“यज्ञ वैदिक संस्कृति का प्राण है और इसके कर्ता को स्वर्ग की प्राप्ति होती है”
महरौनी (ललितपुर) । महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वावधान में विगत 2 वर्षों से वैदिक धर्म के मर्म से युवा पीढ़ी युवा पीढ़ी को परिचित कराने के उद्देश्य से प्रतिदिन मंत्री आर्यरत्न शिक्षक लखनलाल आर्य द्वारा आयोजित आर्यों का महाकुंभ में दिनांक २४ नवम्बर,२०२२ , गुरुवार को”” यज्ञ का महत्व “” विषय पर मुख्य वक्ता प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् प्रो. डॉ. व्यास नन्दन शास्त्री वैदिक, महामंत्री, बिहार राज्य आर्य प्रतिनिधि सभा,नया टोला ,पटना -४ ने कहा कि यज्ञ वैदिक संस्कृति का प्राण है क्योंकि हमारे सभी धार्मिक कार्य यज्ञ द्वारा ही सम्पादित होते हैं ।
मीमांसाकार ने” स्वर्गकामो यजेत” और मैत्रायणी उपनिषद् के अनुसार “अग्निहोत्रं जुहुयात् स्वर्गकाम:” कहकर यज्ञकर्ता को स्वर्ग (सुख विशेष ) की प्राप्ति होती है। वेदों में विशेषकर यजुर्वेद कर्मकांड विषयक होने के कारण इसे “यज्ञवेद” कहा जाता है। अथर्ववेद के अनुसार “ईजाना: स्वर्गं यन्ति लोकम् द्वारा यज्ञ करने वाले का घर स्वर्ग को प्राप्त होता है । ऐसे घरों में किसी प्रकार का भय नहीं होता, बुढ़ापे के कष्ट वहां नहीं होते, भूख और प्यास की चिंता नही होती और सभी प्रकार के रोग शोक से दूर हो जाते हैं क्योंकि यज्ञ करने वाले के सभी पुत्र- पुत्रियां प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक अपने जीवित पितरों का श्राद्ध -तर्पण करते हैं। इसी लिए शतपथकार ने “यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म द्वारा यज्ञ को मानव जीवन का श्रेष्ठतम कर्म कहा है ।सत्य तो यह है कि यज्ञ जीवन का पर्याय है।
यज्ञ से सुख -शांति, पर्यावरण की शुद्धि तथा शुद्ध जल, वायु और सुखद वृष्टि होती है। यज्ञ महत्व पर युग प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती ने डंके की चोट से उद्घोषणा की है — – “होम करना अत्यावश्यक है। प्राचीन काल में हमारेआर्यवर ऋषि – महर्षि,राजे – महाराजे बड़े-बड़े यज्ञ करते थे फलत: हमारा देश सुखों से पूरित और रोगों से रहित था ,अव भी हो तो वैसा ही हो जाए।” प्रो. शास्त्री ने यज्ञ की विधियों की व्याख्या करते हुए कहा कि यज्ञ शब्द यज् धातु से देवपूजा, संगतिकरण और दान इन तीन अर्थों में प्रयुक्त होता है। वैदिक धर्म में यज्ञ शब्द अत्यन्त व्यापक और सारगर्भित रूप से वर्णित है।यज्ञ में प्रयुक्त होने वाली सुमन्धित, पुष्टि कारक,मिष्ट और रोगनाशक इन चार प्रकार की सामग्रियों में अनेक प्रकार की जड़ी बूटियां हैं जो मन्त्रों द्वारा स्वाहाकारपूर्वक आहुतियां दी जाती हैं जिनसे स्थावर जंगम जगत् की शुद्धि होती है और विश्व का कल्याण होता है। तभी तो यज्ञ से तीनों लोकों- पृथ्वी लोक ,अन्तरिक्ष लोक और द्यु लोकों में शान्ति और पवित्रता आती है। यज्ञ में प्रयुक्त अग्नि सभी जड-चेतन देवताओं को एक साथ लाभ पहुंचाती है।इसके साथ ही अग्नि सभी देवताओं का मुख है– अग्नि र्वै देवानां मुखम्।
यज्ञ की आत्मा “स्वाहा”,प्राण “इदन्न मम “,और सार “सुगन्धि” है।सभी सोलह संस्कार गर्भाधान से अन्त्येष्टि पर्यन्त यज्ञ द्वारा ही निष्पन्न होते हैं, इसीलिए स़ंस्कारों की आत्मा ” यज्ञ ” है।अत: सभी मानवों को वेदानुकूल यज्ञ करते हुए मानव -ज्ञीवन को सफल और सार्थक बनाना चाहिए।
कार्यक्रम में वैदिक विद्वानों में डॉ. कपिल देव शर्मा दिल्ली,प्रो. डॉ. वेद प्रकाश शर्मा बरेली, प्रधान प्रेम सचदेवा दिल्ली, आर्या चंद्रकांता “क्रांति” हरियाणा, युद्धवीर सिंह हरियाणा, अनिल कुमार नरूला दिल्ली, चन्द्रशेखर शर्मा जयपुर,भोगी प्रसाद म्यांमार,देवी प्रसाद सिंह आर्य दुबई, परमानंद सोनी भोपाल, शिक्षिका सुमनलता सेन आर्या शिक्षिका अनुपमा सिंह अवधेश कुमार सिंह बैंस, विमलेश कुमार सिंह, सत्यदेव प्रसाद गुप्ता बिहार, प्रो0 निभा शर्मा बिहार, विमलेश कुमार सिंह आदि सैकड़ों आर्य जन आर्यों का महाकुंभ से जुड़कर लाभ उठा रहे हैं।
कार्यक्रम में कमला हंस,दया आर्या ‘अदिति आर्या ‘संतोष सचान ने भजनों की मनमोहक प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम का संचालन मंत्री आर्य रत्न शिक्षक लखनलाल आर्य तथा प्रधान मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने सबके प्रति आभार जताया।