जब औरंगजेब की योजना पर फेर दिया था शिवाजी ने पानी
अंकित गुप्ता
छत्रपति शिवाजी किसी भी कीमत पर मुगलों के हिसाब से काम करने और उनके शाही दरबार के चक्कर लगाने के पक्ष में नहीं थे. न ही उन्हें उस दौर के मुगल शासक औरंगजेब पर भरोसा था. उनका मानना था कि औरंगजेब अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था. इसकी जानकारी होने के बावजूद देश के दक्षिण हिस्से में तैनात औरंगजेब के वायरसराय मिर्जा राजा सिंह ने पूरी कोशिश की कि शिवाजी को मुगल दरबार में भेजा जाए.
मशहूर इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी किताब ‘शिवाजी एंड हिज़ टाइम्स’ में लिखा है कि ‘जय सिंह ने शिवाजी को उम्मीद दिलाई कि हो सकता है कि औरंगज़ेब से मुलाकात के बाद कि वो दक्कन में उन्हें अपना वायसराय बनाने की घोषणा कर दें. बीजापुर और गोलकुंडा पर कब्जा करने के लिए उनके नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेज दें. ऐसी तमाम बातें शिवाजी से कही गईं, लेकिन उनमें बिल्कुल भी सच्चाई नहीं थी.
मां को संरक्षक बनाकर औरंगजेब से मिलने रवाना हुए
आखिरकार वो दिन भी आया जब शिवाजी को औरंगजेब से मिलने मुगल दरबार में जाना पड़ा. उन्हें औरंगजेब के नाम से चिठ्ठी मिली. शिवाजी को लगा कि शायद मुगल बादशाह से उन्हें बीजापुर से चौथ वसूलने की अनुमति मिल जाएगी. मराठा दरबार में इस बात पर चर्चा हुई और तय हुआ कि शिवाजी को आगरा जाना चाहिए.
5 मार्च, 1666 और शिवाजी मां जीजाबाई को राज्य का संरक्षक बनाकर औरंगजेब से मिलने के बाद आगरा रवाना हुए. रास्ते में उन्हें औरंगजेब का एक पत्र मिला जिसमें लिखा था, बिना किसी संकोच के आप यहां पधारें. मुझसे मिलने के बाद आपको शाही सम्मान दिया जाएगा. घर लौटने दिया जाएगा. आपके लिए मैं एक पोशाक भेज रहा हूं.
औरंगजेब की बेरूखी
शिवाजी 9 मई को आगरा सीमा में दाखिल हुए तो औरंगजेब ने मामूली से अफसर को उनके स्वागत के लिए भेजा. 12 मई को औरंगजेब से मिलाने की तारीख तय हुई. तय तारीख को उनका नाम लिया गया तो शिवाजी अपने बेटे संभाजी समेत 10 अर्दलियों के साथ दीवान-ए-आम में पहुंचे.
जदूनाथ लिखते हैं कि दरबार में शिवाजी को एक लम्बी लाइन में इतना पीछे खड़ा किया गया था जहां से बादशाह नजर तक नहीं आ रहे थे. उन्होंने औरंगजेब को 2 हजार सोने की मोहरें और 6,000 रुपये तोहफे के तौर पर पेश कीं. इस दौरान उन्होंने औरंगजेब को तीन बार सलाम किया, लेकिन औरंगजेब ने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया. सिर्फ सिर हिलाकर शिवाजी के तोहफे स्वीकार कर लिए और अपने मनसबदार से उन्हें एक जगह पर जाने के लिए कहा. इसके बाद दरबार की कार्यवाही पहले की तरह ही चलने लगी. शिवाजी को औरंगजेब का यह रूखा अंदाज पसंद नहीं आया.
औरंगजेब ने जयपुर सराय में शिवाजी को ठहराया
शिवाजी को आगरा की चारदीवारी से बाहर जयपुर सराय में ठहराने का शाही आदेश दिया गया. जहां शिवाजी ठहरे हुए थे, वहां मुगल सैनिक चुपचाप उनकी निगरानी कर रहे थे. शिवाजी को भवन छोड़ने की मनाही थी. शिवाजी हालातों को बेहतर समझ रहे थे.
हालांकि औरंगजेब उन्हें संदेश भेजते रहते थे. शिवाजी ने बादशाह को वापस जाने की बात का संदेश भिजवाया, लेकिन औरंगजेब की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. शिवाजी यह बात समझ चुके थे कि औरंगजेब चाहता है कि वो कोई गलती करें और उसे मारने का बहाना मिल जाए.
शिवाजी ने बदली रणनीति
धीरे-धीरे शिवाजी ने अपनी रणनीति को बदला. वो खुश रहने लगे. हंसी-मजाक करने लगे. मुगल सैनिकों को लगने लगा कि वो यहां पहले से बेहतर महसूस करने लगे हैं. शिवाजी ने सैनिक और अफसरों को फल-मिठायां भिजवानी शुरू कीं. शुरुआती दौर में इनकी जांच की गई फिर बिना जांच के इन्हें बाहर भेजा जाने लगा. कुछ दिन बाद उन्होंने उनके साथ आए मराठी लोगों को वापस भेजने की बात कही. इसे मान लिया गया.
शिवाजी ने बीमार होने का बहाना बनाया. दर्द से कराहने की आवाज मुगल पहरेदारों को सुनाई देने लगी. वो रोजाना ब्राह्मण और साधुओं के लिए फल और मिठाइयां भिजवाने लगे. सैनिकों ने सामान की तलाशी लेना बंद कर दिया था, इस बात को पुख्ता किया गया ।
एक दिन शिवाजी और संभाजी फलों की टोकरी में बैठकर बाहर निकल गए. शिवाजी ने अपने बिस्तर पर सौतेले भाई हीरोजी फ़रजांद को लेटने को कहा क्योंकि उनकी शक्ल काफी हद तक उनसे मिलती जुलती थी. हीरोजी कंबल ओढ़कर लेट गए हाथ बाहर रखा ताकि शिवाजी का सोने का कड़ा देखकर सैनिक आश्वस्त हो जाएं और शिवाजी सीमा के बाहर पहुंच जाएं. ऐसा ही हुआ. हीरोजी पूरी रात और दोपहर तक ऐसे ही लेटे रहे.
करीब तीन बजे वो बाहर निकले और सैनिकों से कहा शिवाजी की तबियत खराब वो शोर न करें. कुछ समय बाद जब एक सैनिक अंदर आया तो देखा शिवाजी मौजूद ही नहीं हैं. उसने यह सूचना अपने प्रमुख फलाब खां को दी. फलाद बदहवास हालात में औरंगजेब के सामने पहुंचा और गिर पड़ा. उसने कहा, शिवाजी नदारद हो गए हैं ‘ । पता नहीं है कि उन्हें धरती निगल गई या आसमान । इस घटना से औरंगजेब को तगड़ा झटका लगा था क्योंकि वो अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो पाया।
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