कमल
पाकिस्तान और चीन के बीच वर्षों से जारी गठबबधन भारत के लिए परेशानी का रहा है। चीन की पाकिस्तान में चलाई गई विभिन्न परियोजना जिनमें सीपैक, बीआरबी कारिडोर समेत दूसरे क्षेत्रों में ढांचागत निवेशा शामिल है, पर भारत हमेशा अपना विरोध जताता रहा है। ये विरोध केवल भारत ही नहीं कर रहा है बल्कि पाकिस्तान में रहने वाले भी इन परियोजनाओं को लेकर समय-समय पर सड़कों पर उतर चुके हैं।
ग्वादर पर विरोध का कारण
मौजूदा समय में ग्वादर को लेकर जो विरोध पाकिस्तान में दिखाई दे रहा है उसकी वजह भी यही है। दरअसल, चीन के दबाव में पाकिस्तान अपने ही लोगों के हितों के खिलाफ फैसला ले रहा है। इसकी वजह ये लोग भड़के हुए हैं। यदि ग्वादर में जारी विरोध की ही बात की जाए तो यहां पर स्थानीय मछुआरों के मछली पकड़ने पर रोक लगा दी गई है। इस वजह से स्थानीय मछुआरों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
चीन के हित के लिए कर्ज में डूबा पाकिस्तान
ग्वादर चीन की उन परियोजना का एक हिस्सा है जिसके ऐवज में बीजिंग ने पाकिस्तान को बड़ी राशि कर्ज के तौर पर दी है। ये राशि पाकिस्तान को विकास के नाम पर दी गई है। लेकिन, हकीकत ये है कि ग्वादर से चीन की सीमा में अपना माल ले जाने के लिए जिस आधारभूत ढांचे की जरूरत बीजिंग को थी उसके विकास के लिए ही ये धन दिया गया था। इसका एक अर्थ ये भी है कि अपने माल को कम समय और कम खर्च में चीन तक पहुंचाने के लिए जो निर्माण किया गया उस पर पाकिस्तान को कर्ज दिया गया। ये कर्ज इतना अधिक है कि इसको चुकाने के लिए पाकिस्तान को विश्व के सामने हाथ फैलाना पड़ रहा है। बहरहाल, चीन का पाकिस्तान में केवल ग्वादर प्रोजेक्ट ही नहीं है बल्कि सीपैक या चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी इनमें से एक है।
तीन नए कारिडोर पर काम शुरू
पिछले माह ही चीन ने सीपैक के तीन नए कारिडोर पर काम करना शुरू किया है। भारत ने इस पर ये कहते हुए ऐतराज जताया है कि ये भारत की जमीन पर गैरकानूनी रूप से बनाया जा रहा है। इसकी घोषणा पीएम शहबाज शरीफ की बीजिंग यात्रा के दौरान की गई थी। सीपैक की शुरुआत चीन ने वर्ष 2015 में की थी। इसके तहत चीन के शिनजियांग प्रांत से लेकर पाकिस्तान में रेल, सड़क का निर्माण करना है। इसके तहत चीन पाकिस्तान में एनर्जी प्रोजेक्ट भी लगा रहा है। चीन इस योजना को ग्वादर बंदरगाह तक जोड़ चुका है। इसलिए ग्वादर, सीपैक और चीन का पुराना सिल्क रूट दोबारा बनाना एक ही परियोजना का हिस्सा बन गया है। ग्वादर के जरिए चीन सीधेतौर पर अरब सागर से जुड़ चुका है। इतना ही नहीं चीन अपने सीपैक प्रोजेक्ट को अब अफगानिस्तान तक ले जाना चाहता है।
समय और धन की बचत
चीन का ये प्रोजेक्ट करीब 3 हजार किमी का है। चीन के लिए ये दूसरे रास्तों के मुकाबले काफी सस्ता और तेज भी है। चीन इस कारिडोर के बन जाने के बाद इंडोनेशिया और मलेशिया के बीच स्थित Straits of Malacca के लंबे और महंगे रास्ते को पूरी तरह से छोड़ देगा। फिलहाल चीन इस मार्ग का इस्तेमाल कर रहा है। ये रास्ता ग्वादर के मुकाबले कहीं अधिक लंबा और अधिक खर्चिला है। चीन ने ग्वादर पोर्ट को मई 2013 में अपने अधिकार में ले लिया था। मौजूदा समय में वहां पर पोर्ट की सुरक्षा के लिए चीन की सैन्य टुकड़ी हर वक्त मौजूद रहती है। चीन का सीपैक प्रोजेक्ट करीब 65 अरब डालर का है। वर्ष 2016 में सीपैक को आंशिक रूप से खोल दिया गया था। सीपैक पाकिस्तान के खैबर पख्तूंख्वां, गिलगिट बाल्टिस्तान, पंजाब, बलूचिस्तान, सिंध, गुलाम कश्मीर, और चीन के शिनजियांग प्रांत के बीच फैला है।