वीर सावरकर के विरोध के निहितार्थ
कांग्रेस द्वारा अपने सत्ता निर्वासन को समाप्त करने के लिए भारत जोड़ो यात्रा यात्रा निकाली जा रही है। जो कांग्रेस की तड़पन को दूर करने के लिए अपरिहार्य भी है। लेकिन कभी कभी इस यात्रा के दौरान ऐसा भी लगने लगता है कि इस यात्रा का मूल उद्देश्य भारतीय समाज को जोड़ने के लिए नहीं, बल्कि समाज में बिखराव पैदा करना ही है। अगर यात्रा का उद्देश्य वास्तव में ही समाज को जोड़ने के लिए होता तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा कम से कम वीर सावरकर के बारे में अनुचित टिप्पणी करने से परहेज करते, लेकिन राहुल गांधी ने ऐसा नहीं किया। इसके पीछे कांग्रेस के कौन से निहितार्थ है? यह कांग्रेस के नेता ही जानते होंगे, लेकिन इतना अवश्य है कि महाराष्ट्र में वीर सावरकर पर निशाना साधने के कुछ मायने हैं। एक राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर अध्ययन किया जाए तो यही कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र में वीर सावरकर के प्रति सम्मान कुछ ज्यादा ही है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा अंग्रेजों का नौकर बताने वाला बयान देना निश्चित ही महाराष्ट्र की जनता को उकसाने वाला ही था। कांग्रेस नेता संभवत: यही चाहते थे कि महाराष्ट्र में भारत जोड़ो यात्रा का विरोध हो और ठीकरा भाजपा-शिंदे सरकार पर फोड़ा जाए। लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस की यह राजनीतिक योजना पूरी तरह से असफल हो गई।
भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से कांग्रेस जो सपना देख रही है, वैसा हर राजनीतिक दल को देखना भी चाहिए। ऐसी यात्राओं के माध्यम से राजनीतिक दलों को जनता के बीच जाने का अवसर प्राप्त होता है। जनता की समस्याओं को जानने का भी साक्षात्कार होता है। वास्तव में राजनीतिक दलों का मूल उद्देश्य भी यही होना चाहिए, लेकिन कांग्रेस की इस भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी जनता से सीधे जुड़ रहे हैं, ऐसा दिखाई नहीं देता। वह जनता के समक्ष कांग्रेस के विचार को स्थापित करने में असफल ही हो रहे हैं। उनकी यात्रा के मूल में कांग्रेस कम, भाजपा का विरोध ज्यादा दिखाई दे रहा है। कहा जाता है कि विरोध की राजनीति करने से नकारात्मक भाव प्रादुर्भूत होता है। इसके साथ ही यह भी एक बड़ा सच है कि सामने वाले का जितना विरोध करेंगे, उसका उतना ही प्रचार होता जाएगा। आज वास्तविकता यही है कि भाजपा को बड़ा बनाने में जितना परिश्रम स्वयं भाजपा का नहीं, उससे कहीं ज्यादा विरोधी दलों का है। क्योंकि वर्तमान विरोधी दलों का कोई भी कार्यक्रम भाजपा विरोध के बिना अधूरा ही है। विपक्षी दल जब तक अपनी स्वयं की बात प्रभावी तरीके से नहीं रखेंगे, तब तक उनके स्वयं के विचार जनता तक नहीं पहुंच सकते। आज देश की राजनीति का स्तर केवल भाजपा समर्थन या भाजपा विरोध ही रह गया है।
जहां तक राहुल गांधी द्वारा वीर सावरकर के बारे में टिप्पणी करने का मामला है तो इसमें यही कहा जाएगा कि उन्हें वीर सावरकर के जीवन के बारे में पूरी जानकारी नहीं है। आज इस बात को पूरा देश स्वीकारता है कि वीर सावरकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं। उन्होंने अंग्रेजों की अमानवीय यातनाएं भोगी। क्या कभी किसी ने सुना है कि किसी को दो जन्मों का आजीवन कारावास दिया गया हो, लेकिन वीर सावरकर के साथ अंग्रेज सरकार ने यही किया। राहुल जी को संभवत: वीर सावरकर जी के त्याग के बारे में कोई ज्ञान नहीं है। राहुल जी सावरकर को क्या साबित करना चाहते हैं, यह तो वही जानें, लेकिन सवाल यह आता है कि जब अंग्रेजों ने ऐसी कठोर सजा दी, तब यह स्वाभाविक रूप से सिद्ध भी हो जाता है कि उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध जन जागरण करते हुए एक वातावरण बनाने का काम किया। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि सावरकर जी ने अंग्रेजों से जो लड़ाई लड़ी, वह कांग्रेस (उस समय एक मंच था) के नेतृत्व में ही लड़ी गई। राहुल जी इस तथ्य को नकार नहीं सकते। लेकिन यह भी प्रामाणिक तथ्य है कि उस समय जिन क्रांतिकारियों ने अपनी लेखनी के माध्यम से भारत में देश भक्ति का ज्वार पैदा करके अंग्रेजों को भगाने के लिए वातावरण बनाया, उनमें वीर सावरकर का नाम भी लिया जाता है। ऐसे सभी नायक आज इतिहास से गायब होते दिखाई दे रहे हैं। वीर सावरकर ने मां भारती की स्तुति में छह हजार कविताएं लिखी, वह भी कागज पर नहीं, बल्कि सेल्युलर जेल की दीवारों पर। कलम से नहीं, कंकर, कील और कोयले से लिखी गईं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि वीर सावरकर का प्रत्येक कृत्य मां भारती के लिए ही समर्पित था। ये कविताएं कभी समाप्त न हों, इसलिए सावरकर ने इन्हें रट-रट कर कंठस्थ कर लिया था। सावरकर इस संसार के एक मात्र ऐसे रचनाकार हैं जिनकी पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ को अंग्रेजों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया था।
राहुल के इस बयान के बाद महाराष्ट्र की राजनीति भी गरमा गई है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना के एक धड़े के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने राहुल की टिप्पणी से पल्ला झाड़ लिया। उद्धव ने कहा कि उनकी पार्टी विनायक दामोदर सावरकर की बहुत इज्जत करती है। हमारे मन में स्वतंत्र वीर सावरकर के लिए बहुत सम्मान और विश्वास है और इसे मिटाया नहीं जा सकता। इतना ही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी सावरकर को महान स्वतंत्रता सेनानी बताया था।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के इस अपरिपक्व बयान के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में दरार पैदा होने लगी है। हालांकि दरार तो पहले से ही थी, क्योंकि कांग्रेस और शिवसेना नदी के ऐसे दो किनारे हैं जो एक दूसरे से दूर रहकर भी साथ-साथ होने का दिखावा करते हैं। इस प्रकार की राजनीति से राजनीति दल अपने सिद्धांतों की बलि ही चढ़ाते हैं। कुल मिलाकर राहुल गांधी को ऐसे बयान देने से बचना चाहिए। यह कांग्रेस के लिए समय की मांग है।
सुरेश हिन्दुस्थानी, वरिष्ठ पत्रकार
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