डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी
पिछली रात मेरे सपने में चमकदार पगड़ी वाले एक बुजुर्ग आए थे। आते ही पूछने लगे, क्या हालचाल है? अपना हिन्दू समाज किस दिशा में जा रहा है? उनकी छवि जानी-पहचानी लग रही थी परन्तु मैंने उन्हें पहचाना नहीं। मेरी स्थिति को पगड़ी वाले बुजुर्ग भांप गए- आपने मुझे पहचाना नहीं। मुस्कुराते हुए बोले, मैं राजाराम मोहन राय हूं। मैं सिर्फ हिन्दू नहीं बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज की दशा- दिशा पर बात करने आया हूं। मैं तो पूछने आया हूं कि भारतीय समाज नई पीढ़ी को बदलती दुनिया के साथ चलने की आजादी क्यों नहीं दे रहा? दूल्हा- दुल्हन तलाशने के मामले में सभी जाति धर्मों के भारतीय परिवारों में अभिभावकों की एक जैसी दादागिरी चल रही है। हमें अगुआई – वरतुहारी की प्रथा बंद करनी पड़ेगी। इस दकियानूसी से आज की युवा पीढ़ी का बेड़ा गर्क हो रहा है। लड़का -लड़की एक -दूसरे को जानते तक नहीं। सबकुछ विधि विधाता तय करते हैं। लेन- देन का सौदा पक्का होते ही विधि विधाता को भनक लग जाती है। मां -बाप आनन- फानन में तारीखें तय करते हुए कहते हैं- शादियां तो ऊपर से ही तय होती हैं। इस पर प्रेमी युगल झुंझलाते हैं।
विधि विधाता तो यह भी नहीं जानते कि माडर्न बहुएं होती कैसी हैं? वर -वधू एक दूसरे की सोच, शैक्षणिक स्तर, चाल -चरित्र से पूर्णतः बेखबर होते हैं। शादी के चंद महीने बाद उनकी केमिस्ट्री में रिएक्शन शुरू हो जाता है। राय साहब मेरी आंखों में आंखें डालकर कहते गए -आप लोगों की भी सामाजिक जिम्मेदारी बनती है। समाज सुधार एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। हिन्दू समाज का अग्रदूत बने।
मैंने सफाई दी। शादी से पहले लड़का -लड़की एक -दूसरे के फोटो – बायोडाटा को गौर से देखते हैं। मोबाइल पर दोनों की बातचीत कराई जाती है। वे वीडियो कांफ्रेंसिंग से एक- दूसरे के विचार जानते हैं। भाव -भंगिमा और नजरिया समझते हैं। उनकी रजामंदी के बाद ही शादी का मुहूर्त निकाला जाता है। मेरी बातों से राम मोहन राय खीझ गए। बिना टेस्ट के अहसासात की गहराई कैसे मापेंगे? दुनिया चांद पर चली गई और आप लोग यहां मुहूर्त निकाल रहे हैं। रूढ़िवादिता छोड़नी पड़ेगी, वरना शादी पर से भरोसा उठ जाएगा। दो चार दिनों की बातचीत से असली चेहरे की पहचान संभव है क्या? इंसान को समझने में तो उम्र गुजर जाती है! सवाल जिंदगी भर का है। हर कालेज – इंस्टीट्यूट के पास ‘लिव इन रिलेशन सेंटर’ खोलना पड़ेगा। यहां दाखिला लेने वाली जोड़ियों के लिए सरकारी स्कालरशिप का प्रावधान करना पड़ेगा। लिव इन रिलेशनशिप में लड़कियां अपने सिक्स्थ सेंस पावर का उपयोग करते हुए लड़कों के अंदर छिपे इंसान की पहचान कर लेंगी। उन्हें जीवन में कभी मात नहीं खानी पड़ेगी। यह सेंटर शादी के पूर्व का एक परीक्षण सह प्रशिक्षण केंद्र होगा। लड़कियां यहां सहजता से एक जिम्मेदार भावी पति की पहचान कर सकेंगी। जिसे मोबाइल पर बातचीत में समझ नहीं सकीं, उसे लिव इन में रह कर समझेंगी। नई दिल्ली या मुंबई में एक राष्ट्रीय लिव इन रिलेशन सेंटर की स्थापना की जानी चाहिए, जहां शशि थरूर, दिग्विजय सिंह, आमिर खान, सैफ अली खान, रिया चक्रवर्ती और आफताब पूनावाला जैसी विभूतियों को विजिटिंग प्रोफेसर बनाना बेहतर होगा। ये पढ़ाएंगे कि भरोसेमंद गर्लफ्रेंड – ब्वायफ़्रेंड की पहचान व तलाश कैसे की जाए?
मैंने राजाराम मोहन राय को बीच में ही टोका, लिव इन एक ढकोसला है, लड़का और लड़की द्वारा दोनों की केवल शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति की अड्डेबाजी मात्र है। उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया। अपनी बात जारी रखी। भारतीयों की इसी मानसिकता पर पश्चिम वाले हंसते हैं। सकारात्मक सोच रखिए। पश्चिमी राष्ट्र ज्ञान-विज्ञान, सभ्यता संस्कृति के मामले में हमसे बहुत आगे निकल चुके हैं। स्वच्छंद जीवन शैली नारी स्वातंत्र्य व सशक्तिकरण की पहली सीढ़ी है। लड़की के लिए यह जानना जरूरी है कि उनका जीवन साथी अवसरवादी तो नहीं? दो -चार महीने के सहवास के बाद उसके लिवइन पार्टनर में कोई बदलाव तो नहीं आ रहा? लड़कियों को यह समझने में देर नहीं लगेगी कि उनकी स्वच्छंदता में लड़का अपना फायदा ढूंढ़ रहा है या उनकी सहृदयता के प्रति श्रद्धा भाव रखता है? लिव इन रिलेशनशिप मानव सभ्यता की महानतम खोज है। कल तक हम सुनते थे – ‘लत लक्षण बाई, इ तीनों मरले पर जाई।’ आज के प्रेमी युगल एक -दूसरे को सुधारकर ही दम लेते हैं। रिया चक्रवर्ती ने सुशांत सिंह राजपूत को और श्रद्धा ने आफताब पूनावाला को सुधार दिया। इस पवित्र केंद्र पर लड़का-लड़की को एक-दूसरे को समझने, जांचने -परखने और सुधारने का अवसर मिलता है। शादी के बाद सुधारने का झंझट नहीं रहता। कई बार उनकी स्वच्छंद जीवन शैली खून से लथपथ रंग लाती है। जीवन ईश्वर का दिया अनमोल उपहार है। इसे बंधनों से मुक्त होकर अवसर का लाभ उठाने का मौका समझिए। बस यूं समझिए कि ये जिंदगी ना मिलेगी दोबारा! फिल्मों के गाने में एक दर्शन छिपा होता है, उसे जिंदगी का फलसफा बनाना जरूरी है। इसलिए बेहतर होगा…’हरेक पल की खुशी से गले लगा के जीयो।’
मैंने पूछा, जिनके बेटी -बेटे लिव इन रिलेशनशिप में जाएंगे, वे समाज को क्या जवाब देंगे? जवाब नहीं देना है। अपने परिवार के अभिजात्य वर्ग में प्रवेश का उत्सव मनाना पड़ेगा। जिस दिन हमारे बेटे- बेटी लिव इन रिलेशन सेंटर के लिए घर छोड़ रहे हों, हम सत्यनारायण भगवान की पूजा, हनुमान आराधना या भगवती जागरण के बहाने पूरे मोहल्ले व रिश्तेदारों को आमंत्रित करेंगे। पूजा के बाद हम लाडले को माला पहनाएंगे। प्रसाद ग्रहण कर हमारे सपूत उन्मुक्त आश्रम के लिए प्रस्थान कर रहे होंगे, मां मंगल गीत गाएंगी। उपनयन के बाद और पाणिग्रहण से पूर्व के इस संस्कार को अमृत ग्रहण संस्कार नाम दिया जाएगा। धीरे -धीरे हर घर में अभिजात्य कहलाने की होड़ लगेगी। इसी तर्ज पर हमारे मुसलमान भाई कोई जलसा कर लेंगे।
अब तक मैं राम मोहन राय जी की तर्कसंगत बातों से सहमत हो चुका था। मुझे समाज सुधार की यह परिकल्पना आकर्षक लगी। मैंने कहा, कृपया विस्तार से बताइए। लिव इन सेंटर का सत्र कितने दिन का होना चाहिए? उसके सिलेबस में क्या-क्या शामिल करना चाहिए। उन्होंने बताया कि लिव इन रिलेशनशिप का सिलेबस बहुत बड़ा है और सवाल जिंदगी भर का है। इसे दिन, महीने, साल की सीमाओं में मत बांधिए। पार्टनर पसंद नहीं आया तो दो टूक जवाब-आप जाइए, दूसरी पीछे है, फिर तीसरी भी। सिलेबस के लिए हमारे देश में ग्रंथों की कमी नहीं है। महर्षि वात्स्यायन के ‘कामसूत्र’ से लेकर भगवान रजनीश की मशहूर किताब ‘संभोग से समाधि की ओर ‘ को पढ़ने समझने व आत्मसात करने के लिए पर्याप्त समय देना पड़ेगा। इसके साथ ही राजस्थान की प्राचीन ‘नाता प्रथा’ की विशेषताओं का अध्ययन जरूरी है, क्योंकि अधूरा ज्ञान खतरनाक हो सकता है। एक सेंटर में कुछ समझ नहीं पाया, उसकी तलाश पूरी नहीं हुई हो तो……’ना मुंह छिपा के जीयो और ना सिर झुका के जीयो।’ गर्व के साथ किसी नए लिव इन रिलेशन सेंटर में दाखिला ले लो। सुबह एक सेंटर में और रात दूसरे सेंटर में, की छूट देने पर सामने विकल्पों की भरमार होगी। बेटी के लिव इन रिलेशनशिप के सदमे में मां की मौत हो जाए तो बेटी को कलेजा पत्थर करने के हुनर सीखाए जाएंगे। प्रशिक्षुओं को पार्टनर से पीछा छुड़ाने के तरीके बताए जाएंगे। मसलन, ट्विटर पर ब्रेकअप की घोषणा! सुनन्दा पुष्कर, श्रद्धा या सुशांत सिंह राजपूत की तरह चैप्टर क्लोज करना। बीच- बीच में जांच परीक्षा ली जाएगी – रखैल व लिव इन पार्टनर में क्या अंतर है? खून के धब्बे मिटाने, हत्या में प्रयुक्त हथियार छिपाने और नश्वर शरीर के टुकड़े खपाने की कौन-कौन सी विधियां कारगर हैं?
लड़कियों को इत्मीनान से परखने दीजिए कि उनका पार्टनर लंबी रेस का घोड़ा है या नहीं? वह अपनी मां के आंचल में उलझा तो नहीं रहता? लड़की का एटीएम कार्ड हथियाने के बाद लड़का कितने दिनों तक वफादार रहेगा? मारपीट और गाली गलौज के कितने घंटे बाद वह प्यार जताने लगता है?
मुझे पत्रकारिता का कीड़ा काटने लगा। मैंने राजाराम मोहन राय को याद दिलाया -राजा का चित्त, कंजूस का धन, दुर्जनों का मनोरथ, पुरुष का भाग्य और स्त्रियों का चरित्र देवता तक नहीं जान पाते तो लिव इन रिलेशनशिप में प्रेमी युगल कैसे जान पाएंगे? उन्होंने दार्शनिक मुद्रा में जवाब दिया – जिस दिन लड़का -लड़की एक -दूसरे को अच्छी तरह समझ जाएंगे, वे दुनिया के तमाम बंधनों से ऊपर उठ जाएंगे। वह परम ज्ञान की अवस्था होती है, जब इंगेजमेंट पार्टी के बाद सीधे ब्रेकअप पार्टी में पहुंच जाते हैं और लिव इन रिलेशनशिप में दूसरी दुनिया में पहुंच जाते हैं।