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भयानक राजनीतिक षडयंत्र

राष्ट्रांतरण का छिपा एजेंडा मतांतरण

भय, प्रलोभन और अंधविश्वास के माध्यम से किसी को अपनी धार्मिक पहचान बदलने के लिए बाध्य करना देश के लिए बड़ा और गंभीर संकट बनता जा रहा है। इस तरह के मतांतरण के विरुद्ध याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई है। शीर्ष न्यायालय का कहना है कि इस पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार को प्रयास करने होंगे। अनदेखी से स्थिति बिगड़ सकती है। जबरन मतांतरण राष्ट्र की सुरक्षा और धर्म की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है।

मतांतरण कराने वालों के निशाने पर प्राय: गरीब तबका होता है, जिसकी विवशता और गरीबी का लाभ उठाकर उन्हें धर्म बदलने के लिए बाध्य किया जाता है। संविधान में सभी को अपने मत-मजहब के प्रचार की स्वतंत्रता है, लेकिन इसका अनुचित लाभ उठाया जा रहा है। प्रचार के नाम पर अन्य को बरगलाने की स्वतंत्रता किसी को नहीं दी जा सकती है।

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा है कि निसंदेह सभी को संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। ये एक मूल्यवान अधिकार है और कार्यपालिका व विधायिका को इसकी रक्षा करनी चाहिए। कहा कि मौजूदा याचिका में बड़ी संख्या में संगठित रूप से वंचित वर्ग के नागरिकों का धोखे, लालच व दबाव या अन्य तरह से मतांतरण कराने का मुद्दा उठाया गया है।

सरकार ने कहा है कि समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग, महिलाओं और वंचितों के अधिकारों के संरक्षण के लिए गैरकानूनी जबरन मतांतरण को रोकने का कानून जरूरी है। धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में दूसरे लोगों को मतांतरणरित करने का अधिकार शामिल नहीं है। स्वतंत्र भारत में जबरन मतांतरण पर रोक के लिए कई बार कानून लाने का प्रयास हुआ है। हालांकि कोई राष्ट्रव्यापी कानून बनाने में सफलता नहीं मिल पाई।

सरकार के अनुसार,ने कहा है कि पब्लिक आर्डर राज्य का विषय है। और इसे देखते हुए कई राज्यों ने जबरन मतांतरण रोकने के लिए कानून बनाए हैं। उड़ीसा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा ने इस बारे में कानून बनाए हैं।

कई राज्यों में गरीब आदिवासियों और अनुसूचित जाति के लोगों को बहकाकर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए विवश करने के लिए कैसे-कैसे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, यह कोई छिपा तथ्य नहीं रह गया है। इन पर अंकुश लगाना इसलिए भी अनिवार्य है, क्योंकि किसी देश का सामाजिक ताना-बाना बदलने से वहां राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी गंभीर चुनौतियां पैदा होती हैं। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी जबरन मतांतरण को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है। शीर्ष न्यायालय की टिप्पणी में भी इस चिंता को देखा जा सकता है।

मतांतरण के माध्यम से समाज के सांस्कृतिक चरित्र को बदलने का प्रयास राष्ट्रघाती है। मतांतरण में लिप्त कुछ संगठनों को चिह्नित कर विदेश से उनके चंदे पाने संबंधी नियमों में केंद्र सरकार ने बदलाव किए हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। मतांतरण मूलत: राष्ट्रांतरण के छिपे एजेंडे पर बढ़ता कदम है। यह देश एवं समाज के लिए आतंकवाद से कम घातक नहीं है। इससे निपटने के लिए भी सरकार को सख्त प्रविधान करने की आवश्यकता होगी।

केंद्र और राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट की इस बात पर गंभीरता दिखानी चाहिए और इस मुद्दे पर बिना राजनीतिक भेदभाव के काम करना चाहिए, ताकि अशिक्षित, आदिवासी और अन्य लोग बलि का बकरा न बन जाएं। बहुत ही गलत है कि धर्म विशेष के लोग दुनिया के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष देश का गलत फायदा उठाकर देश में मतांतरण जबरदस्ती कोई लालच देकर करवा रहे हैं और इसके लिए वो गरीबों और आदिवासी लोगों को शिकार बना रहे हैं। लेकिन ऐसा आखिर वो कर क्यों रहे हैं? किस धर्म में लिखा है कि धर्म के नाम पर छल करना, दूसरों को गुमराह करना उचित है। अगर धर्म विशेष के लोग गरीबों का भला करना ही चाहते हैं तो वे धर्म परिवर्तन की शर्त क्यों रखते हैं? (युवराज)

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