भक्ति में मांगो नहीं,जो चाहो कल्याण
भक्ति में मांगो नहीं,
जो चाहो कल्याण ।
बिन मागें ही देत ब है,
दाता करुणा निधान॥2041॥
आयु की दौलत घटे,
सांस – सांस हर रोज ।
उनसे प्रीति: जग की सेवा,
करले मैं की खोज॥2042॥
पंचभूत से जग रचा,
यत्र तत्र सर्वत्र ।
सबके लिए रच दिए,
रविचंद्र नक्षत्र ॥2043॥
दुष्टों का चिन्तन करें,
मन ही मन अकुलाय ।
इससे तो बेहतर यही,
ध्यान प्रभु में लाय ॥ 2044॥
अनुकृति है चित्त की,
चेहरे पर उभरे भाव ।
जाहिर करते चित्त में,
कितना प्रेम – दुराव॥2045॥
नींबू की दो बूंद से,
जैसे दूध फट जाय ।
छल कपट के कारणै,
भक्ति निष्फल जाय॥ 2046॥
रचना – वासना – कामना,
इन पर लगा लगाम ।
मन ईश्वर में लीन हो,
मिले प्रभु का धाम॥2047॥
पंचभूत में रम रहा,
मिला ना तेरा रूप ।
धर्म में तेरी सौगंध है,
वो ही तेरा स्वरूप॥2048॥
ध्यान लगा ले ब्रह्म में ,
और संसार को भूल ।
मोक्ष का है मग यही,
शोक होय निर्मूल॥2050॥
शरीर भी तेरा नहीं,
विधाता की सौगात ।
इसे भलाई में लगा,
दुआ चलेगी साथ॥2050॥
स्वर्ग में कर्म ना कर सके,
केवल है सुख भोग ।
मानव – देह में जान ले,
तत्व ज्ञान और योग॥2051 ॥
दोष – घटा बढ़ा दिव्यता,
मत करना प्रमाद ।
सुकृतो में धन लगा,
मन में प्रभु की याद॥2052॥
धन बटोरने में लगा,
खो गया कहीं देवत्त्व ।
माया ठगनी ने ठगा ,
पाना था ब्रह्मत्त्व ॥2053॥
वाचन पूजन श्रवण में,
वृत्ति का है महत्व ।
वृत्ति से ही प्राप्त हो,
असुरूत्त्व – देवत्त्व॥2054॥
दिल से प्यार दिल से दुआ,
है शक्ति के पुँज ।
निर्मल हृदय होते है,
परमपिता का कुंज॥2055॥
क्रमशः