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संपादकीय स्वर्णिम इतिहास

भारत किस विदेशी सत्ता या आक्रांता का कितनी देर गुलाम रहा?

भारत किस विदेशी सत्ता या आक्रांता का कितनी देर गुलाम रहा?भारत किस विदेशी सत्ता या आक्रांता का कितनी देर गुलाम रहा? इस पर मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा ‘भारत हजारों वर्षों की पराधीनता: एक औपनिवेशिक भ्रमजाल’ नामक ग्रंथ में शोधपूर्ण ढंग से बताया गया है। जिसमें पिछले 18000 वर्ष के कालखंड पर प्रकाश डाला गया है औऱ बताया गया है कि भारत का कौन सा क्षेत्र कितनी देर विदेशी सत्ता के अधीन रहा?
देखें , यह ग्रंथ क्या कहता है?
जम्मू: यहां पर 16000 ईसा पूर्व से 1948 तक कभी भी विदेशी शासन नहीं रहा। एक प्रकार से रिपोर्ट कह रही है कि नेहरू जी ने शेख अब्दुल्लाह को यह प्रान्त सौपकर यहां पर पहली बार किसी मुसलमान का शासन स्थापित कराया। हमारे पूर्वजों के सारे बलिदान व्यर्थ हो गए और इतिहास में लिख दिया गया कि जम्मू भी 1000 वर्ष तक गुलाम रहा ।
लद्दाख: यह क्षेत्र भी एक दिन के लिए भी विदेशी सत्ता का गुलाम नहीं रहा। हिन्दू राजा यहां स्वतंत्र रूप से शासन करतेरहे। आज क्या स्थिती है? बताने की आवश्यकता नही है। हमारा पौरुष और पुरुषार्थ नीलाम हो चुके हैं। हमें इतिहास बोध नही रहा और हमने इतिहास को मरने दिया। हम पापी हैं?
कश्मीर घाटी : उक्त शोध ग्रंथ के अनुसार 17474 वर्ष यहां हिन्दू शासन रहा। 1346 से 1819 तक 473 वर्ष यहां मुस्लिम शासन रहा। 1948 से फिर यह प्रान्त मुस्लिम शासन में है। गंगा-जमुनी संस्कृति का जीता जागता प्रमाण है ये प्रान्त। जहां हजारों लाखों वर्ष से शासन करते आ रहे हिंदुओं को भगा दिया गया है और लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सारा इतिहास मिटा दिया गया है। तोते रट रहे हैं कि हम 1000 वर्ष गुलाम रहे। हमारे पूर्वज कायर थे। जिन्हें कौन समझाए कि कायर पूर्वज नहीं तुम हो। पूर्वजों ने इतिहास बनाया था , तुम उसे मिटा रहे हो।
घाटी मात्र 473 वर्ष विदेशी शासन में रही और उसकी हालत क्या हो गयी? यदि 1000 वर्ष गुलाम रहती तो क्या होता? विचारणीय है ।
पंजाब और हरियाणा: यहां 196 वर्ष मुस्लिमों का तो 98 वर्ष ब्रिटिश सत्ताधीशों का शासन रहा है। शेष समय भगवा लहराता रहा। खोजो अपने उन महान राजाओं को , महान बलिदानियों को और गुरुओं को जिनके कारण यह पवित्र भूमि मात्र 294 वर्ष ही विदेशी सत्ताधीशों की गुलाम रही औऱ उसमें भी स्वतंत्रता का संघर्ष करती रही। 1000 वर्ष तक यदि इस पवित्र भूमि को गुलाम कहने की मूर्खता की गई तो इतिहास की चीख निकल जायेगी। कृतघ्नता की सीमायें मत लांघो।
कभी सिंध औऱ अफगानिस्तान भी भारत के अंग थे ।
सिंध में 998ई0, से1008ई तक लगभग 10 वर्ष तक मुस्लिम शासन रहा। इसके पश्चात 1018ई0 से 1026ई0 तक , 1173ई0 से 1362ई0 तक औऱ फिर 1591ई0 से 1842ई0 तक अर्थात 500 वर्षों तक विदेशी मुस्लिमों का शासन रहा। 1843ई0 से 1947ई0 तक कुल 104 वर्ष अंग्रेजों का शासन रहा। परंतु इस सारे काल मे ही यहां विदेशी शासन को उखाडऩे का संघर्ष चलता रहा। हमने यदि अपने पूर्वजों के संघर्ष का ध्यान किया होता तो हमे पता चलता कि वह संघर्ष अखंड भारत के लिए था , हिंदुत्व की रक्षा के लिए था।
हमारा संघर्ष केसरिया के नेतृत्व में लड़ा गया था। आज हम तिरंगे का सम्मान कर सकते हैं , यह अलग बात है पर यह ध्यान रखना चाहिए कि 22 जुलाई 1947 को मिला हमारा तिरंगा केसरिया के लिए लड़े गए दीर्घ कालीन संघर्ष का परिणाम है। तिरंगा को सम्मान देकर भी हम केसरिया को नही भूल सकते। जिस समय केसरिया के लिए हमारे पूर्वज बलिदान दे रहे थे उस समय उन्होंने केसरिया का अभिप्राय भारत की आन ,बान औऱ शान से लगाया था ।इसी केसरिया के नीचे रहकर उन्होंने विश्व गुरू भारत का सपना संजोया था। जो लोग एक झटके में कह जाते हैं कि भारत तो इतने दिन गुलाम रहा या यह तो कायरों का देश है- उन्हें अपना बलिदानी इतिहास पढऩा चाहिए। सिंध को अपने साथ जोड़े रखने का संघर्ष केसरिया की भारत निर्माण योजना को बताता है।
अफगानिस्तान : अफगानिस्तान प्राचीन काल से भारत का अंग रहा था। यहां 11वीं शताब्दी में मुस्लिम शासन स्थापित हो गया था। दुर्भाग्यवश भारत का यही वह भाग है जहां एक बार मुस्लिम शासन स्थापित होने के बाद उखाड़ा नही जा सका। परिणामस्वरूप भारत अपनी अखंडता खो बैठा। सावरकर जी ने ठीक ही तो कहा था कि धर्मांतरण से मर्मान्तरण औऱ मर्मान्तरण से राष्ट्रान्तरण होता है। धर्म परिवर्तित होते ही राष्ट्र तोडऩे की बातें होती हैं। इसीलिए देश मे धर्मांतरण को पूर्णतया निषिद्ध करने की माँग राष्ट्रवादी लोगों की ओर से रह रहकर की जाती रही है।
हिन्दू महासभा आज भी अखंड भारत की बात करती है। इसका कारण यही है कि यह संगठन अपने बलिदानी इतिहास औऱ अपने केसरिया का सम्मान करना जानता है। इसकी ऐसी सोच को धर्मनिरपेक्षी तोते पसंद नही करते। अफगानिस्तान के विषय में हमे यह याद रखना चाहिए कि इसी को आधार बनाकर पाकिस्तान की मांग की गई थी औऱ आज पाकिस्तान को आधार बनाकर फिर देश तोडऩे की बात की जा रही हैं।
अफगानिस्तान की भांति गजनी गोर में भी 10 वीं शताब्दी में ही मुस्लिम शासन स्थापित हो गया था। यह क्षेत्र 8 से 9 शताब्दी तक गुलाम रहा। फलस्वरूप यह अपना मौलिक स्वरूप भूल गया और एक अलग मजहब के नाम पर अपने आपको भारत से अलग मानने लगा। जो लोग भारत को एक हजार वर्ष तक गुलाम रहने की कहानी को सच मानते हैं उन्हें यह पता होना चाहिए कि इतने लंबे काल की गुलामी का परिणाम होता भारत का पूर्ण रूप से इस्लामी रंग में रंग जाना औऱ इसी अवस्था को हमारे क्रांतिकारी व स्वतंत्रता प्रेमी पूर्वज भारत के लिए खतरनाक मानकर अपना रक्त बहाते रहे थे।
बलूचिस्तान: यहां भी 9 वी शताब्दी में मुस्लिम शासन स्थापित हो गया था। उसके बाद यह शासन निरन्तर बना रहा। 1843ई0 में यहाँ ब्रिटिश शासन स्थापित हो गया था। दीर्घकालिक गुलामी के कारण यह प्रदेश भी भारत से अलग हो गया।
पख्तूनिस्तान : बलूचिस्तान की भांति यहाँ भी 9 वी सदी में मुस्लिम शासन स्थापित हो गया था। और 1834ई0 में ब्रिटिश शासन की स्थापना हो गयी थी।
दिल्ली: दिल्ली और आगरा प्राचीन समय से ही हिन्दू शासन के आधीन रहे हैं। 1193ई0 से 1857ई0 तक यहाँ मुस्लिम शासन रहा। 651 वर्ष की इस कथित गुलामी के काल मे दिल्ली व आगरा ने कभी भी गुलामी को हृदय से स्वीकार नही किया। यहाँ स्वतंत्रता का सतत संघर्ष चला। यही कारण है कि यह क्षेत्र विदेशी सत्ता के विरुद्ध सदा धधकता रहा। 1857ई0 से लेकर 1947 तक के ब्रिटिश शासन में भी यह क्षेत्र क्रांति की सतत प्रक्रिया में लगा रहा।
हमें आज का प्रचलित इतिहास ऐसा बताता है कि दिल्ली 651 वर्ष मुस्लिम शासन में रही, जबकि सच ये है कि दिल्ली पर 1758 में हिंदू मराठा शक्ति का अधिकार हो गया था। 1857 में दिल्ली को जब अंग्रेजों ने अपने अधिकार में लिया था तो उस समय दिल्ली पर मराठों का अधिकार था। अत: यह मिथ्या तथ्य है कि अंग्रेजों ने दिल्ली को मुगलों से लिया था। मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की उस समय बड़ी दयनीय दशा थी। उसके पास कुछ भी अधिकार नही थे। वह अपनी प्राणरक्षा करने में भी असमर्थ था। दिल्ली को मुगलों से प्राप्त करने का मिथ्या प्रचार अंग्रेज़ों ने इसलिए किया था कि आजाद भारत मे दिल्ली को लेकर हिन्दू मुस्लिम लड़ते रहें।
अंग्रेजों ने चाहे दिल्ली पर 1857 में अपना अधिकार कर लिया था पर 55 वर्ष तक वह दिल्ली आने से बचते रहे। क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि दिल्ली के लोग विदेशी शासन का तीव्र विरोध करते हैं। अत: अंग्रेज दिल्ली में शासक के रूप में 1912ई0 में प्रविष्ट हुए और इसके सही 35 वर्ष पश्चात 1947ई0 में उन्हें दिल्ली छोडऩी पड़ गई थी। दिल्ली ने अपना दम दिखा दिया था।
चम्बा: चम्बा में एक दिन भी मुस्लिम शासन नहीँ रहा। 1840ई0 की संधि से यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के आधीन चला गया था। इस प्रकार 107 वर्ष तक यह विदेशी शासन के अधीन रहा। शेष समय यहाँ केसरिया पताका फहराती रही।
थानेश्वर : यहाँ 1014ई0 से 1856ई0 तक मुस्लिम शासन रहा। 1856ई0 से 1947ई0 तक यहां ब्रिटिश शासन रहा।
कुल्लू: कुल्लू में एक दिन के लिए भी मुस्लिम शासन नहीं रहा। 1857ई0 में यहाँ ब्रिटिश शासन स्थापित हुआ । उक्त शोधग्रंथ के अनुसार पिछले 18000 वर्ष के इतिहास में मात्र 90 वर्ष ही यह क्षेत्र गुलाम रहा। कुल्लू के लिये यह स्थिति सचमुच गौरवशाली है।
कांगड़ा: यहां पर पिछले 18000 वर्ष के इतिहास के कालखंड में 1620ई0 से 1810ई0 तक अर्थात 190 वर्ष मुस्लिम शासन रहा। 1856ई0 से अगले 91 वर्ष अर्थात 1947ई0 तक ब्रिटिश शासन रहा। शेष काल मे यह क्षेत्र स्वतंत्रता का उपभोग करता रहा।
कुमायूं : कुमायूं में 18000 वर्ष के काल मे कभी भी मुस्लिम शासन स्थापित नही हो सका। 1816ई0 से 1947ई0 के 131 वर्ष तक यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन अवश्य रहा।
कन्नौज: इस क्षेत्र में 1540ई0 से 1856ई0 तक 316 वर्ष मुस्लिम शासन रहा औऱ शेष काल मे यहां ब्रिटिश शासन रहा। इस प्रकार कुल 406 वर्ष यह क्षेत्र गुलाम रहा।
अवध: दुर्भाग्यवश अवध में 1192ई0 में मुस्लिम शासन स्थापित हो गया था जो 1856ई0 तक निरन्तर बना रहा। उसके पश्चात ब्रिटिश शासन रहा। परंतु इस कालखंड में अवध स्वाधीनता के लिए निरन्तर संघर्ष करता रहा। 1528ई0 में बाबर ने राम मंदिर तोड़ा तो उसके लिए हिंदुओं ने दर्जनों संघर्ष किये। लाखों बलिदान दिये। निश्चित रूप से ऐसा कोई स्वाभिमानी जाति ही कर सकती थी। माना कि अवध देर तक गुलाम रहा , पर उसने इस काल में बलिदान कितने दिए?- यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है । गुलामी के विषधर को मिटाने के लिए दिए गए बलिदानों को भूलना अपने बलिदानों का अपमान करना है। आज का प्रचलित इतिहास हमें कुछ ऐसी ही शिक्षा देता है । निश्चित रूप से ऐसा इतिहास पढऩे के योग्य नही है।
इलाहाबाद: इस क्षेत्र ने 1583ई0 तक अपनी आजादी बनाये रखी। अकबर के काल मे यह पराधीन हुआ। उससे पूर्व किसी मुस्लिम सुल्तान की पताका यहां न फहरा सकी। 1583ई0 से 1856ई0 तक यहाँ मुस्लिम शासन रहा तो 1856ई0 से 1947ई0 तक ब्रिटिश शासन रहा। कुल 364 वर्ष यह क्षेत्र गुलाम रहा । 364 वर्ष तक भारत की यह पवित्र नगरी गुलाम रहकर भी अपने हिन्दू संस्कृति के मौलिक स्वरूप को बचाने में सफल रही तो यह हमारी पुनरुज्जीवी पराक्रम की अनोखी मिशाल नही तो औऱ क्या है ?

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