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पर्यावरण

जीवनदायिनी नदियों को बचाना होगा

भारत में नदियां विश्वास, आशा, संस्कृति और पवित्रता का प्रतीक हैं। साथ ही वे लाखों लोगों की आजीविका का स्रोत हैं। किसी भी अन्य सभ्यता से बहुत लंबे समय तक हमने नदियों को धर्म से जोड़ कर इन्हें स्वच्छ और पवित्र भी बनाए रखा। यह विडंबना ही है कि हमारी आस्था की पवित्र और संस्कृति से जुड़ी नदियां प्रदूषित हो रही हैं।

कुछ ही दशक पहले तक देश भर में लोग, पीने के पानी के लिए, कपड़े धोने, नहाने या बस तैरने के लिए आस-पास किसी धारा या नदी तक चले जाया करते थे। आज ऐसा कुछ भी करने का सवाल ही नहीं उठता। और अगर ऐसा करते भी हैं तो सेहत पर उसके गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं। नदियों के प्रदूषण और साफ सफाई दोनों ही मुद्दों पर जमकर बरसों से राजनीति होती आ रही है। पिछले दिनों सूर्य उपासना के महापर्व छठ पर दिल्ली में प्रदूषित यमुना को लेकर भाजपा और आप की सियासी लड़ाई देशभर ने देखी।

दिल्ली में यमुना ही नहीं, बल्कि हर छोटी—बड़ी नदी प्रदूषण की मार से कराह रही है। कानपुर में गंगा एवं मुम्बई में मीठी नदी अत्यंत प्रदूषित हैं। इन नदियों का पानी ही नहीं बल्कि आसपास की भूमि भी बंजर बनती जा रही है। इस से देश की अर्थव्यवस्था एवं नागरिकों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। एक तरफ नदियों को माता कह कर पूजा जाता है दूसरी ओर उनमें सीवर, कचरा और शव डाले जाते है। ऐसे में नदी को पूजने और पवित्र कहने का कोई अर्थ नहीं रह जाता। वहीं एक पहलू यह भी है कि नदी किनारे बसे शहरों का विस्तार और विकास जारी है जिससे नदियों पर जल निकासी और प्रदूषण का अतिरिक्त भार पड़ रहा है। इसलिए शहरी क्षेत्रों में समस्याओं और संचालकों पर ध्यान दिए बिना नदी के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हो सकता।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक 36 राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों में से 31 में नदियों का प्रवाह प्रदूषित है। साल 2015 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया था कि 275 नदियों के 302 प्रवाह प्रदूषित हैं जबकि साल 2018 की रिपोर्ट में 323 नदियों के 351 प्रवाह के प्रदूषित होने का जिक्र है। पिछले तीन सालों में देखा गया है कि खतरनाक रूप से प्रदूषित 45 प्रवाह ऐसे हैं, जहां के पानी की गुणवत्ता बेहद खराब है।

राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) ने अब तक देश के 16 राज्यों में फैले 77 शहरों में 34 नदियों पर प्रदूषित हिस्सों को कवर किया है। जिसमें परियोजनाओं की स्वीकृत लागत 5,965.90 करोड़ रुपये है, और 2522.03 एमएलडी की सीवेज उपचार क्षमता बनाई गई है। नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत 30,235 करोड़ रुपये की लागत से 4948 एमएलडी के सीवेज उपचार के लिए 158 परियोजनाओं और 5,213 किलोमीटर के सीवर नेटवर्क सहित कुल 346 परियोजनाओं को मंजूरी दी है। सरकार की तमाम कोशिशों और योजनाओं के बावजूद देश की नदियों में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है। कई नदियां तो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। इसका सीधा असर प्राकृतिक संतुलन पर पड़ रहा है।

महात्मा गांधी ने कहा था कि नदियां हमारे देश की नाड़ियों की तरह हैं। यदि हम उन्हें गंदा करना जारी रखेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब हमारी नदियां जहरीली हो जाएंगी। और अगर ऐसा हुआ तो हमारी सभ्यता नष्ट हो जाएगी। इसमें कोई दोराय नहीं हैं कि केवल सरकार के प्रयासों से ही न तो नदियां साफ हो सकती हैं और न ही स्वच्छ भारत का सपना पूरा हो सकता है। इसके लिए जन-सहयोग भी जरूरी है। हमें वास्तव में नदियों का सम्मान करना सीखना होगा। अन्यथा आने वाले समय में बाढ, सूखा, जल संकट भूमि प्रदूषण ही नहीं अपितु उत्तरांचल जैसी भयावह प्राकृतिक आपदाएं भी झेलनी होंगी।(युवराज) आशीष वशिष्ठ

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