जनसंख्या को लेकर इन्दिरा गांधी ने लिया था एक सही निर्णय
भारत की जनगणना को लेकर लोगों में इस समय काफी चर्चा बनी हुई है। ‘सुदर्शन न्यूज़ चैनल’ के चीफ एडिटर श्री सुरेश चव्हाणके द्वारा भारत की जनसंख्या में हो रही मुस्लिमों की अप्रत्याशित वृद्धि को लेकर एक यात्रा भी निकाली गई है। जिसमें उन्होंने एक वर्ग द्वारा अपनी जनसंख्या बढ़ा कर भारत के जनसांख्यिकीय
आंकड़े को बिगाडऩे की जो चेष्टा की जा रही है उसकी ओर देशवासियों का ध्यान आकृष्ट किया है। श्री चव्हाणके की यह यात्रा अपने आप में सफल मानी जाएगी क्योंकि जिस प्रकार लोगों ने उन्हें अपना समर्थन दिया है उसे देखकर स्पष्ट होता है कि लोगों में इस समय राजनीतिक चेतना है और वह राष्ट्र की समस्याओं से भली
प्रकार परिचित हैं। यह एक अच्छा संकेत है कि देश के लोगों के भीतर ऐसी सामाजिक चेतना है।
1975 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के द्वारा देश में आपातकाल की घोषणा की गई थी। आपातकाल के समय देश में श्रीमती इंदिरा गांधी ने नसबंदी योजना भी लागू की थी। श्रीमती इंदिरा गांधी की इस नसबंदी योजना कि उस समय काफी आलोचना हुई थी। परंतु हमारा मानना है कि श्रीमती इंदिरा गांधी
ने उस समय देश की आने वाली महाविनाशकारी समस्या को समय रहते पहचानने का काम किया था। यह अलग बात है कि देशवासियों ने उनका साथ नहीं दिया और श्रीमती इंदिरा गांधी को 1977 में हरा दिया। श्रीमती इंदिरा गांधी के द्वारा आपातकाल में जिस प्रकार नसबंदी कराई गई- उससे लोगों में असंतोष बढ़ा और
मुसलमानों ने उनके इस कदम को अपने खिलाफ समझा। कई मुस्लिम नेताओं ने ‘इस्लाम खतरे में है’ का नारा दिया और इसी आधार पर मुस्लिमों को इंदिरा गांधी के खिलाफ वोट देने के लिए प्रेरित किया। हम यह मान सकते हैं कि आपातकाल के समय कुछ स्थानों पर अति हुई, परंतु फिर भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि
इंदिरा गांधी अपने समय से बहुत आगे की बात सोच रही थीं। आज जब देश की जनसंख्या 1300000000 से भी अधिक हो गई है तो देश के सामने जनसंख्या विस्फोट की समस्या एक महा विनाशकारी भस्मासुर के रूप में अब खड़ी दिखाई देने लगी है। हिंदू समाज के लोगों ने परिवार नियोजन को बड़ी सफलता से अपनाया है,
परंतु मुस्लिम वर्ग में इस योजना को उतने अच्छे ढंग से नहीं अपनाया जितने अच्छे ढंग से एक अच्छे समाज के लोगों से अपनाने की अपेक्षा की जा सकती है। उसी का परिणाम है कि देश में जनसांख्यिकीय आंकड़ा गड़बड़ा रहा है और देश पुन: विखंडनवादी सोच के लोगों की गिरफ्त में जाता दिखाई दे रहा है।
गत दस वर्षों में भारत की जनगणना की विकास दर 17.6 रही। भारत की 15वीं जनगणना के प्रारंभिक आंकड़े दिल्ली में जारी किए गए जिनके अनुसार भारत का क्षेत्रफल पूरी दुनिया के क्षेत्रफल का 2.4 फीसदी है, लेकिन विश्व की कुल आबादी की तुलना में 17.5 फीसदी लोग भारत में रहते हैं। पिछली जनगणना में ये आंकड़ा
16.8 प्रतिशत था। (2011 में) भारत की मौजूदा आबादी 1 अरब 21 करोड़ है। 2001 से 2011 में भारत की जनसंख्या 17.6 प्रतिशत की दर से 18 करोड़ बढ़ी है। ये वर्ष 1991-2001 की वृद्धि दर, 21.5 प्रतिशत, से करीब 4 प्रतिशत कम है। भारत और चीन की आबादी का अंतर दस साल में घटकर 23 करोड़ 80 लाख से 13
करोड़ 10 लाख रह गया है।
जनसंख्या के आधार पर उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है जहां देश की कुल जनसंख्या के 16 प्रतिशत लोग रहते हैं। सभी राज्यों की आबादी बढ़ी है. सिर्फ नगालैंड ने ऋणात्मक विकास दर्ज किया है। 1911 के दशक के बाद से ये पहला मौका है जब पिछले दशक के मुकाबले में 2011 की जनसंख्या में सबसे कम
लोग जुड़े हैं। कुल आबादी में बच्चो का प्रतिशत गिरा है, यानि देश में उर्वरता कम हुई है। देश का कुल लिंगानुपात 1971 से अबतक के सबसे ऊंचे स्तर 940 पर पहुंच गया है। ये साल 2001 से 7 प्वाइंट का इज़ाफा है। बच्चों का लिंगानुपात घटा है, ये स्वतंत्र भारत के सबसे निचले स्तर पर है। पंजाब और हरियाणा में पिछले
दशक में लिंगानुपात बढ़ा है लेकिन ये अब भी पूरे देश में सबसे कम है। हरियाणा के झज्झर ज़िले में ये 774 है। भारत में साक्षरता की दर 10 प्रतिशत बढक़र करीब 74 प्रतिशत हो गई है। पिछले दस सालों में पुरुषों के मुकाबले करीब 24 लाख महिलाएं ज़्यादा साक्षर हुई हैं।
बिहार और अरुणाचल प्रदेश में राज्यों में सबसे कम साक्षरता है। कुल आबादी के मुताबिक उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है। राजधानी दिल्ली में प्रति वर्ग किलोमीटर सबसे ज़्यादा, 11 हज़ार लोग रहते हैं।
अब 2017 में भारत की जनसंख्या के विषय में उपलब्ध आंकडों पर विचार करते हैं। भारत की वर्तमान जनसंख्या 7 नवंबर 2017 के अनुसार 1,344,407,271 है, जो कि संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम अनुमानों के आधार पर है। भारत की जनसंख्या कुल विश्व की आबादी के 17.74त्न के बराबर है। भारत सरकार के आंकड़ों के
अनुसार 2011 में भारत की जनसंख्या 121.09 करोड़ थी। भारत की जनगणना 2015 नहीं हुआ है पर अन्दाज़ा इन तथ्यों से लगाया जा सकता है। भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 17.64त्न है। इस वृद्धि दर के अनुसार भारत की जनसंख्या लगभग 131.09 करोड़ की हो सकती है क्योंकि अधिकारिक तौर पर हर दस सालों में एक
बार ही जनगणना होती है जो 2011 में हुई थी। अब भारत सरकार की ओर से 2021 भारत की जनगणना होगी।
भारत की जनसंख्या 2001 में 118.1 करोड़ थी। भारत में पुरुषों की संख्या अब 62.37 करोड़ और महिलाओं की संख्या 58.64 करोड़ है। अब भारत का जनसंख्या वृद्धि दर कमी हो रहा है। सर्वाधिक आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश है जबकि सब कम आबादी वाला केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप है और सब से कम आबादी वाला
राज्य सिक्किम है।
लिंगानुपात (प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या) – सब से कम केन्द्र शासित प्रदेश दमन और दीयू में है सिर्फ 615 है और सब से ज्यादा केरल में 1,084 है। भारत का साक्षरता प्रतिशत 74 है, पुरुष – 82.1त्न व महिला 65.5त्न। भारत का सबसे ज्यादा साक्षर राज्य केरल 93.9त्न। भारत का सबसे कम साक्षर राज्य बिहार
63.8त्न।
बात यहां पर केवल मुस्लिमों की आबादी को लेकर चिंता करने की नहीं है, जैसा कि कुछ लोगों ने श्री चव्हाणके की यात्रा का अर्थ निकालने का प्रयास भी किया है। बात ये है कि देश की आबादी की बड़ी संख्या इस समय जिस प्रकार गरीबी का जीवन जी रही है उसके जीवन स्तर को कैसे सुधारा जाए? यदि देश की जनसंख्या
को इंदिरा गांधी 1975 में 65 करोड़ पर रोकने में सफल हो जातीं तो आज देश की जनसंख्या आज भी 65 करोड़ ही होती, क्योंकि इंदिरा गांधी ने उस समय ‘हम दो-हमारे दो’ का नारा दिया था। इसका मतलब था कि जनसंख्या उसी स्तर पर रुक जाती जिस स्तर पर इंदिरा गांधी के शासन काल में थी। तब देश की जनसंख्या
का वह वर्ग जो आज गरीबी की रेखा से नीचे का जीवन यापन कर रहा है- वह इस देश में होता ही नहीं। इस प्रकार इंदिरा गांधी का ‘गरीबी हटाओ’ का नारा सफल हो सकता था। अपने इसी नारे की सफलता के दृष्टिगत उन्होंने ‘हम दो-हमारे दो’ का संकल्प लिया था और देश में परिवार नियोजन का एक अच्छा अभियान
चलाने का निर्णय लिया था। लेकिन वोट के भूखे नेताओं ने जनता को बरगलाया और इंदिरा गांधी का यह अभियान भ्रूण हत्या का शिकार हो गया।
इतना ही नहीं देश में पुन: किसी भी प्रकार से आपातकाल की घोषणा कोई भी सरकार न कर पाए इसके लिए मोरारजी देसाई की सरकार ने विशेष प्रावधान संविधान में किया और अब यह स्पष्ट हो गया है कि कोई भी शासक देश में कठोरता से शासन नहीं कर सकेगा। यह एक अच्छी बात हो सकती है परंतु इसका परिणाम
यह भी आया है कि देश के लोगों में मनमानापन बढा है और अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है, यह चिंता का विषय है। हम श्री चव्हाणके द्वारा आयोजित किए गए यात्रा अभियान का समर्थन करते हैं, और देश के गंभीर और जागरुक लोगों से यह अपेक्षा भी करते हैं कि वह ऐसे अभियानों की गंभीरता को
समझें और देश के हित में सोचने का प्रयास करते हुए देश की बढ़ती हुई जनसंख्या को नियंत्रित करने में सहयोग करें। हमारे लिए सबसे पहले राष्ट्र होना चाहिए और अपने आने वाले कल के बारे में सोचते हुए एक ठोस निर्णय लेने की हमारी विवेक शक्ति का परिचय हमारे हर कार्य में और निर्णय में स्पष्ट दिखाई देना चाहिए।
तभी हम देश की रक्षा कर सकेंगे और देश के भीतर व्याप्त गरीबी, अशिक्षा और ऐसी ही दूसरी ज्वलन्त समस्याओं से मुक्ति पा सकेंगे।
मुख्य संपादक, उगता भारत