Categories
राजनीति

“कर्नाटक ने दिए 2019 के संकेत”

लोगों को आशंका थी कि कर्नाटक में भाजपा का अश्वमेघ का घोड़ा अटक जाएगा पर कर्नाटक की जनता ने जिस प्रकार का जनादेश दिया है उससे यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि वहां के लोग राष्ट्र हित में उचित निर्णय लेना जानते हैं। इस चुनाव पर सारे देश की निगाहें थीं और इसका कारण यह था कि लोग इन चुनावों में 2019 के लोकसभा चुनावों की झलक देख रहे थे। कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस चुनाव को जीतने के लिए उस समय हदें पार कर दी थीं जब उन्होंने ‘लिंगायत’ संप्रदाय को अलग धर्म मानने की घोषणा कर दी थी। हमने उनके इस कदम को देश के पंथनिरपेक्ष स्वरूप के विरुद्ध माना था। उनके इस कदम से लगा था कि वह देश में अपना कद बढ़ाने के लिए या पद पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इससे हिंदू समाज में विघटन की प्रक्रिया बलवती होनी थी और वोटों के भूखे नेता देश के समाज को लड़ाकर बहुसंख्यक हिंदू समाज को तोड़ देने को भी आतुर थे। इससे उन लोगों को बल मिलना था जो देश के हिंदू समाज को निर्बल करने की पहले से ही कोशिशों में लगे हुए हैं।
यह अच्छा रहा कि कर्नाटक की जनता ने स्पष्ट जनादेश देकर यह बता दिया है कि वह उन लोगों के साथ नहीं हैं जो हिंदू समाज को तोडऩे की कवायद में लगे हैं।
जहां तक भाजपा की बात है तो इस पार्टी ने पिछली विधानसभा की अपेक्षा 40 से ऊपर बैठकर जो छलांग लगाई है, वह इसके लिए संतोषजनक हो सकती है। परंतु इसने जितनी सीटें जीतने की डींगें मारी थीं उतनी न मिलना यह बताता है कि दक्षिण भारत में इस पार्टी को अभी भी विशेष मेहनत करनी है। भाजपा को सोचना होगा कि-
बुलंदियों को न गलत जाबियों से देखो,
तुम्हारे सिर पर भी दस्तार रहे खयाल रहे॥
अहंकार को लेकर भाजपा ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को कोसा है- पर यह भी सच है कि अहंकार इस पार्टी में भी आ गया है, और कदाचित यही कारण है कि कर्नाटक ने कांग्रेस से मुक्ति तो पाई है पर वह भाजपा की ओर उतनी आकर्षण भाव से भी नहीं आई है जितने से उत्तर प्रदेश आया था। इस पर भाजपा को विचार करना होगा कि लोग उसकी ओर आते आते ठसका क्यों खा गए हैं?
जहां तक 2019 के चुनावों को लेकर कर्नाटक के चुनावों से मिलने वाले संकेतों की बात है तो इस दक्षिण भारतीय राज्य ने स्पष्ट जनादेश दिया है कि 2019 भाजपा के नाम ही रहेगा। पर मतदाता का विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों की ओर विशेषकर जे.डी.एस. की ओर बढा झुकाव यह भी बताता है कि इस समय कांग्रेस यदि क्षेत्रीय दलों की ओर सहयोग का हाथ बढ़ाती है तो उसका उत्थान भी हो सकता है। उसके पतन का संम्भवत: यह निम्नतम बिंदु है, जिस पर उसे पहुंच ही जाना था, इससे नीचे वह नहीं जा पाएगी और भाजपा इससे अधिक विस्तार नहीं कर पाएगी।
कांग्रेस के लिए भविष्य में राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव कुछ संकेत दे सकते हैं, जहां भाजपा की 5 या उससे अधिक सालों से सरकारें हैं। इस समय स्थिति यह है कि भाजपा के लिए दिन के 12:00 बजे हैं तो कांग्रेस के लिए रात के 12:00 बजे हैं। भाजपा के लिए दिन के 12:00 बजे से अधिक चमकीला सूरज नहीं हो सकता- वह अब ढलेगा और कांग्रेस के लिए रात के 12:00 बजे से अधिक अंधकार नहीं हो सकता- वह अब भोर की ओर को ही चलेगी। भाजपा के लिए खुशी की बात है कि उसको कर्नाटक ने संजीवनी दे दी है। उसे निराश होने की आवश्यकता नहीं है, पर सचेत होने की आवश्यकता अवश्य है।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version