!!ओ३म् !!
ईश्वर सभी सांस्कारिक संबंधों से भिन्न और विशिष्ट है ।
ईश्वर को समझने-समझाने के लिए उसकी तुलना माता से किया जाता है क्योंकि जैसे गर्भ में माता के प्राणमय कोश से शिशु के प्राणमय कोश का पालन होता , माता के अन्नमय कोश से शरीर बढ़ता वैसे ही जगदीश्वर पालन करने हारे प्राण का निर्माण कर इस जगत की रक्षा करता , प्रकृति के स्थूल रूप से शरीरों को बनाता ।
जैसे माता शिशु को नया जीवन देती और शिक्षा दे कर पालन करती वैसे ही ईश्वर विज्ञान वा प्रज्ञा देकर योगी की रक्षा करता।
जैसे माता बच्चे से अत्यन्त प्रीति करती वैसे ही ईश्वर योगी को आनंदित करता।
जैसे माता बच्चे को सुधारने हेतु दण्डित करती वैसे ही जगदीश्वर जीवात्मा के कर्म फल की व्यवस्था करता ।
जैसे दुःख में बच्चा अपनी माता को पुकारता है वैसे ही ओङ्कार से योगी ईश्वर को पुकारता है।
जैसे कष्ट में बालक को माता अपनी गोंद में उठा लेती वैसे ही ईश्वरप्रणिधान से युक्त योगी को ईश्वर अपनी गोंद में उठा लेता है अर्थात् सब कष्ट से दूर कर तर देता है।
-अनिल आर्य
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