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गौ और गोवंश संपादकीय

गौरक्षा कैसे हो संभव?

प्रदेश व देश में जबसे योगी-मोदी की सरकार आई है तब से गोधन की रक्षा के लिए लोगों को बड़ी-बड़ी अपेक्षाएँ इन सरकारों से पैदा हुई हैं। परंतु यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि गोधन के संरक्षण और सुरक्षा के लिए कोई ठोस व कारगर कार्यप्रणाली नहीं अपनाई गई है। केंद्र की मोदी सरकार को आए अब लगभग 4 वर्ष हो रहे हैं परंतु गोधन की जो दयनीय दशा 2014 के आरम्भ में थी -लगभग वही दशा आज भी है। कुछ गोभक्तों ने कुछ मुसलमानों को गौ तस्करी करते अवश्य पकड़ा और इसी कार्य से उन्हें लगा कि हमने बहुत बड़ा काम कर दिया है। हम मानते हैं कि उनका कार्य उस सीमा तक निश्चित रूप से सराहनीय था जिस सीमा तक यह कार्य गैर कानूनी ढंग से हो रहा था। इन गौ भक्तों की सक्रियता का परिणाम यह आया कि गायों को गैर कानूनी ढंग से काटने की गतिविधियों पर रोक लग सकी। पर इससे पूर्ण उपचार हो गया हो यह नहीं कहा जा सकता।
वैसे पूर्ण उपचार या समस्या का पूर्ण समाधान तब तक संभव नहीं है -जब तक कि सरकार और गौ भक्त समस्या के मूल को नहीं समझेंगे। इस समय स्थिति यह है कि खेती के ट्रैक्टर आधारित हो जाने से गाय के बैलो की उपयोगिता पूर्णत: समाप्त हो गई है। इसी प्रकार गायों के लिए गोचर की भूमि न होने से और हरा चारा न मिलने से गायें बांझ होती जा रही हैं, वह दूध नहीं दे रही हैं और किसान के लिए अनुपयोगी होती जा रही हैं। ऐसे में इस भौतिकवादी युग में गायों का खर्च कौन झेले? यह प्रश्न आज बड़े महत्व का हो गया है। विशेषत: तब और भी जबकि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य न मिलने से वह स्वयं भूखों मरने की स्थिति में आ गया है?
गोधन के निरुपयोगी हो जाने से किसानों के खेतों में आवारा गोधन जब एक साथ आक्रमण करता है, तो भारी नुकसान कर डालता है। तब अपने आप भूखा मरता किसान अपनी उजड़ी फसल को देखकर उन गायों को मार- पीटकर भगाने के लिए विवश हो जाता है। वह गायों को गौमाता तो मानता है पर जब गौ माता हाथ की रोटी छीन रही हो तो वह क्या करें? तब वह जाने अनजाने में उनके साथ अत्याचार पर उतारू हो जाता है। इससे गोधन जंगल में मारा-मारा फिर रहा है। सबसे अधिक दयनीय दशा तो गायों के उन बच्चों की होती है जो नवजात होते हैं, और जिन्हे अपनी माता के साथ अभी भागना नहीं आता। जब किसान इन नवजात बच्चों की माताओं को दूर तक खदेड़ देता है, तो कई बार यह नवजात बछड़े बछडी अपनी मां से बिछुड़ जाते हैं, तो कई बार यह किसी कीचड़ में फंसे रह जाते हैं, तब इन्हें जंगली कुत्ते या हिंसक जीव अपना शिकार बना लेते हैं, और चट कर जाते हैं। इस प्रकार बड़ी दुखद स्थितियों से गोधन को गुजरना पड़ रहा है।
सरकार का या उन संगठनों का इस ओर ध्यान नहीं है, जो गोधन विकास का जिम्मा लेते हैं, ‘अंधी पीस रही है, और कुत्ते खा रहे हैं’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। सर्वत्र लापरवाही और अपने कार्य को दूसरे पर डालने की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। कुछ गौसेवक गायों के नाम पर बड़ा खेल खेल रहे हैं। वह मोटी रकम बटोर रहे हैं, और मौज कर रहे हैं।
अब समस्या के समाधान के लिए सरकार को क्या करना चाहिए? इस पर विचार करते हैं। सरकार को 1947 के सरकारी राजस्व अभिलेख के अनुसार सरकारी गोचर की भूमि को निकालकर उसे मौके पर स्थापित करना चाहिए। गौ संरक्षण के लिए यह अति आवश्यक है। गोओ के लिए जब तक चरने के लिए गोचर नहीं होंगे तब तक उनके उचित रखरखाव की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
दूसरे ट्रैक्टर आधारित खेती को देश में यथाशीघ्र बंद करना चाहिए। ट्रैक्टर ने देश की भूमि को अनुपजाऊ कर दिया है। ट्रैक्टर कैचुएं जैसे उन जीव धारियों की हत्या कर रहा है, जो किसानों के मित्र कहे जाते हैं। साथ ही देश की कृषि योग्य भूमि को बंजर करने में भी इसका भारी योगदान है। बहुत ही शीघ्र वह स्थिति आने वाली है, जब देश अन्न के मामले में भी आत्मनिर्भर नहीं रहेगा।
तीसरे सरकार को गाय के दूध ,लस्सी,घी,मूत्र आदि की उपयोगिता को समझते हुए लोगों को उन्हें अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। किसानों को गोमूत्र उत्पादन के लिए प्रेरित किया जाए और यह व्यवस्था की जाए कि किसानों से गोमूत्र भी खरीदा जाए। साथ ही जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाए। यह चौथा उपाय हो सकता है। जैविक खेती के लिए गाय के गोबर को प्रयोग में लाया जाए। गाय के गोबर का इस समय कोई उपयोग नहीं हो रहा है। जिससे गाय को लोग निरुपयोगी मानने लगे हैं।
पांचवें उपाय के रूप में देश के लोगों को शाकाहार के विषय में बताया वह समझाया जाए। जो लोग गौमांस का सेवन कर रहे हैं- वह गोमांस के लाभ गिना- गिना कर अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं, जिससे कि सारा देश ही मांसाहारी हो जाए और उन्हें मांस खाने से कोई रोक न सके। ऐसे षड्यंत्र को सरकार अपने स्तर पर रोकने का कार्य करें। पर दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है, कि इस दिशा में कोई ठोस कार्य किया नहीं जा रहा है। यह तब और भी दुर्भाग्यपूर्ण हो जाता है, तब कांग्रेस जैसी पार्टियां इस देश को ‘गौतम- गांधी का देश’ कहकर अहिंसा का पुजारी कहती हो और उसके उपरांत भी नित्य प्रति लाखो गायों .पर निर्ममता से कुल्हाड़ा बजता हो।
्रदेश के लोग नित्य प्रति मांसाहारी होते जा रहे हैं, यह कैसी अहिंसा है?- कुछ समझ नहीं आता। इस देश में यदि एक अध्यापक शिक्षा देते-देते एक छात्र की पिटाई कर देते तो वह तो हिंसा हो जाती है, पर देश में गोधन या दुधारू पशुओं को लाखों की संख्या में रोज काटा जाए तो वह हिंसा नहीं है, जबकि सभी जानते हैं कि पशुओं का अस्तित्व भी इस सृष्टि चक्र को चलाने के लिए आवश्यक है। यह कितना सुखद है कि गाय प्रकृति के मल को अर्थात चारा, घास-फूस और भूसा आदि को खाती है और प्रकृति या यह भूमि गाय के मल अर्थात गोबर को खाती है। सृष्टि चक्र घूमता है तो उससे सारा परिवेश मानव के रहने योग्य बनता है। बीते 4 वर्षों में मोदी सरकार को इस दिशा में लोगों को जागरुक करने के लिए विशेष अभियान चलाने की आवश्यकता थी, अब हम देख रहे हैं कि ऐसे उपाय गौण हो गए हैं और सभी राजनीतिक दलों की दृष्टि में 2019 चढ़ गया है। क्या हमें 2019 में इन राजनीतिक दलों की ओर से एक बार फिर मूर्ख बनने के लिए तैयार रहना चाहिए?
प्रधानमंत्री श्री मोदी से हम अपेक्षा करते हैं कि वह इस चुनावी वर्ष में गौ माता के दूध से बनी लस्सी को इस देश का राष्ट्रीय पेय घोषित करेंगे और गौ घृत को औषधीय उपयोग के दृष्टिगत अमृत तुल्य घोषित कर गाय के दूध की उपयोगिता को लोगों को समझाने बताने के लिए विशेष कदम उठाएंगे। ऐसी ही अपेक्षा हमें प्रदेश की योगी सरकार से भी करने का अधिकार है। देखते हैं ये दोनों नेता इस ओर कितना शीघ्र ध्यान देते हैं?

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