देश के सभासद कैसे हों?
वैश्विक राजनीति में वर्त्तमान में लोकतंत्र भीड़ तंत्र होने के कारण मूर्खों का तंत्र कहा जाता है। यद्यपि आज के लोकतंत्र के बारे में यह भी सच है कि अनेक अशिक्षित, कुपढ़ और अविद्वान लोगों के एक साथ बैठ जाने या जनता के प्रतिनिधि बन जाने का अभिप्राय यह नहीं है कि वह जनहितैषी नीतियों को बनाने में सफल हो जाएंगे ? इतिहास इस बात का साक्षी है कि एक विद्वान अनेक विद्वानों को परास्त कर देता है। जिसके पास बुद्धिबल है, वह अनेक बुद्धिहीनों के लिए पर्याप्त है। वास्तव में बुद्धि बल का अभिप्राय यह नहीं कि बुद्धिहीनों का दलन, शोषण और उत्पीड़न करने का प्रमाण पत्र किसी बुद्धिमान को प्राप्त हो जाए। इसका अभिप्राय सात्विक बुद्धि बल से है , जो बौद्धिक क्षेत्र अर्थात शैक्षणिक क्षेत्र में पिछड़कर किसी भी प्रकार से पीछे रह गए हैं,उनके भी विकास का ध्यान रखने वाला व्यक्ति वास्तविक बुद्धिमान या विद्वान या पंडित है। आजकल लोग उसको बुद्धिमान मानते हैं जो अपने बौद्धिक चातुर्य से लोगों का मूर्ख बना सके और दूसरों का आर्थिक ,मानसिक ,सामाजिक या राजनीतिक शोषण कर सके। यहां पर ऐसे लोगों के विषय में ही कुछ कहना हमारा उद्देश्य है।
हमने इतिहास में लॉर्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति के बारे में बहुत सुना है। उसी राज्य हड़प नीति को सत्ता हड़प नीति के रूप में लोकतंत्र में दबंग राजनीतिज्ञ अपनाते हैं। स्वतंत्र भारत में भी ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां गुंडागर्दी करते हुए राजनीतिक दलों के लोगों ने किसी दल विशेष के लिए समाज के निर्बल वर्ग के वोटों को जबरन अपने लिए डलवा लिया। इसी प्रकार किसी भी प्रकार से लोगों के मतों को प्रभावित करने की रेवड़ी बांटने की परंपरा भी हमारे देश में बहुत अधिक बन चुकी है। वास्तव में इस समय राजनीतिज्ञों की सत्ता हड़प नीति पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है । जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा, तब तक भारतवर्ष में वास्तविक लोकतंत्र स्थापित नहीं हो पाएगा।
सभासदों का विद्वान होना आवश्यक
स्वामी दयानंद जी इस मत के मानने वाले हैं कि वेदों को जानने वाला उत्तम संन्यासी जिस धर्म की व्यवस्था करे अर्थात जिस व्यवस्था का निष्पादन करे, वही धर्म अर्थात व्यवस्था श्रेष्ठ है। क्योंकि अब ज्ञानियों के सहसों लाखों-करोड़ों लोग मिलकर भी उस व्यवस्था को कभी नहीं दे सकते। इतिहास को सुचारू रूप से सकारात्मक दिशा देने के लिए सत्यार्थ प्रकाश के इस इतिहास दर्शन को हमें समझने की आवश्यकता है। जो लोग देश में भीड़तंत्र का समर्थन करते हैं उन्हें तो इस बात को अवश्य ही समझना चाहिए कि जनप्रतिनिधियों का विद्वान और पंडित होना कितना आवश्यक है ?
यदि देश की सभाओं में अर्थात विधानमंडलों या न्याय सभाओं में ब्रह्मचर्य, सत्य भाषण आदि व्रत ,वेद विद्या विचार से रहित लोग पहुंचेंगे तो उन लोगों के जाने से सभा कभी भी सभा नहीं बन सकती। जिनका मानसिक विकास अभी अधूरा है या जिनकी मानसिकता बहुत संकीर्ण है, उनसे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे जनहितकारी नीतियों और विधि का निर्माण कर पाएंगे। उनकी बनाई विधि व्यवस्था और कानून में सदा दोष रहेगा। स्वामी दयानंद जी की यह स्पष्ट मान्यता थी कि सभाओं में मूर्ख लोगों को कभी भी प्रवेश नहीं देना चाहिए। दूसरों के धन माल को लूट लूटकर अपनी तिजोरी में भरने वाले संसार के अनेक लुटेरे शासक आज कहीं दिखाई नहीं देते। इसी प्रकार के अनेक राजा, बादशाह या सुल्तान जिन्होंने एक एक साथ लाखों लाखों लोगों का वध किया, लाखों-करोड़ों लोगों के घरों को आग लगा दी, उनके धनमाल को लूटकर अपने देश को ले गए या जिन्होंने अपने राजकोष भरने का घृणित कार्य किया वह भी आज कहीं दिखाई नहीं देते। अविनाश हो गया। कहां चले गए ? आज यह जानकारी भी नहीं मिलती । इसका कारण केवल एक है कि यह लुटेरे लोग या ऐसे राजा, बादशाह या सुल्तान अधर्म से अपना नाम और काम फैलाने का प्रयास कर रहे थे। महर्षि मनु ने व्यवस्था दी है कि जो लोग इस प्रकार से दूसरों का उत्पीड़न करके अपने राजकोष या तिजौरियां भरते हैं वह नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि सभासद विद्वान हों। उनके हृदय में सभी के लिए मानवता का भाव हो। प्रेम, करुणा, दया, उदारता जैसे मानवो चित गुण उनके स्वभाव में समाविष्ट हों। ऐसे सभासद ही जनहितकारी नीतियों और विधि का निर्माण कर सकते हैं।
सभासद और तिकड़म की राजनीति
स्वामी दयानंद जी राजा को अप्रत्यक्ष रूप से यह परामर्श देते हैं कि वह क्रोधज और कामज दोषों से अपने आप को बचाकर रखे। संसार में जितने भर भी राजा इन व्यसनों में फंसे हैं उनके कारण उनके राष्ट्र को भी भारी हानि उठानी पड़ी है। आज भी ब्रह्मचर्य नाश करके लोग सत्ता पर अपनी तिकड़म की राजनीति के माध्यम से अपना नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं, शक्ति प्राप्त कर लेते हैं, सत्ता के शीर्ष पर स्थापित हो जाते हैं, परंतु उनकी अजितेंद्रियता के कारण देश और समाज का उतना कल्याण नहीं हो पाता जितना होना चाहिए। स्वामी जी महाराज का कहना है कि जो राजा काम से उत्पन्न हुए दस दुष्ट व्यसनों में फंसता है वह अर्थ अर्थात राज्य धन आदि और धर्म से रहित हो जाता है और जो क्रोध से उत्पन्न हुए आठ बुरे व्यसनों में फंसता है वह शरीर से भी रहित हो जाता। तिकड़म की राजनीति से सत्ता प्राप्त की जा सकती है परंतु वह स्थाई रूप से सुरक्षित नहीं रखी जा सकती है। हमारे देश में मुस्लिम और अंग्रेज शासकों ने तिकड़म से सत्ता प्राप्त की , अपने अपने वंशजों के राज्य स्थापित किए, परंतु ना तो सत्ता रही और ना ही वंशजों के शासन रहे, सब कुछ समाप्त हो गया।
राकेश कुमार आर्य
मेरी यह पुस्तक डायमंड बुक्स नई दिल्ली के द्वारा प्रकाशित हुई है । जिसका अभी हाल ही में 5 अक्टूबर 2000 22 को विमोचन कार्य संपन्न हुआ था। इस पुस्तक में सत्यार्थ प्रकाश के पहले 7 अध्यायों का इतिहास के दृष्टिकोण से विश्लेषण किया गया है। पुस्तक में कुल 245 स्पष्ट हैं। पुस्तक का मूल्य ₹300 है।
प्रकाशक का दूरभाष नंबर : 011 – 407122000।
सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश
( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर)
अध्याय 17 ख