शादाब सलीम-
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धार्मिक होना बुरा नहीं है, धर्मनिरपेक्ष होने के अर्थ धर्म त्याग देना नहीं है। एक नेता, अधिकारी, न्यायाधीश का भी कोई न कोई धर्म मत होता है। मेरे निकट धर्म तब तब बुरे नहीं है जब तक वह धर्म के आधार पर समूह का कपट पैदा न करते हो। जैसे एक पूजा करता हुआ आदमी, एक नमाज़ पढ़ता हुआ आदमी, एक चोला पहना हुआ आदमी, एक दाढ़ी रखा हुआ आदमी तब तक बुरा नहीं है जब तक वह इन चीज़ों को दूसरे लोगों के लिए बैर के लिए इस्तेमाल नहीं कर रहा है, जैसे ही वह इन चीज़ों का इस्तेमाल बैर और कपट के लिए करने लगता है, वह बुरे से बुरा होता चला जाता है।
ध्यान से देखे तो एक पूजा करता हुआ आदमी कितना सुंदर है,वह एकदम शांत है,लीन है,किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहा किसी के लिए कपट नहीं रख रहा है लेकिन अगर यही पूजा किसी को धमकाने के लिए हो तब वह कितना बुरा है।
नेता धर्म का इस्तेमाल वोट के लिए करते है, राजा राज्य के लिए करते थे। बाबर कभी हुकूमत में शायद नहीं आता अगर वह अपनी सेना को धर्मयुद्ध के नाम पर उकसाता नहीं। बाबर ने अपनी राजा बनने की लड़ाई को धर्मयुद्ध बता दिया था, इस धर्म युद्ध को जीत कर बाबर ने खूब आनंद लिए है, मरने वाले सैनिक जिहाद के नाम पर मर गए। आजकल के नेता भी चुनाव को धर्म युद्ध बना देते हैं, जनता मर जाए हमे सत्ता मिल जाए। पांच वर्ष में तो हम खजाने डकार जाएंगे।
हर ज़माने में धर्म का इस्तेमाल ऐसे ही किया गया है और किया जा रहा है। बदमाशों ने धर्म को औजार की तरह इस्तेमाल किया है। एक व्यक्ति मेरे एक भवन में किराए से रहता था। उसने चेहरे पर दाढ़ी रखी थी, मैं मुद्दत तक उसे ईमानदार आदमी समझता रहा। उसके घर कुछ लोग आया करते थे। एक दफा मैंने जांच की तो पाया कि वह उस घर में जुए की नाल निकालता है। मैंने तत्काल उसे बुलाया बुरा भला कहा और मकान खाली करवाया। धर्म का ऐसा ही इस्तेमाल सारी दुनिया में हो रहा है। धर्म से बने समूह लोगों के लिए जंजाल बन चुके है जितनी जल्दी हो सके ऐसे समूह समाप्त कर देना चाहिए, आदमी की धर्म से पहचान बड़ी खतरनाक है। धर्म से कोई पहचान ही नहीं रहना चाहिए। पहचान के लिए देश और शहर ही काफी है। धर्म की पहचान बहुत नुकसान पहुंचा रही है। आदमी की मूल समस्या दरकिनार कर एक अलग ही विवाद पैदा किया जा रहा है जिससे एक आम जन मानस की ज़िंदगी का कोई लेना देना नहीं है।( युवराज)
शादाब सलीम-