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सत्यार्थ प्रकाश ‘एक अनुपम ग्रन्थ’ भाग-5

राकेश आर्य (बागपत)

महर्षि दयान्द सीधे-सीधे वेदों के मंत्रो से अर्थ करके बताते है कि परमेश्वर के जितने नाम है उन सबका अर्थ ओंकार से होता है। क्योंकि परमेश्वर उसको कहते है जो अपने गुण, कर्म, स्वभाव और सत्य-सत्य व्यवहार में न सिर्फ सब से अधिक हो, सबसे श्रेष्ठ भी हो तथा उसके तुल्य भी कोई ना हुआ हो और न होगा। यहाँ महर्षि का

इशारा इस ओर भी है जैसे कुछ भाई परमेश्वर को अवतार के रूप में मानते है कुछ तो कहते है कि परमात्मा अवतार लेते रहते है परन्तु वह सीधे साधे लोग यह नहीं जानते कि परमात्मा सभी कार्य बिना अवतार लिए भी कर सकते है जैसे परमेश्वर के न्याय, दया, सर्वसामर्थ और सर्वज्ञ (हर जगह मौजूद रहने वाला), अन्नत (जिसका

अन्त न हो), विराट आदि गुण है वह स्वयंप्रकाश स्वरूप है ऐसे गुण किसी भी अन्य पदार्थ अथवा जीव में नहीं मिल सकते। अत: सब मनुष्यो को चाहिए कि उस अन्नत परमात्मा की ही स्तुति, प्रार्थना तथा उपासना करने योग्य है अन्य किसी की नहीं यहाँ यह भी बताना आवश्यक है कि ब्रह्मा, विष्णु, महादेव नामक जो हमारे विद्वान

पूर्वज हुए है उन्होने ने भी परमेश्वर में ही विश्वास करके उसी की उपासना की थी किसी अन्य की नहीं अब इसका भावार्थ यह है कि जैसे आजकल भी हमें बहुत से नाम मिलते है ब्रह्म, महेश, जय भगवान, ओमपाल आदि-आदि इसी प्रकार पहले भी नाम थे जिन्होनें अच्छे-अच्छे कायऱ् किये दैत्य,दानवो आदि से छुटकारा दिलाया

उन्हीं को परमेश्वर मान लेना सर्वथा अनुचित है। आज भी हम देखते है कि कई मनुष्य बहुत बड़े-बड़े अच्छे कार्य कर जाते है साधारण मनुष्य जिसकी कल्पना भी नहीं कर पाते परन्तु उनको परमेश्वर मानना हमारी भूल है जहाँ तक नामो का अर्थ है तो महर्षि आगे भी नामो की व्यख्या करते है जो उन्होने वेद मन्त्रो से लिए है मै

जानवूझकर,संस्कृत के श्लोक नहीं लिख रहा हूँ परन्तु नामों की व्यख्या कर रहा हूँ ।

1. विविध अर्थात् जो बहु प्रकार के जगत् को प्रकाशित करे, इससे परमेश्वर का नाम ‘विराट्’ है

2. जो ज्ञानस्वरूप,सर्वज्ञ, जानने, प्राप्त होने और पूजा करने योग्य है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘अग्नि’ है ।

3. जिस में आकाशादि सब भूत प्रवेश कर रहे हैं अथवा जो इन में व्याप्त होके प्रविष्ट हो रहा है, इसलिए उस परमेश्वर क नाम ‘विश्व’ है।

4. जो सूर्यादि तेज:स्वरूप पदार्थो का गर्भ नाम,(उत्पत्ति) और निवासस्थान है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘हिरण्यगर्भ’ है।

5. जो चराचर जगत् का धारण, जीवन औऱ प्रलय करता है और सब बलवानों से बलवान है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘वायु’ है।

6. जो आप स्वयं प्रकाश और सूय्र्यादि तेजस्वी लोको का प्रकाश करने वाला है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘तैजस’ है।

7. जिस का सत्य विचारशील ज्ञान और अन्नत ऐश्वर्य है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘ईश्वर’ है ।

8,9. जिसका विनाश कभी न हो इससे उस परमेश्वर का नाम ‘आदित्य’ संज्ञा है । 10,11 जो निभ्र्रान्त ज्ञानयुक्त सब चराचर जगत के व्यवहार को यथावत् जानता है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘प्राज्ञ’ है ।

12. जो सब को स्नेह करके और सब को प्रीति करने योग्य है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘मित्र’ है।

13. ईश्वर वरूण संज्ञक है अथवा वरूणो नाम वर: श्रेष्ठ: जिसलिए परमेश्वर सब से श्रेष्ठ है इससे उस का नाम ‘वरूण’ है ।

14. जो सत्य न्याय के करनेहारे मनुष्यों का मान्य और पाप तथा पुण्य के फलो का यथावत् सत्य-सत्य नियमकर्ता है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘अय्र्यमा’ है

15. परमात्मा अखिल ऐश्वर्ययुक्त है इसलिए इससे उस परमेश्वर का नाम ‘इन्द्र’ है।

16. जो बड़ो से भी बड़ा और बड़े आकाशादि ब्रम्हाण्ड़ो का स्वामी है इस से उस परमेश्वर का नाम ‘बृहस्पति’ है ।

17. चर और अचर रूप जगत् में व्यापक होने से परमात्मा का नाम ‘विष्णु’ है ।

18. अनन्त पराक्रमयुक्त होने से परमात्मा का नाम ‘उरूक्रम’ है ।

19. वायो ते ब्रम्हाणे नमोस्तु (बृह बृहि वृद्धौ) इन धातुओं से ब्रम्हा शब्द सिद्ध हुआ है इसलिए इससे उस परमेश्वर का नाम ‘ब्रह्मा’ है ।

20. इस यजुर्वेद के वचन से जो जगत् नाम प्राणी, चेतन और जंगम अर्थात् जो चलते फिरते हैं, ‘तस्थुष:’ अप्राणी अर्थात् स्थावर जड़ अर्थात प्रथिवी आदि हैं, उन सब के आत्मा होने और स्वप्रकाशरूप सब के प्रकाश करने से परमेश्वर का नाम ‘सूर्य’ है।

21,22. जो सब जीव आदि से उत्कृष्ट और जीव, प्रकृति तथा आकाश से भी अतिसूक्ष्म और सब जीवों का अन्तर्यामी आत्मा है, इस से ईश्वर का नाम ‘परमात्मा’ है।

23. जो ईश्वरों अर्थात् समर्थों में समर्थ, जिस के तुल्य कोई भी न हो, उस का नाम ‘परमेश्वर’ है।

24. जो सब जगत् की उत्पत्ति करता है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘सविता’ है।

25. जो सब में व्याप्त और जानने के योग्य है, इस से उस परमेश्वर का नाम ‘देव’ है।

26. जो अपनी व्याप्ति से सब का आच्छादन करे, इस से उस परमेश्वर का नाम ‘कुबेर’ है।

27. जो सब विस्तृत जगत् का विस्तार करने वाला है, इसलिए उस ईश्वर का नाम ‘प्रथिवी’ है।

28. जो दुष्टों का ताडऩ और अव्यत्क तथा परमाणुओं का अन्योअन्य संयोग या वियोग करता है, वह परमात्मा ‘जल’ संज्ञक कहाता है।

29. जो सब ओर से सब जगत् का प्रकाशक है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘आकाश’ है।

30,31,32. यह व्यासमुनिकृत शारीरक सूत्र है। जो सब को भीतर रखने, सब को ग्रहण करने योग्य, चराचर जगत् का ग्रहण करने वाला है, इसे ईश्वर के अन्न, अन्नाद और अत्ता नाम हैं। और जो इस में तीन वार पाठ है सो आदर के लिए है। जैसे गूलर के फल में कृमि उत्पन्न होके उसी में रहते और नष्ट हो जाते हैं, वैसे परमेश्वर के

बीच में सब जगत् की अवस्था है।

33. जो सब में वास कर रहा है, इसलिए उस ईश्वर का नाम ‘वसु’ है।

34. जो दुष्ट कर्म करनेहारों को रूलाता है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘रूद्र’ है।

35. जल और जीवों का नाम नारा है, वे अयन अर्थात् निवासस्थान हैं, जिसका इसलिए सब जीवों में व्यापक परमात्मा का नाम ‘नारायण’ है।

36.जो आनन्दस्वरूप और सब को आनन्द देनेवाला है, इसलिए ईश्वर का नाम ‘चन्द्र’ है।

37. जो आप मण्डलस्वरूप और सब जीवों के मण्डल का कारण है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘मण्डल’ है।

38. जो स्वयं बोधस्वरूप और सब जीवों के बोध का कारण है। इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘बुध’ है।

39. जो अत्यन्त पवित्र और जिसके अंग से जीव भी पवित्र हो जाता है, इसलिए ईश्वर का नाम ‘शुक्र’ है।

4?. जो सब में सहज से प्राप्त धैर्यवान् है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘शनैश्चर’ है।

41. जो दुष्टों को छोडऩे और अन्य को छुड़ाता है, इससे परमेश्वर का नाम ‘राहु’ है।

42. जो सब जगत् का निवासस्थान, सब रोगों से रहित और मुमुक्षुओं को मुक्ति समय में सब रोगों से छुड़ाता है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘केतु’ है।

43. जो सब जगत् के पदार्थों को संयुक्त करता और सब विद्वानों का पूज्य है, और ब्रह्मा से लेके सब ऋषि मुनियों का पूज्य था, है और होगा, इससे उस परमात्मा का नाम ‘यज्ञ’ है, क्योंकि वह सर्वत्र व्यापक है।

44. जो जीवों को देने योग्य पदार्थों का दाता और ग्रहण करने योग्यों का ग्राहक है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘होता’ है।

45. परमेश्वर भी पृथिव्यादि लोकों के धारण, रक्षक और सुख देने से ‘बन्धु’ संज्ञक है।

46. परमेश्वर सब जीवों की उन्नति चाहता है, इस से उस का नाम ‘पिता’ है।

47. जो पिताओं का भी पिता है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘पितामह’: है।

48. जो पिताओं के पितरों का पिता है इससे परमेश्वर का नाम ‘प्रपितामह’: है।

49. परमेश्वर भी सब जीवों की बढ़ती चाहता है, इस से परमेश्वर का नाम ‘माता’ है।

5?. सब विद्याओं की प्राप्ति का हेतु होके सब विद्या प्राप्त कराता है, इससे परमेश्वर का नाम ‘आचायर्’ है।

51. गुरूओं का भी गुरू और जिसका नाश कभी नहीं होता, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘गुरू’ है।

52. शरीर के साथ जीवों का सम्बन्ध करके जन्म देता और स्वयं कभी जन्म नहीं लेता, इससे उस ईश्वर का नाम ‘अज’ है।

53. जो सम्पूर्ण जगत् को रच के बढ़ाता है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘ ब्रह्मा’ है।

54,55,56. जिसका अन्त अवधि मर्यादा अर्थात् इतना लम्बा, चौड़ा, छोटा, बड़ा है, ऐसा परिमाण नहीं है, इसलिए परमेश्वर के नाम ‘सत्य’, ‘ज्ञान’ और ‘अनन्त’ है।

57. जिसके पूर्व कुछ न हो और परे हो, उसको आदि कहते हैं, जिसका आदि कारण कोई भी नहीं है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘अनादि’ है

58 जिस में सब मुक्त जीव आनन्द को प्राप्त होते है और सब धर्मात्मा जीवों को आनन्दयुक्त करता है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘आनन्द’ है ।

59 जो सदा वर्तमान अर्थात भूत, भविष्यत् , वत्र्तमान कालो में जिसका बाध न हो उस परमेश्वर को ‘सत्’ कहते है

60,61 जो चेतनास्वरूप सब जीवो को चिताने और सत्या-सत्य का जनानेहार है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘चित्’ है । इन तीनो शब्दों के विशेषण होने से परमेश्वर को ‘सच्चिदानंदस्वरूप’ कहते है ।

62 जो निश्चल अविनाशी है सो इससे उस परमेश्वर का नाम ‘नित्य’ है

63 जो स्वयं पवित्र सब अशुद्धियो से पृथक् और सब को शुद्ध करने वाला है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘शुद्ध’ है ।

64 जो सदा सब को जाननेहार है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘बुद्ध’ है ।

65 जो सर्वदा अशुद्धियो से अलग और सब मुमुक्षुओं को क्लेश से छुड़ा देता है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘मुक्त’ है ।

66 अत एव नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभावो जगदीश्वर: इसी कारण से परमेशवर का स्वभाव ‘नित्यशुद्धबुद्धमुक्त’ है ।

67 जिस का आकार कोई भी नहीं है और न कभी शरीर धारण करता है इसलिए इससे उस परमेश्वर का नाम ‘निराकार’ है ।

68 जो व्यक्ति अर्थात् आकृति तथा इन्द्रियो के विषय के पथ से पृथक है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘निरञ्जन’ है ।

69,70 जो प्रकृत्यादि जड़ और सब जीव प्रख्यात पदार्थो का स्वमी तथा पालन करनेहारा है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘गणपति’ है ।

71 जो संसार का अधिष्ठाता है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘विश्वेश्वर’ है ।

72 जो सब व्यवहारो में व्याप्त और सब व्यवहारो का आधार होकर भी किसी व्यवहार में अपने स्वरूप को नहीं बदलता, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘कूटस्थ’ है।

73,74 जब ईश्वर का विशेषण होगा तब देव जब चिति का होगा तब देवी इससे उस परमेश्वर का नाम ‘देवी’ है ।

75 जो सब जगत् के बनाने में समर्थ है इसलिए इससे उस परमेश्वर का नाम ‘शक्ति’ है ।

76 जो वेदादिशास्त्र या धार्मिक विद्वान योगियों का लक्ष्य अर्थात् देखने योग्य है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘लक्ष्मी’ है ।

77 जिस का सेवन सब जगत् विद्वान और योगीजन करते है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘श्री’ है ।

78 जिस को विविध विज्ञान तथा शब्द अर्थ, सम्बन्ध प्रयोग का ज्ञान प्राप्त है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘सरस्वती’ है ।

79 जो अपने ही सामथ्र्य से अपने सब काम पूरा करता है इसलिए इससे उस परमेश्वर का नाम ‘सर्वशक्तिमान्’ है ।

80 जिस का न्याय अर्थात पक्षपातरहित धर्म करने का ही स्वभाव है इससे उस ईश्वर का नाम ‘न्यायकारी’ है ।

81 सब सज्जनों की रक्षा करने और दुष्टो को दण्ड देनेवाला है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘दयालु’ है ।

82 शरीर में आँख, नाक, कान आदि अवयवो का भेद है वैसे दूसरे स्वजातीय ईश्वर, विजातीय ईश्वर या अपने आत्मा में तत्त्वान्तर वस्तुओं से रहित एक परमात्मा है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘अद्वैत’ है ।

83 जो शब्द स्पर्श, रूपादि गुणरहित है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘निर्गुण’ है ।

84 जो सब का ज्ञान, सर्वसुख, पवित्रता अनन्त बलादि गुणो से युक्त है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘सगुण’ है ।

85 जो सब प्राणी और अप्राणिरूप जगत् के भीतर व्यापक होके सब का नियम करता है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘अन्तर्यामी’ है ।

86 जो धर्म में ही प्रकाशमान और अधर्म से रहित, धर्म का ही प्रकाश करता है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘धम्र्मराज’ है ।

87 जो सब प्राणियों के कर्मफल देने की व्यवस्था करता है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘यम’ है ।

88 जो मनु अर्थात् विज्ञानशील और मानने योग्य है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘मनु’ है ।

89 जो समग्र ऐश्वर्य से युक्त या भजने के योग्य है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘भगवान’ है

90 जो सब जगत् में पूर्ण हो रहा है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘पुरूष’ है ।

91 जो जगत् का धारण और पोषण करता है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘विश्वम्भर’ है ।

92 जो जगत् के सब पदार्थ और जीवों की संख्या करता है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘काल’ है ।

93 जो उत्पत्ति और प्रलय से शेष है अर्थात् बच रहा है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘शेष’ है ।

94 जो सत्योपदेशक, सकल विद्मायुक्त तथा छल-कपटादि से रहित है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘आप्त’ है ।

95 जो कल्याण अर्थात् सुख का करनेहारा है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘शङ्कर’ है ।

96 जो महान देवों का देव है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘महादेव’ है ।

97 जो सब धर्मात्माओं और शिष्टो को प्रसन्न करता और सब को कामना के योग्य है इसलिए इससे उस परमेश्वर का नाम ‘प्रिय’ है ।

98 जो आप से आप ही है, किसी से कभी उत्पन्न नहीं हुआ इससे उस परमेश्वर का नाम ‘स्वयम्भू’ है ।

99 जो वेद द्वारा सब विद्माओं का उपदेष्टा और वेत्ता है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘कवि’ है ।

100 बहुलमेतत्रिदर्शनम्, इससे शिवु धातु माना जाता है जो कल्याणस्वरूप और कल्याण का करनेहारा है इससे उस परमेश्वर का नाम ‘शिव’ है ।

इस प्रकार हम देखते है कि परमात्मा के असंख्य नाम है परन्तु उसका निज नाम ओउम् है। 

……शेष अगले अंक में

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