लेखक – पं.भगवतदत्त रिसर्च स्कॉलर
वैवस्वत मनु- महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति से विवस्वान अर्थात सूर्य का जन्म हुआ था| इन्ही सूर्य के पुत्र का नाम वैवस्वत मनु था| इन्हें महर्षि वाल्मीकि ने पृथ्वी का प्रथम राजा भी माना है|अर्थशास्त्रकार कौटिल्य भी इनको प्रथम राजा मानते हैं| मनु का वंश विश्व में बहुत व्यापक हुआ| भारतीय प्रजा को मानवी अथवा आदित्य की प्रजा कहा गया है| मनु के नौ पुत्र थे और एक पुत्री इला थी| मनु के पुत्रों का वंश सुर्यवंश कहाता है और पुत्री का वंश ऐल वंश कहाता है| मनु के नवें पुत्र इक्ष्वाकु का कुल बड़ा प्रसिद्ध हुआ है| मनु की पुत्री इला का विवाह ऋषि अत्री के पुत्र सोम अथवा चन्द्र के पुत्र बुध से हुआ जिससे पुरुरवा का जन्म हुआ था| यहाँ से चन्द्रवंशी क्षत्रियों का राज्य शुरू होता है|
महाराज सम्राट इक्ष्वाकु- इनको आधिकारिक रूप से भारतवर्ष का प्रथम सम्राट कहा जाता है, हालाँकि ये सप्तदीप के शासक नही कहे गए हैं| इनके ही वंश
में भगवान श्रीरामचन्द्र का जन्म हुआ था, और महात्मा बुद्ध भी इन्हीं के वंशज हैं|
महाराज सम्राट पुरुरवा- पुरुरवा प्रतिष्ठान के राजा थे, ये राज्य इनकोअपनी माता इला की कृपा से प्राप्त हुआ था| ये सभी द्वीप को जीतने वाले बड़े पराक्रमी और महाविद्वान राजा थे| ये मन्त्रदृष्टा थे| इनको ब्रह्मवादी, तेजस्वी, सत्यवाक्, अप्रितमरूप और दानशील कहा गया है|
महाराज सम्राट पुरंजय(ककुत्स्थ)- ये इक्ष्वाकु के पुत्र शशाद का पुत्र था| ये बड़ा पराक्रमी राजा था| इसके नाम से इक्ष्वाकु कुल को काकुत्स्थ भी कहा जाता है|
महाराज सम्राट नहुष- ये पुरुरवा का पौत्र था, ये बड़े शूरवीर और विद्वान राजा थे|
महाराज सम्राट यताति- ये सार्वभौम राजा थे, समस्त पृथ्वी को जीतने वाले| यताति की दो स्त्रियाँ थी| एक उशना काव्य की पुत्री देवयानी और दूसरी महाराज वर्षपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा | यताति को रूद्र ने एक दिव्यागुणयुक्त रथ दिया था| जनमेजय द्वितीय तक ये पौरवों के पास था| फिर ये जरासंध को मिला| वहां से ये देवकी-पुत्र भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त हुआ था| यताति के पांच पुत्र थे| देवयानी से यदु और तुर्वसु तथा शर्मिष्ठा से पुरु आदि तीन| यताति ने अपने राज्य का सर्वश्रेष्ठ भाग पुरु को दिया था| शेष चार उत्तर-पश्चिम और पूर्व में राज्य करने लगे|
महाराज सम्राट अनरण्य- ये सम्राट पुरंजय का पुत्र था, कभी इसकी शूरता बहुत प्रसिद्ध होगी, महाभारतकार ने प्रसिद्ध राजाओं में इनकी गिनती की है| रामायण में इनको महातेज कहा गया है| इनके राज्य में कभी अनावृष्टि अतिवृष्टि नही होती थी और राज्य चोरों और तस्करों से मुक्त था|
महाराज सम्राट कुवलाश्व- ये बड़े प्रतापी राजा थे और गुणों में अपने पिता बृहदश्व से भी बढ़कर थे, ज्ञात रहे सम्राट कुवलाश्व को धुन्धु नामक भयंकर राक्षस का वध करने के कारण इनको धुन्धुमार भी कहा जाता है| ये चक्रवर्ती सम्राट थे| इनके दादा महाराज श्रावस्त ने श्रावस्ती नगरी की स्थापना की थी जो बौद्धकाल में कोसल राज्य की राजधानी बनी| ईरान के फिरदौसी ने शाहनामा में भी इनका उल्लेख किया है|
महाराज सम्राट जनमेजय प्रथम- ये महाराज पुरु के पुत्र थे| इन्होंने अपने जीवनकाल में तीन अश्वमेध यज्ञ किये| अतः ये चक्रवर्ती राजा थे| इन्होने वानप्रस्थ धारण किया|
महाराज सम्राट शशबिन्दु- ये महाराज यदु के वंशज होने से यदुवंशी हैं| इनके पिता का नाम चित्ररथ था| ये चक्रवर्ती और महापराक्रमी राजा थे|
महाराज सम्राट मान्धाता- महाराज मान्धाता सम्राट शशबिन्दु के दामाद थे| ये युवनाश्व द्वितीय के पुत्र और सुप्रसिद्ध सम्राट थे| ज्ञात रहे मान्धाता चक्रवर्ती ही अपितु सार्वभौम राजा थे अर्थ समस्त पृथ्वी के विजेता| इनका नाम ऋग्वेद १/१२/१३ से लेकर रखा गया था|
महाराज सम्राट मरुत्त- ये सुप्रसिद्ध मरुत्त मनु-पुत्र प्रांशु के कुल से हैं| मरुत्त ने एक महान अश्वमेघ यज्ञ | उस यज्ञ का उल्लेख शतपथ और ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है|
महाराज सम्राट महामना- ये महाराज महाशाल का पुत्र था और सम्राट पुरंजय का प्रपौत्र था, दुखद है कि इस महान इक्ष्वाकुवंशी चक्रवर्ती राजा का अब नाम ही शेष है|
महाराज सम्राट दुष्यंत- संस्कृत साहित्य में ये राजा बड़ा सुविख्यात है| कालिदास की अमरकृति ने ये नाम संसार भर में प्रसिद्ध कर दिया है| इस चन्द्रवंशी सम्राट ने लगभग सारी पृथ्वी जीत ली थी|
चक्रवर्ती सम्राट भरत- महाराज दुष्यंत का पुत्र भारतीय इतिहास में बहुत प्रसिद्ध है| 6 वर्ष की आयु में ही ये अत्यंत बलवान था| इन्हें सर्वदमन भी कहा जाता था| महाराज भरत के दो पौत्र नर व गर्ग ऋषिपद को प्राप्त किये थे| महाराज भरत एक सर्वभौम शासक थे अर्थात समस्त पृथ्वी के विजेता|
महाराज सम्राट सुहोत्र- सम्राट भरत के प्रपौत्र और सकलपृथ्वी पति थे महाराज सुहोत्र| इनका राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण था| सुहोत्र के पुत्र हस्ती ने प्रसिद्ध हस्तिनापुर नगरी की स्थापना की थी|
महाराज सम्राट हरीशचन्द्र- त्रिशंकु अथवा सत्यव्रत पुत्र हरिश्चंद्र भारतीय इतिहास का अति-प्रसिद्ध राजा हुआ है| हरिश्चन्द्र समस्त पृथ्वी के विजेता था| इनके राजसूय यज्ञ के कारण बड़ी संख्या में क्षत्रिय का विनाश हुआ था|
महाराज सम्राट कार्तवीर्य अर्जुन- जब कोशल में इक्ष्वाकुवंशी हरीशचंद्र का शासन था, उसके पश्चात नर्मदा के तट पर एक महान विजेता का राज्य शुरू होता है| ये था यदुनंदन कार्तवीर्य अर्जुन| यदु का पुत्र सहस्त्रजीत था| सहस्त्रजीत का पुत्र शतजीत था| उसके पश्चात् हैहय राजा हुआ| इसी हैहय के कारण कार्तवीर्य अर्जुन को हैहयवंशी कहा जाता है| इसने सारी पृथ्वी को जीत लिया था| इसकी मृत्यु का कारण अति अभिमान था और ये जामदग्न्य राम के हाथों मारा गया|
महाराज सम्राट रोहित- ये सम्राट हरीशचंद्र का पुत्र था और चक्रवर्ती राजा हुआ | इसने रोहितपुर नगर बसाया जो वर्तमान बंगाल के शाहाबाद जिले का रोहतास स्थान वही पुर है|
चक्रवर्ती महाराज सगर- कार्तवीर्य अर्जुन की मृत्यु के पश्चात् परशुरामजी के भय से उसके पुत्र, पौत्र और सामंत इत्यादि हिमाद्री वनगहर में चले गए| जब परशुरामजी हिमालय तपस्या के लिए गए तो हैहयवंशी राजा और सामंत इत्यादि अपनी माहिष्मतीपुरी को आये | वहां आकर उन्होंने अयोध्या पर भारी आक्रमण किया| उस समय उन हैहयवंशी क्षत्रियों का साथ पांच क्षत्रिय गणों ने दिया| वे थे—शक, यवन, पारद, कम्बोज और पल्लव| उस समय अयोध्या में महाराज बाहु का शासन था| बाहु वृद्ध थे पर कुछ काल तक उनसे लड़ते रहे फिर पराजय होने पर अपनी यादवी पत्नी के साथ वन को चले गए| जहाँ महापराक्रमी सगर का जन्म हुआ| उसने बहुत शीघ्र ही अपनी राजधानी अयोध्या हस्तगत करली | उसने अयोध्या में शत्रु-नाश का संकल्प लिया और हैहयवंशी समेत उनके सामंत और सहायक सभी क्षत्रियों का नाश किया| इसमें शक और यवन को ऋषि वशिष्ठ के परामर्श पर वेद-विहीन करके आर्याव्रत की सीमा से निकाल दिया | सगर समस्त पृथ्वी का विजेता स्वामी हुआ| मथुरा के यादव शूरसेनी उसके मामा थे|
महाराज सम्राट दिलीप प्रथम- ये महाराज अन्शुमान के पुत्र और सम्राट सगर के प्रपौत्र थे| इन्होंने चिरकाल तक समस्त पृथ्वी का पालन किया|
चक्रवर्ती महाराज भागीरथी- यह नाम भारतीय इतिहास बड़ा ख्याति-प्राप्त नाम है| महाराज भागीरथी के पुण्य प्रयास से पुण्य-सलिला गंगा भारत की भूमि पर बहने लगीं|
महाराज सम्राट अम्बरीश- महाराज भागीरथी का पुत्र श्रुत था और श्रुत का पुत्र नाभाग था और इन्ही नाभाग का पुत्र अम्बरीश हुआ| इसने अनेक क्षत्रियों को पराजित किया और चक्रवर्ती हुआ|
महाराज सम्राट रघु- महाराज रघु को कहीं कहीं दीर्घबाहु भी कहा गया है| इनके पिता महाराज दिलीप द्वितीय थे| रघु ने चारो दिशाओं में विजय प्राप्त की थी| इनको किवदंतियों बड़ा दानवीर भी कहा जाता है|
महाराज सम्राट दशरथ- इनके बारे में अधिक बताने की आवश्यकता नही है| ये एक प्रतिष्ठित चक्रवर्ती सम्राट थे|
भगवान रामचन्द्रजी- रामजी के नाम के साथ भगवान विशेषण लिखने का अलग आनन्द होता है| इनके बारे बताने की कोई आवश्यकता नही है| रामराज्य समस्त भारतवासियों की आस में रहता है| कोसल का राज्य रामजी के पुत्र कुश को मिला और लव ने श्रावस्ती को अपनी राजधानी बनाया| मथुरा शत्रुघ्न पुत्र सुबाहु को मिली और दूसरा पुत्र शत्रुघाती विदिशा का राजा हुआ| कुश सभी भाइयों में बड़ा था, सभी उसके अनुसार चलते थे| लव के वंश में कौशल्य-राज बृहदबल था जो महाभारत युद्ध में अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु के हाथों मारा गया था| बुद्ध के समय में प्रसेनजित श्रावस्ती का राजा था| इसकी बहन मगध नरेश बिम्बसार को ब्याही थी| इसकी पत्नी बुद्ध की उपासिका थी| इसने बौद्ध मत के विकास में बड़ा योगदान दिया था|
राजराजेश्वर शान्तनु- महाराज शान्तनु चक्रवर्ती सम्राट थे| इनके पुत्र देवव्रत(भीष्म) का इतिहास ही महाभारत कहा जाता है|
चक्रवर्ती उग्रायुध- पौरव कुल में उत्पन अजमीढ़ के कुल कृत का पुत्र उग्रायुध जन्मा | ये बड़ा विजयी राजा हुआ| महाराज शान्तनु की मृत्यु के पश्चात् इसने हस्तिनापुर में देवव्रत को सन्देश भेजा कि अपनी सौतेली माता का सत्यवती का विवाह उससे कर दो अन्यथा तुम्हारे राज्य पर आक्रमण होगा| ये केवल अपमान का सूचक था| पुरोहितों की अनुमति से पिता के शोककाल में भीष्म कुछ दिन शांत रहा| फिर भीष्म निश्चयपूर्वक रण के लिए निकला और तीन दिन तक उग्रायुध के साथ भीषण युद्ध करके उसका वध का दिया|
चक्रवर्ती महाराज पांडु- महाराज पांडु उच्च कोटि के धनुर्धर थे| इन्होने मगध, काशी, विदेह, सुम्ह, पुंड्र इत्यादि जीते| मगध में राजगृह पर दार्व को मारा| कुरु राज्य के जितने भाग गत वर्षों में कई राजाओं ने ले लिए थे,उन्हें पुनः प्राप्त किया|
महाराज धृतराष्ट्र- महाराज पांडु की आकस्मिक मृत्यु के कारण कुरु-राज्य की व्यवस्था बिगड़ने लगी तो भीष्म ने धृतराष्ट्र को राजा बना दिया| महाभारत-युद्ध पर्यन्त इनका राज्य कहा गया|
महाराज सम्राट युधिष्ठिर- भारत-युद्ध में विजय पाकर ये इंद्रप्रस्थ नरेश पुनः हस्तिनापुर के भी राजा हुए| फिर अपने भाइयों की सहायता से इन्होने समस्त पृथ्वी पर विजय प्राप्त की|
विशेष नोट- सूची में दिए गए राजाओं के काल-निर्णय को सूची में दिए गए उनके स्थान के अनुसार न समझा जाये| उसके लिए सभी आर्ष-इतिहास और साहित्य का अवलोकन करें|
सन्दर्भ ग्रन्थ- भारतवर्ष का वृहद इतिहास द्वारा पं.भगवतदत्त सत्यश्रवा