल्लास के माध्यम से हमें देते हैं।
वास्तव में शांत और एकांत स्थान में साधना के गहन क्षणों में व्यक्ति अपने आसपास के परिवेश का गहनता से समीक्षण करता है। एकांत के क्षणों में मनुष्य यदि जगत के बंधनों को काटकर स्वयं को मुक्ति का अधिकारी बनाने के लिए आंदोलित हो सकता है तो उन क्षणों में वह अपने ऊपर बैठाए गए किसी भी प्रकार के बंधनकारी पहरे को समाप्त करने के लिए भी आंदोलित हो सकता है , यह बात निश्चित रूप से कही जा सकती है।
आप अपनी कल्पना कीजिए कि यदि इस संसार में कोई जाति या कोई देश किसी दूसरी जाति या देश पर अत्याचार करता है और जो देश इस प्रकार के अत्याचारों को सहन कर रहा है यदि उसके मुट्ठी भर लोग भी ईश्वर भक्त होकर साधना के इनके क्षणों का आनंद लेने के अभ्यासी हो जाएं तो वे जगत के बंधनों को काटने के साथ-साथ ऐसी आक्रामक जाति या देश के बंधनों को काटने के लिए भी आंदोलित हो उठते हैं। बस , भारत में यही हुआ था कि आर्य समाज ने न केवल जगत के बंधनों को काटकर मुक्ति का मार्ग खोजा या ऋषियों द्वारा पूर्व में आविष्कृत इस मार्ग को खोलकर लोगों के लिए उपलब्ध कराया बल्कि उसने देश के बंधनों को काटने का भी युक्तिपूर्वक यतन किया।
यह युक्ति पूर्व यतन ही आर्य समाज की ईश्वर भक्ति और देशभक्ति का अभिनंदनीय कृत्य था।
ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना
ईश्वर का नित्य जाप करने से मनुष्य के सब दोष और दुख दूर हो जाते हैं। इसका फल-जैसे शीत से आतुर पुरुष का अग्नि के पास जाने से शीत निवृत्त हो जाता है वैसे परमेश्वर के समीप प्राप्त होने से सब दोष दुःख छूट कर परमेश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव के सदृश जीवात्मा के गुण, कर्म, स्वभाव पवित्र हो जाते हैं, इसलिये परमेश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना अवश्य करनी चाहिये। इस से इस का फल पृथक् होगा परन्तु आत्मा का बल इतना बढ़ेगा, कि पर्वत के समान दुःख प्राप्त होने पर भी न घबरायेगा और सब को सहन कर सकेगा।
हमारे देश में प्राचीन काल से ही ब्राह्मण के साथ-साथ क्षत्रिय भी ईश्वर की स्तुति प्रार्थना उपासना करते रहे हैं। ऐसे अनेक अवसर आए जब क्षत्रिय महारथी युद्ध के मैदान में शत्रु से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वेद मंत्रों का जप करते करते लोगों ने या तो युद्ध में प्राणोत्सर्ग किया या फांसी के फंदे को चूम लिया। ऐसे लोगों को तनिक भी कष्ट की अनुभूति नहीं हुई। फांसी के फंदे पर झूलने के लिए भी लंबी पंक्ति लग गई और देश के लिए प्राणों का उत्सर्ग करने वालों की भी संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती चली गई।
अवसर ऐसे भी आए जब एक योद्धा से शत्रु दल के सैकड़ों योद्धा लड़े, परंतु उस पर्वत जैसी आपदा को देखकर भी हमारे आर्य वीर योद्धा तनिक भी विचलित नहीं हुए। यहां एक अकेले अभिमन्यु को ही सात महारथियों ने अनीतिपूर्वक घेरकर नहीं मारा है बल्कि देश की आजादी के इतिहास का यदि अवलोकन करें तो पता चलता है कि यहां पर ऐसे कितने ही अभिमन्यु हुए हैं जिन्हें विदेशी राक्षस आक्रमणकारियों या शासकों ने घेर घेर कर और घोट घोटकर मारने का यत्न किया है। महाराणा प्रताप जब अरावली की श्रंखलाओं में छुप छुपकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे तब उनके मारने के लिए अकबर जैसे नीच बादशाह ने अनेक सिपाहियों और अपने सेनापतियों को छोड़ दिया था। ऐसे अनेक महाराणा प्रताप हुए हैं , जिनके साथ काल विशेष में इसी प्रकार के अत्याचार किए गए हैं। पर इन सभी देशभक्तों की देशभक्ति कभी झुकी नहीं। आज के तथाकथित मानवाधिकार वादी कांग्रेसी या कम्युनिस्ट इतिहासकार या लेखक यदि हमारे अभिमन्युओं को घेर कर मारने वाले ऐसे नीच तथाकथित महारथियों का गुणगान करते हैं तो उनकी बुद्धि पर तरस आता है।
हमारे जिन महारथियों व देशभक्तों ने देश के लिए अपना बलिदान दिया, उनके इस प्रकार के बलिदान का कारण केवल एक था कि वह परमपिता परमेश्वर की स्तुति ,प्रार्थना और उपासना करते थे। जिससे उनके भीतर अप्रतिम बल संचरित हुआ रहता था। राष्ट्र , धर्म और मानवता की रक्षा के लिए वे अपने प्राण हंसते-हंसते न्यौछावर कर देते थे। जबकि तथाकथित रूप से वीर कहे जाने वाले मुसलमानों के लिए ऐसे अनेक उल्लेख हमें प्राप्त होते हैं जब हिंदू वीरों की वीरता को देख कर वे रोते हुए पीठ दिखाकर युद्ध क्षेत्र से भागे हैं। उनके इस प्रकार भागने का कारण केवल एक ही था कि उनके साथ ईश्वर की स्तुति ,प्रार्थना और उपासना का बल नहीं था।
डॉ राकेश कुमार आर्य
मेरी यह पुस्तक डायमंड बुक्स नई दिल्ली के द्वारा प्रकाशित हुई है । जिसका अभी हाल ही में 5 अक्टूबर 2000 22 को विमोचन कार्य संपन्न हुआ था। इस पुस्तक में सत्यार्थ प्रकाश के पहले 7 अध्यायों का इतिहास के दृष्टिकोण से विश्लेषण किया गया है। पुस्तक में कुल 245 स्पष्ट हैं। पुस्तक का मूल्य ₹300 है।
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