अभिषेक
देश की सबसे पुरानी पार्टी अपने एक बेहद मजबूत नेता से खफा है। ये नेता हैं कर्ण सिंह। पार्टी उस कर्ण सिंह से खफा है जो कांग्रेस की सरकार में मंत्री बने, पार्टी में बड़े ओहदे संभाले। दरअसल, इस नाराजगी की कहानी शुरू होती है एक अंग्रेजी अखबार में लिखे कर्ण सिंह के लेख से। इस लेख में सिंह ने 75 साल पुरानी कहानी उकेरी थी। इस कहानी के तार पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और कर्ण सिंह के पिता और कश्मीर रियासत के राजा रहे हरि सिंह से जुड़ती है। सिंह ने कहानी की शुरुआत 26 अक्टूबर 1947 से करते हैं। इसी दिन हरि सिंह ने भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इस कहानी को बताने से पहले एक बात आपको और बताते हैं। दरअसल, इस कहानी की पृष्टभूमि में केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू हैं। उन्होंने कुछ दिन पहले ट्वीट कर कहा था कि नेहरू के वक्तव्यों पर गौर कीजिए तो पता चलता है कि महाराजा हरि सिंह ने नहीं, खुद नेहरू ने ही कश्मीर के भारत में विलय को टाला। महाराजा ने दूसरे प्रिंसली स्टेट्स की तरह जुलाई 1947 में ही नेहरू से संपर्क किया था। सभी राज्यों के विलय पत्र स्वीकार कर लिए गए लेकिन कश्मीर का प्रस्ताव खारिज कर दिया गया। इसी मसले पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर रिजिजू पर हमला बोला था। उन्होंने साथ ही कर्ण सिंह को भी निशाने पर लिया था और कहा था कि पूर्व केंद्रीय मंत्री कर्ण सिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय में पंडित जवाहरलाल नेहरू की भूमिका पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू के निशाना साधे जाने के बाद नेहरू का बचाव नहीं किया।
कर्ण सिंह का लेख
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने अंग्रेजी अखबार में लिखे अपने लेख में लिखा है कि रिजिजू ने कहा था कि मेरे पिता 15 अगस्त से पहले भारत में विलय को तैयार थे। लेकिन जवाहर लाल नेहरू तबतक इसे स्वीकार नहीं करना चाहते थे जबतक इसमें वहां के लोगों की रजामंदी न हो। आम जनता की पसंद का मतलब था नेशनल कॉन्फ्रेंस और शेख अब्दुल्ला की भी सहमति। कर्ण सिंह ने कहा कि मैं साफ कर देना चाहता हूं कि मुझे इस बात की कोई जानकारी नहीं है न ही इस मसले का जिक्र विलय के वक्त हुआ था। उन्होंने लिखा है कि संभव है कि जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन डेप्युटी पीएम राम लाल बत्रा ने इसके बारे में दिल्ली में किसी से जिक्र किया हो। लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मेरे पिता ने उन्हें इसके लिए अधिकृत किया हो।
जम्मू-कश्मीर पर ऐसा कोई विद्वतापूर्ण और गंभीर अध्ययन सामने नहीं आया है जो महाराजा हरि सिंह को अच्छी भूमिका में प्रदर्शित करे। वीपी मेनन के किए गए अध्ययन में भी हरि सिंह को ऐसे नहीं पेश किया गया है कि जिनके साथ कुछ गलत हुआ हो।
विलय की प्रक्रिया काफी मुश्किल थी
सिंह ने अपने लेख में लिखा कि 26 अक्टूबर 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन को लिखे गए कवर लेटर में कहा गया था कि जैसाकि आप जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर रियासत न तो भारत और नही पाकिस्तान में विलय को मंजूरी दी है। पत्र में लिखा था कि कश्मीर रियासत की सीमाएं भारत और पाकिस्तान से सटी हुई हैं। रियासत का दोनों देशों से आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्ते हैं। इसके अलावा हमारे राज्य का सोवियत संघ और चीन के साथ लगती सीमाएं हैं। इस बात को भारत और पाकिस्तान इग्नोर नहीं कर सकते हैं। किस देश में मैं अपने राज्य को शामिल करूं इसके लिए मैं थोड़ा वक्त लेना चाहता था। बल्कि दोनों देशों के लिए ये भी सही होता कि वो हमारे राज्य को स्वतंत्र ही रहने देते। सिंह ने लिखा कि पत्र में इस बात के कोई संकेत नहीं थे कि हरि सिंह विभाजन के पहले ही भारत में शामिल होना चाहते थे। उन्होंने लिखा कि 1952 के भाषण को जिसको रिजिजू ने कोट किया था, उस दौरान नेहरू ने कहा था कि कश्मीर के महाराजा और उनकी सरकार भारत में विलय करना चाहते थे और इसके संकेत भी मिलते थे लेकिन उन्होंने उस समय ऐसा नहीं किया।
उन्हीं नेहरू के समर्थन के बिना डॉक्टर कर्ण सिंह वह सब हासिल नहीं कर सकते थे जो उन्होंने किया। इसे उन्होंने 2006 में आई अपनी पुस्तक में स्वीकार किया है।
हमने राज्य का बड़ा हिस्सा खो दिया
सिंह ने लिखा कि 1947 में हुई घटनाएं बेहद दुखद थीं। अंत में हमें हमारे राज्य का गिलगित-बाल्टिस्तान, मीरपुर-मुजफ्फराबाद समेत आधा हिस्सा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर बन गया। इस लेख के जरिए मैं अपने पिता की भूमिका बताना चाहता था। मैं ये साफ कर देता हूं कि भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर के दो साल बाद ही महाराजा हरि सिंह राज्य से एक तरह से निष्कासित हो गए। इसके बाद उनकी अस्थियां ही राज्य में आईं। कर्ण सिंह ने लिखा कि अपने पिता की इच्छा के अनुसार हम उनकी अस्थियां मुंबई से जम्मू में बिखरा दिए।
अनुच्छेद 370 को लागू करना और पाकिस्तान के साथ विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने की नेहरू की ‘गलतियों’ ने बहुत नुकसान किया, देश के संसाधनों को खत्म कर दिया और आतंकवाद ने सैनिकों और नागरिकों समेत हजारों लोगों की जान ले ली
नेहरू के बचाव नहीं करने पर कांग्रेस लाल
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने गुरुवार को कहा था कि पूर्व केंद्रीय मंत्री कर्ण सिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय में पंडित नेहरू की भूमिका पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू के निशाना साधे जाने के बाद नेहरू का बचाव नहीं किया। रमेश ने कहा कि इस लेख में कर्ण सिंह ने अपने पिता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व राजा हरि सिंह का बचाव किया है। कांग्रेस महासचिव ने ट्वीट किया था, ‘जम्मू-कश्मीर पर ऐसा कोई विद्वतापूर्ण और गंभीर अध्ययन सामने नहीं आया है जो महाराजा हरि सिंह को अच्छी भूमिका में प्रदर्शित करे। वीपी मेनन के किए गए अध्ययन में भी हरि सिंह को ऐसे नहीं पेश किया गया है कि जिनके साथ कुछ गलत हुआ हो।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे इससे हैरानी होती है कि डॉक्टर कर्ण सिंह ने नेहरू पर रिजिजू के निशाने साधे जाने के बाद नेहरू का बचाव नहीं किया। उन्हीं नेहरू के समर्थन के बिना डॉक्टर कर्ण सिंह वह सब हासिल नहीं कर सकते थे जो उन्होंने किया। इसे उन्होंने 2006 में आई अपनी पुस्तक में स्वीकार किया है।’
वी पी मेनन ने कभी नहीं किया जिक्र
कश्मीर के भारत में विलय करवाने के मुख्य किरदारों में शामिल रहे वी पी मेनन ने कभी इस बात का जिक्र नहीं किया कि हरि सिंह पहले ही भारत में विलय करना चाहते थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल के करीबी सहयोगी रहे मेनन ने कश्मीर पर अपनी रिपोर्ट में कभी भी इस बात का जिक्र नहीं किया था कि महाराजा ने अपने दूत के मार्फत नेहरू से संपर्क साधा था।
रिजिजू ने नेहरू पर उठाया था सवाल
रिजिजू ने हाल ही में कहा था कि अनुच्छेद 370 को लागू करना और पाकिस्तान के साथ विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने की नेहरू की ‘गलतियों’ ने बहुत नुकसान किया, देश के संसाधनों को खत्म कर दिया और आतंकवाद ने सैनिकों और नागरिकों समेत हजारों लोगों की जान ले ली।