शादाब सलीम
राहुल गांधी की भारत जोड़ो पदयात्रा मध्यप्रदेश के शहर इंदौर पहुंच चुकी है। आज उनकी यात्रा इंदौर के पहले पड़ने वाले महू छावनी में होगी जहां बाबा साहब अंबेडकर का जन्म हुआ था। इतेफाक से आज यात्रा महू पहुंची है और आज ही संविधान दिवस है। बाबा साहब संविधान समिति के ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष थे। कल उनकी पदयात्रा इंदौर के ऐतिहासिक राजबाड़ा पहुंचेगी जहां रानी अहिल्याबाई का दरबार लगता था, आजकल वह जगह इंदौर का लोकल व्यापारिक केंद्र है। शहरभर में कांग्रेसी नेताओं की भागदौड़ चल रही है। इंदौर से यात्रा सकुशल निकालने का जिम्मा विनय बाकलीवाल, जीतू पटवारी, सज्जन सिंह वर्मा, संजय शुक्ला और अश्विन जोशी, पिंटू जोशी के जिम्मे है।
राहुल गांधी की यह यात्रा प्रशंसनीय है और ऐतिहासिक भी है। एक नज़र से देखे तो यह कितना बड़ा और कितने साहस का काम है। किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता का इस तरह सड़कों पर निकल जाना और जनता से मिलते चलना कोई आसान काम नहीं है। इसमे सबसे ज्यादा तो ऊर्जा की ज़रूरत है जो आजकल के नेताओं के पास नहीं है। जैसा राहुल गांधी ने कहा कि हमारे पास यही रास्ता बचा था, विपक्ष अब बस यही कर सकता था कि वह सड़क पर निकल जाए और मजदूरों, किसानों और छोटे व्यापारियों से बात करते चले।
जैसा विपक्ष को होना चाहिए राहुल गांधी उस ही अंदाज़ में है। गुज़श्ता तीस वर्ष से ज्यादा से नेहरु गांधी परिवार का कोई आदमी भारत का प्रधानमंत्री नहीं हुआ है। राहुल गांधी इस मामले में उभर कर आए है। उनकी उम्र कम है और उनके पास बहुत समय शेष है। इस यात्रा से यदि वह मोदी के बाद भी अपने को स्थापित कर लेते हैं तो उनकी इस यात्रा का उद्देश्य सफल होगा। हालांकि इस यात्रा से उन्होंने जबरदस्त हुंकार भरी है। जैसे पहलवान ने एरीना में उतर कर खम ठोका है। सत्ता को चुनौती देने लायक विपक्ष भी होना चाहिए, ऐसी चुनौती अटल बिहारी वाजपेयी दिया करते थे और अंततः वह भारत के प्रधानमंत्री हुए। कुछ लोग सदा विपक्ष में ही रहते हैं, अटल बिहारी इस ही तरह विपक्ष में ही रहे उन्हें थोड़े बहुत मौके मिले लेकिन ज्यादातर समय विपक्ष में ही बीता।
राहुल गांधी भी पिछले आठ वर्षों से विपक्ष में है। विपक्ष में रहता आदमी ज्यादा सीखता है और जनता से ज्यादा मिलता है। उनकी बड़ी हुई बेतरतीब दाढ़ी चर्चा में है, विपक्ष में रहकर थपेड़े खाकर आदमी का यही हाल होता है और होना भी चाहिए। किसी भी आदमी को कोई सफलता थाली में नहीं मिलना चाहिए, उसके पीछे परिश्रम होना चाहिए। मित्र शराफत कहते हैं आसानी से हासिल की गई सफलता टिकती नहीं है जैसे एक जुआ खेलने वाला आसानी से अमीर हो जाता है लेकिन उतनी ही आसानी से भुखमरी में भी चला जाता है। किसी भी सफलता के पीछे घोर परिश्रम होना चाहिए। राहुल के पास बहुत उम्र है और बहुत मौके है लेकिन उनका विपक्ष में इस तेज़ में होना बड़ा राहतभरा है।