आशीष वशिष्ठ
कनाडा यूनिवर्सिटी ऑफ क्यूबेक के जैव रसायन प्रोफेसर एवं वैज्ञानिक मार्क ब्यूरेगार्ड ने कुछ समय पहले बताया था कि धरती पर आने वाले लगभग 50 वर्षों तक यानी कि 2070 तक पेट्रोल-डीजल खत्म हो जाएगा। इस पर गौर करते हुए वैज्ञानिक अब वाहनों को चलाने के लिए नए-नए तरीके खोज रहे हैं।
कनाडा में वैज्ञानिकों ने जैव ईंधन की खोज की है, जिससे आने वाले समय में पेट्रोल-डीजल खत्म होने पर इसका उपयोग किया जा सकेगा। पेट्रोल-डीजल सीमित मात्रा में उपलब्ध होने से यह खत्म हो जाएंगे, लेकिन जैव ईंधन कभी खत्म नहीं होने वाला उपाय है। क्योंकि, इसका उत्पादन वनस्पति से होगा और वनस्पति लगातार तैयार कर सकते हैं।
जैव ईंधन का सबसे बड़ा फायदा पर्यावरण को सुरक्षित रखना है, जबकि पेट्रोल-डीजल आदि ईंधन से पर्यावरण प्रदूषित होता है। अमेरिका जैसे विकसित देश ने ग्रीन बिजली पर काम करना शुरू कर दिया है। अमेरिका के मैरीलैंड का टकोमा पार्क में एक चार्ज स्टेशन लगाया गया है जो ग्रीन बिजली से चलता है। एक्सपर्ट मानते है कि आने वाले समय में हमें इस तरह के और आविष्कार करने होंगे।
कुछ बुद्धिजीवी इलैक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने का सुझाव देते हैं, लेकिन हमारे देश में तो बहुत से राज्य बिजली की कमी से भी जूझते हैं। कभी कोयले की कमी के कारण, तो कभी बारिश कम होने के कारण। इसलिए कुछ विद्वान कहते हैं कि इलैक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने से ज्यादा जरूरी है कि हाईड्रोजन ऊर्जा की तरफ गंभीरता दिखाई जाए। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन फ्यूल से चलने वाले वाहनों की ओर लोगों की रुचि बढ़ा रही है।
अगर भारत के संदर्भ में बात की जाए तो पेट्रोल, डीजल की कीमतें हमेशा से राजनीतिक तौर पर एक संवेदनशील मसला रही हैं। पेट्रोलियम पदार्थों और खासतौर पर डीजल की कीमतें बढ़ने से आम लोगों के लिए जरूरत की चीजों के दाम भी बढ़ते हैं। भारत में जीडीपी में लॉजिस्टिक्स की लागत करीब 13-14 फीसदी बैठती है। ऐसे में अगर डीजल के दाम बढ़ते हैं तो इसका सीधा असर बाकी वस्तुओं के अलावा सब्जियों, दालों जैसी आम लोगों के इस्तेमाल की चीजों की महंगाई पर भी पड़ता है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में पेट्रोल-डीजल के विकल्प पर व्यापक तौर पर विचार-विमर्श हो रहा है।
कुछ समय पहले ही में टोयोटा ने अपनी पहली हाइड्रोजन फ्यूल से चलने वाली कार लॉन्च की थी। जिसके जरिए केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी पहली बार संसद भवन पहुंचे थे। जिसके बाद पेट्रोल, डीजल, इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन फ्यूल से चलने वाली कारों में कौन सी बेहतर है इसको लेकर चर्चा शुरू हो गई है। हाइड्रोजन ईंधन को अब भविष्य का ईंधन माना जा रहा है। भारत बड़ी मात्रा में पेट्रोल-डीजल आयात करता है, ये ईंधन महंगे तो हैं ही, इनसे प्रदूषण भी बहुत होता है, जबकि ग्रीन हाइड्रोजन काफी सस्ती गैस है, इसके जरिये प्रति किलोमीटर सिर्फ 2 रुपये का खर्च आयेगा।
ग्रीन हाइड्रोजन पारंपरिक ईंधन का एक विकल्प है, जिसे किसी भी वाहन पर इस्तेमाल किया जा सकता है। ग्रीन हाइड्रोजन ईंधन मध्यम से लंबी दूरी की यात्रा के लिए काफी भरोसेमंद मानी जा रही है। देश में पेट्रोल-डीजल का उत्पादन नहीं होता इसलिए देश में पेट्रोल और डीजल का आयात किया जाता है। इसके लिए देश ओपेक देशों पर निर्भर है। जबकि हाइड्रोजन पूरी दुनिया में पर्याप्त मात्रा में है जो कि, भविष्य में पेट्रोल-डीजल का विकल्प बन सकता है।
एनर्जी और नेचुरल रिसोर्सेज पर अमेरिकी सीनेट की एक कमेटी की 1996 में आई एक रिपोर्ट में कहा गया कि हाइड्रोजन का त्वरित इस्तेमाल ट्रांसपोर्टेशन में किया जा सकता है। इससे ओजोन की परत को नुकसान नहीं होता है, एसिड रेन का खतरा नहीं होता है और न्यूक्लियर वेस्ट की की कोई समस्या नहीं होती है। जहाजों और विमानों को भी हाइड्रोजन से चलाजा जा सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार भारत में विशाल सौर, पवन, जलविद्युत और अपशिष्ट क्षमता के साथ, देश हरित हाइड्रोजन उत्पादन में दुनिया का नेतृत्व कर सकता है। बीते दो-तीन साल में सड़क पर कई कंपनियों के इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर और फोर व्हीलर देखने को मिले हैं जिससे साफ हो गया है कि, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स भविष्य में ट्रांसपोर्ट का एक जरिया बन सकते हैं। जबकि अभी हाइड्रोजन फ्यूल से चलने वाले वाहनों की बहुतायत नहीं है। (युवराज)
आशीष वशिष्ठ